हमारी सभ्याता की नियति को संवारने में महिलाओं की भूमिका अहम है। फिर भी ज्याीदातर महिलाओं की अनदेखी होती है और उन्हें असमानता व अभाव से भी जूझना पड़ता है। यदा.कदा उन्हें क्रूर हिंसाध्अपराध का सामना करना पड़ता है। भारत में परंपराएंध्रीति.रिवाज बेटियों के अस्तिकत्व को नकारते रहे हैं। महिलाओं को बराबरी देने के तमाम दावों और इस उद्देश्यक के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद आज भी बड़ी संख्याब में नवजात बच्चि यों को कूड़ेदान में फेंक दिया जाता हैए गर्भ में पल रही बच्च्यिों के लिए भी उनकी माताओं को दुत्काकर दिया जाता है। पक्षपात और भेदभाव के साथ हमारा समाज कन्या ओंध्महिलाओं के साथ दुर्व्यतवहार करता है और इसकी शुरूआत उनके जन्मा से पहले ही हो जाती है। इस पक्षपातपूर्ण रवैये व दुर्व्यकवहार का सामना उन्हेंउ बचपनए किशोरावस्था। और वयस्कण ;गर्भावस्थाबद्ध से लेकर पूरी जिन्द गी करना पड़ता है।
यद्यपि सतीए जौहर और देवदासी जैसी पुरातन कुरितियां अब प्रतिबंधित हैं और आधुनिक भारत में इनके लिए कोई जगह नहीं हैए फिर भी देश के दूरदराज इलाकों से आज भी कुछेक घटनाएं सामने आती हैं। इसी प्रकारए पर्दा प्रथा का प्रचलन शहरों और अभिजात्यं वर्ग में कम हो रहा हैए परंतु ग्रामीण परिवारों में यह आज भी प्रचलित है। घरेलू हिंसाए दहेजए बलात्काहरए छेड़खानीए यौन शोषण और देहव्या पार आदि चिन्ताा के अन्यु विषय हैं। भारत में घरेलू हिंसा सर्वव्याएपी हो गई है और यह तब है जबकि महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कानूनी तौर पर सुरक्षा प्रदान की गई है।
कन्यााओं के प्रति पक्षपात के कई रूप हैं दृ अपर्याप्तल स्तननपान व भोजन और स्वायस्य्रत स्वाास्य्े सेवाओं में देरी उन्हें कुपोषण का शिकार बनाती हैंए जबकि देखभाल में कमी और अनदेखी उन्हेंा भावनात्मक रूप से कमजोर कर देती है। परिवार में कन्याबओं के लिए स्वा स्य्ी ए पोषणए व्य क्ति त्वप विकास और शिक्षा आदि के लिए पर्याप्ता संसाधन नहीं रखे जाते हैं। ये सभी महिलाओं में उच्चव मृत्युिदर के कारण हैं। भ्रूणहत्याि संभवतरू महिलाओं के प्रति हिंसा का क्रूरतम रूप हैए जो उन्हें् एक आधारभूत और मौलिक अधिकार से वंचित करता हैए जो है दृश्जीने का अधिकारश्। पुराने जमाने में अवांछित कन्याम शिशु को जहर देकरए गला घोंटकर व अन्यर विधियों से मार दिया जाता था।
हमारे समाज में कन्याज शिशु हत्याअ का प्रचलन पुराने समय से हैए लेकिन चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ ही कन्याश भ्रूण हत्याप में लगातार वृद्धि होती चली गई। तकनीकी प्रगति की वजह से जन्मस.पूर्व ;प्री नेटलद्ध लिंग निर्धारण संभव होने लगा और इससे कन्याक भ्रूण हत्याि के मामले बढ़ते चले गए। बेटों को प्राथमिकता या पुत्र मोह की सदियों से चली आ रही परंपराए चिकित्साे तकनीकों के साथ मिलकर भारतीय परिवार को विकल्प उपलब्धऔ कराता है कि वे बेटियों के लिए भारी दहेज देने के लिए तैयार रहे या फिर जन्मी से पहले ही उन्हेंह खत्म कर दे। परिणामस्व रूपए अभिनव चिकित्साा प्रौद्योगिकी और अधुनातन लिंग निर्धारण तकनीक ;सेल फ्री फोएटल डीएनए टेस्टिं गए अल्ट्रा साउंड स्कै नए एमीनोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैम्पेलिंगद्ध का उपयोग या दुरूपयोग कन्या्ओं के जन्मड से पूर्व ही उनसे छुटकारा पाने के लिए किया जाने लगा ।
भारत में जन्म से ही कन्याय को एक भार.भोजन के लिए अतिरिक्तम मुंह. माना जाता है। कुल मिलाकर कन्यामओं को बोझ और पराया धन समझा जाता है। दूसरी तरफ बेटों का जन्मक वंश का नाम आगे बढ़ाने के लिए आवश्य क माना जाता है। इसलिए बेटों के जन्मन के लिए मनौतियां मांगी जाती हैं। कन्याेओं को सदैव वित्तीमय बोझ के रूप में देखने वाला हमारे घोर पैतृक समाज में इन रूढ़ीवादी कुरितियों की वजह से निम्नत लिंगानुपात वाले ग्रामीण इलाकों में बलात्का रए देहव्याहपार और श्पत्नीप साझा करनाश् समेत महिलाओं के प्रति अन्यव अपराधों में वृद्धि हो रही है।
थॉमसन रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के लिए भारत विश्व में श्चौथा सर्वाधिक खतरनाक देशश् है।
कुछ क्रूर हाथों ने हमसे साहसी और आने वाले समय में फिजियोथेरेपिस्टव बनने वाली श्निर्भयाश् को छीन लिया। निर्भया के माता.पिता को उसे जन्म देने के लिए बधाई दी जानी चाहिए। सभी की सहानुभूति उनके साथ है। बेटा जो आगे चलकर बलात्कािरी बनता हैए उसकी निन्दाक उचित है। यहां वह कन्या ;निर्भयाद्ध ही प्रशंसा की हकदार है।
हमें नागरिकोंए विशेषकर पुरूषोंए की मानसिकता और सोच बदलने की जरूरत है। पुरूषों को यह समझाने की जरूरत है कि उन्हेंं सभी उम्र की महिलाओं की इज्जमत करनी चाहिए और इन मूल्योंक को बचपन से ही उनकी मानसिकता में मजबूती से ढालने की जरूरत है। एक बालक को यह समझाने की जरूरत है कि वह न केवल अपनी माताए बहनों और सगे संबंधियों का सम्माान करे बल्कि सम्पकर्क में आने वाली सभी कन्यारओंध्महिलाओं का आदर करे। तभी हमारा समाज शांतिपूर्ण ढंग से रहने के लिए एक सुरक्षित स्थासन होगा।
पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की जनसंख्याे को मापने के लिए लिंगानुपात एक कारगर मानदण्ड है। जनगणना 2011 के अनुसारए हमारी जनसंख्याग में 1000 पुरूषों पर केवल 940 महिलायें हैं और यह निम्नग लिंगानुपात को दर्शाता है। घटता बाल लिंगानुपात ;0.6 वर्षद्ध गहरी चिंता का विषय है। देश के प्रख्यानत जनसंख्याा विशेषज्ञ प्रोफेसर आशीष बोस ने लुप्तं होती कन्या यें ;मिसिंग गर्ल्साद्ध को लेकर खतरे की घंटी बजाई है और 6 वर्ष से कम उम्र की जनगणना आंकड़ों का अलग से मूल्यां कन करने पर जोर दिया है। जनगणना 2011 के मुताबिक बाल लिंगानुपात घटकर 919 बालिका प्रति 1000 बालक हो गया है। हरियाणाए पंजाबए दिल्ली ए महाराष्ट्रद और गुजरात जैसे विकसित राज्यब भी राष्ट्री य औसत से काफी पीछे हैं। दिल्ली में बाल लिंगानुपात ;871 बालिकायेंध्1000 बालकद्ध सर्वाधिक कम है। यपिय राष्ट्रीीय स्त।र पर लिंगानुपात एक सकारात्मबक ट्रेंड को दर्शाता हैए पर बाल लिंगानुपात का गिरना गहरी चिंता का विषय है। महिला जन्म दर के गिरने का एक बड़ा कारण जन्मह के समय कन्याबओं के प्रति हिंसात्महक व्य्वहार भी माना जाता है।
एक ताजा अध्य्यन ;2011द्ध से पता चला है कि 1980 से लेकर 2010 के दौरान करीब 1ण्2 करोड़ कन्या भ्रूण को गर्भपात के जरिए समाप्त् किया गया। मेक फर्सन ;2007द्ध ने भी पाया था कि प्रत्येकक वर्ष भारी संख्याा में गर्भपात सिर्फ इस वजह से कराया जाता है कि वे कन्याथ भ्रूण हैं। यह भी उल्ले खित किया गया है कि सम्परन्नस और शिक्षित परिवारों में भी लिंग को लेकर गर्भपात कराने की प्रवृत्ति पाई जाती है। यदि पहले से कन्या है तो दूसरे और तीसरे जन्मे में कन्याी भ्रूण की वजह से गर्भपात ज्यापदा होते हैं। महिलायें और बच्चेर अच्छें तादाद के साथ जनसंख्याम का महत्वभपूर्ण हिस्सात हैं और वे राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी महिलायें और कन्यामयें असमानता और बहुअयामी अभाव का सामना कर रही है और जब तक भेदभाव का यह कुचक्र समाप्तय नहीं होता तब तक समावेशी विकास संभव नहीं है। किसी ने सच कहा है कि श्जब हम एक पुरूष को शिक्षित करते हैं तो हम एक व्यनक्ति को शिक्षित कर रहे होते हैंय परन्तुए जब हम एक कन्याेध्महिला को शिक्षित करते हैंए हम पूरे परिवार या कहें तो पूरे राष्ट्रक और मानवता को शिक्षित कर रहे होते हैं।श्
कई महिलाओं ने विभिन्ने क्षेत्रों में राष्ट्री य और अंतर्राष्ट्रीहय स्त रों पर ऊंचाइयों को छुआ है। यदि उनके माता.पिता भी कन्याम भ्रूण हत्याऔ को अपनाते तो समाज के विकास में हम उनके योगदान से वंचित रहते।
कन्यान और महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए किए गए उपाय और पहल निम्ना हैं रू
ऽ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ. श्श् प्रधानमंत्री ने हाल में ही इस योजना का शुभारम्भक किया। योजना का एक उद्देश्ये निम्ने बाल लिंगानुपात वाले 100 जिलों में स्थिति को सुधारना है और यह माना जा रहा है कि यदि इसे सही ढंग से क्रियान्वित किया गया तो यह भारत को एक आधुनिक लोकतंत्र बनाने में बेहद कारगर होगा।
ऽ सेव द गर्ल चाइल्डं का उद्देश्य लिंग के आधार पर गर्भपात को समाप्तं करना है ताकि कन्या भ्रूण हत्या से निजात मिले।
ऽ भारत सरकार ने 2001 को श्महिला सशक्तिकरण ;स्वकशक्तिद्ध वर्षश् घोषित किया थाय राष्ट्री य महिला सशक्तिकरण नीति लागू की गई।
ऽ कन्यासओं को जीवन के विभिन्नल चरणों में सशर्त नकद प्रोत्साहन और छात्रवृत्तियां दी जाती हैं और एकध्दो कन्यावओं के माता.पिता के लिए उच्चो पेंशन लाभ का भी प्रावधान है।
ऽ बालिकाओं को सशक्तिकरण के लिए लाडली योजना शुरू की गई है और राज्यों् में भी इस तरह की योजनायें चलाई जा रही हैं।
ऽ सुकन्याल समृद्धि योजनाए बालिका समृद्धि योजना और किशोरी शक्ति योजना
कन्या ओं से संबंधित कुछ मुद्दों को राष्ट्रीनय बाल नीतियों में समाहित किया गया है और निम्न कार्यक्रमों के तहत उन पर ध्यारन दिया जाता है रू
ऽ राष्ट्री य बाल नीतिए 1974
ऽ राष्ट्री य बाल कार्य योजनाए 2005
ऽ प्री.नेटल डेग्नोास्टिक टेक्नी7क्सा.रेगूलेशन एण्ड प्रीवेन्शजन ऑफ मिसयूज ;पीएनडीटीद्ध एक्ट.ए 1994
ऽ प्री. कॉन्सेोप्शिनए प्री.नेटल डेग्नो्स्टिक टेक्नीशक्सन.रेगूलेशन एण्ड प्रीवेन्शकन ऑफ मिसयूज ;पीसीपीएनडीटीद्ध एक्टए 2004
ऽ देह व्याकपार ;इमोरल ट्रेफिकद्ध रोकथाम अधिनियमए 1986
चूंकि बाल लिंगानुपात तेजी से घट रहा है। सर्वोच्चल न्यारयालय ने कन्या् भ्रूण हत्याश जैसी सामाजिक बुराई की रोकथाम के लिए राज्योंे को उन परिवारों को प्रोत्सानहित व लाभान्वित करने के निर्देश दिए हैं जो कन्याओं का श्सम्माान और आदरश् करते हैं।
समाज में कन्याहध्महिला के सकारात्म क छवि स्था पित करने के लिए नीति निर्धारकोंए योजनाकारोंए प्रशासकोंए प्रशासनिक एजेंसियों और मुख्यम रूप से समुदायों को लिंग भेदी मानसिकता के खिलाफ जागरूक करना बेहद जरूरी है।
ग्रामीण व कमजोर वर्ग समेत सभी महिलाओं को तत्कांल शिक्षित और सशक्त करना जरूरी है। इससे परिवार और समुदाय में उनकी स्थिति सुधरेगी। महिला सशक्तिकरण से ही बहुअयामी प्रगति होगीए साथ ही रूढ़ीवादी मान्य ताओं व गैरवैज्ञानिक प्रचलनों से निजात मिलेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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