घिरती सांझ का अंधियाराए महिलाओं के कुछ झुंड घूंघट से मुँह ढके कुछ किशोरियों के साथ गांव की दहलीज से निकल कर तेजी से गांव से दूर खेतों की तरफ जा रही हैंए पास की सड़क किनारे कुछ महिलायें बैठी हैंए जो सड़क पर वाहन की रोशनी पड़ते ही तेजी से उठ कर पीछे की तरफ चल देती हैं। ये तमाम लड़कियां और महिलायेंए वो हैं जो शौच जाने के लिये पीले पड़ते जर्द चेहरों के साथ सांझ गहराने का इंतजार करती हैं ताकि शौच के लिये जा सकेंए या सुबह होने से पहले अंधेरे में घर से बाहर खेतों में या जंगलों मे शौच के लिये चली जाती हैं। यह स्थिति सिर्फ शहरी आबादी से दूर गांवों की ही नहीं है बल्कि शहर की छोटी या यूं कहें गरीब बस्तियों की भी हैए जहां महिलाओं को तो शौच से निवृत होने के लिये शाम का इंतजार करना पड़ता है और पुरूषों को रेल की पटरियों या इधर.उधर भटकना पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार आज़ादी के तकरीबन 68 साल बादए आज भी भारत में 62 करोड़ लोग यानी लगभग आधी आबादी खुले में शौच के लिये जाती है। खासकर महिलाओं एवं बच्चियों द्वारा खुले में शौच करने की मजबूरी हमारे लिए बेहद शर्मिंदगी की बात है। आलम यह है कि अनेक गर्भवती माताएं पेट भर खाना महज इसलिये नही खाती है क्योंकि वक्त बेवक्त शौच जाने जैसी बुनियादी सुविधा उन्हे हासिल नहीं है। नतीजतन गर्भ में पल रहा बच्चा तक कुपोषण का शिकार हो जाता है। तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में आज भी 12 करोड़ शौचालयों की कमी है। हालांकि निराशा के इस आलम में एक राहत की बात है कि शौचालय बनाना सरकार की अब सर्वोच्च प्राथमिकता बन गया है। इसी समस्या ने निबटने के लिये सरकार की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में वित्त वर्ष 2015.16 का बजट पेश करते हुए ऐलान किया कि उनकी सरकार आने वाले सालों में लगभग 6 करोड़ शौचालय बनाएगी। इसमें 2014.2015 तक 50 लाख शौचालय बना भी लिए गए हैं।
प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी खुद साफ.सफाई को लेकर श्स्वच्छ भारत अभियानश् पर काफी जोर देते रहे हैं। सरकार का यह ऐलान इसी दिशा में एक कदम माना जा रहा है। महात्मा गांधी शौचालय को श्सामाजिक बदलाव के औजारश् के तौर पर देखते थे। गांधीजी को एक प्रेरणा के रूप में रखते हुए गत 02 अक्तूबर को श्स्वच्छ भारत अभियानश् शुरू किया गयाए ताकि वर्ष 2019 में गांधीजी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ तक गांधीजी के श्स्वच्छ भारत के सपनेश् को साकार किया जा सके। महात्मा गांधी ने हमेशा स्वच्छता पर बहुत जोर दिया। उनका कहना था कि श्स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरीश् है।
शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा की कमी के कारण लोगों को खुले में शौच जाने के लिये मजबूर होना पड़ता है। निश्चय ही यह देश की एक बड़ी समस्या है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश भर में 53 प्रतिशत घरों में आज भी शौचालय नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों के 69ण्3 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। सिर्फ गांवों की ही बात करें तो ज्यादातर राज्यों में स्थिति बेहद खराब हैं। झारखंड के 92 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। ओडिशा के 85ण्9 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। छत्तीसगढ़ के 85ण्5 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। बिहार के82ण्4 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। राजस्थान के 80ण्4 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के 78ण्2 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं।
पिछले तकरीबन 20 वर्षों के दौरान इस मोर्चे पर हुई प्रगति के बावजूद पूरी दुनिया में सर्वाधिक लोग भारत यानी अपने देश में ही शौचालय न होने या आदत अथवा प्रवृत्तिे के कारण खुले में शौच करते हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता के अनुसारए आदत की वजह से खुले मे शौच जाने का तर्क गले ही नहीं उतरता है। यह सभी जगह एक मजबूरी है। अच्छा है अब यह समस्या मुख्य एजेंडा बन गई है। खुले में शौच की शर्मनाक समस्या से वर्ष 2019 के आखिर तक निजात पाने संबंधी प्रधानमंत्री के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पाने के लिए सभी से इसमें योगदान अथवा श्रमदान करने का आह्वान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉरपोरेट सेक्टर से भी अपील की है कि वे स्कूलों में बच्चियोंए लड़कियों के वास्ते शौचालय बनवाने के लिए आगे आएं। इसी प्रयास के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान में लोगों की अधिक से अधिक सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय कैबिनेट ने ष्स्वच्छ भारत कोषष् का गठन किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत सप्ताह इसकी मंजूरी दे दी। स्वच्छ भारत मिशन में दान देकर देश.विदेश में बैठे लोग आयकर छूट प्राप्त कर सकते हैं। इस दान की धनराशि का उपयोग नये शौचालयों के निर्माण के साथ पुराने शौचालयों की मरम्मत और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में बंद पड़े शौचालयों को चालू करने में किया जाएगा। सरकारीए प्राइमरी व माध्यमिक स्कूलों के साथ आंगनवाड़ी में भी शौचालय बनाने पर जोर दिया जाएगा। लड़कियों के स्कूल में शौचालय बनाने को अहम प्राथमिकता दी जाएगी। शौचालयों में पानी की आपूर्ति की लाइनों की मरम्मत और स्वच्छता कर्मियों को प्रशिक्षण देने में यह धनराशि खर्च की जायेगी। हालांकि इस कोष को नवंबर में ही लांच कर दिया गया थाए पर कैबिनेट के ताजा फैसले से इसे और प्रोत्साहन मिल गया है। गौरतलब है कि किशोरियों की एक बड़ी संख्या स्कूलों मे शौचालय नहीं होने अथवा उनके खस्ताहाल होने की वजह से प्राईमरी शिक्षा के बाद ही स्कूल छोड़ देती है। यह भी सच है कि बच्चियों और महिलाओं के खुले में शौच के लिए जाने के दौरान वह यौन हिंसा की शिकार हो जाती हैंए शौचालय न होने का बड़ा सामाजिक असर महिलाओं की सुरक्षा और साक्षरता पर भी पड़ रहा है। स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से साफ़.सुरक्षित शौचालय के अभाव मेंए किशोर उम्र की लड़कियां अक्सर स्कूल जाना छोड़ देती हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक.करीब 47 फ़ीसदी लड़कियां स्कूल में शौचालय ना होने की वजह से स्कूल छोड़ रही हैं। इसके अलावा 11 से 14 वर्ष उम्र की लगभग 6 फ़ीसदी लड़कियों का स्कूल में नाम तक नहीं लिखवाया जा रहा।
बजट से पूर्व भी केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कहा था कि श्स्वच्छ भारत मिशनश् के तहत बनने वाले सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि मिशन के तहत 25 महिलाओं पर एक सामुदायिक शौचालय सीट और 50 महिलाओं पर एक सार्वजनिक शौचालय सीट का निर्माण किया जाएगा। जबकि 35 पुरुषों पर एक सामुदायिक शौचालय सीट व 100 पुरुषों पर एक सार्वजनिक शौचालय सीट का निर्माण किया जाएगा।
हालांकिए ष्खुले में शौचष् आसानी से टाले जा सकने वाली डायरिया जैसी बीमारी का एक अहम कारण है और सिर्फ इसके कारण 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 563 बच्चे हर दिन काल के गाल में समा जाते हैं। खुले में शौच के चलते ढेर सारी बीमारियां हमारे देशवासियों को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही हैं। इससे हम कमोबेश अनभिज्ञ हैं। इसके अलावा अस्वच्छ भारत के कारण पर्यटक नाक.भौं सिकोड़ते हैं। इस वजह से भी देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह नहीं बढ़ पाता है। हैरानी की बात है कि 1986 से अब तक शौचालय बनाने पर 18 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और ये रकम भारत के श्मिशन मंगलश् पर खर्च से 40 गुना ज्यादा है। पिछले 30 साल में 10 करोड़ शौचालय बनेए लेकिन हालात खास बेहतर नहीं हुए। खुशी की बात यह है कि अब जा कर इतनी बड़ी इस समस्या को सर्वोच्च प्राथमिकता माना गया है। खुले में शौच करने वाले विकासशील देशों को देखें तो इसके सबसे ज्यादा त्रस्त होने वालों में भारतीय हैं। बांग्लादेश और नेपाल में भी हालात भारत से बेहतर हैं। आंकड़े निराशाजनक जरूर हैं पर एक उम्मीद सी जगी है कि अब खुले में शौच करने की समस्या शीघ्र ही समाप्त होगी। सभी के लिए शौचालय.सुविधा सुनिश्चित करने के लिए हमें राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति अब नज़र आने लगी है। लगता है शौचालय जैसी सुविधा का बुनियादी हक सभी को मिलेगा और स्वच्छ भारत एक हकीकत होगा। घर की कोई बेटी.बहू पीले पड़ते जा रहे चेहरे से शौच के लिये शाम का इंतजार नही करेगी और कोई बच्चा या पुरूष शौच जाने के लिये रेल की पटरी या इधर.उधर किसी कोने के लिये नही भटकेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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