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मानसिक रोगियों के लिये रोजगार एवं सामाजीकरण की सुविधायें हो। 10 प्रतिषत मानसिक रोगी कार्य करने में सक्षम होते है।

Posted on 16 March 2015 by admin

लखनऊ जैसे शहर में यह प्रस्तावित किया जाता है कि ष्षारीरिक विकलांगता की ही भांति, मानसिक रोगियों को भी रोजगार के अवसर प्रदान किये जाये। मानसिक रोगियों के प्रति नकारात्मक सोच छोड़ना जरूरी है क्योकि यह भी देखा गया हेै कि कभी कभी तो सामान्य समाज की अपेक्षा इन व्यकितयों की कार्यक्षमता और कार्यकुषलता अधिक सराहनीय होती है। इन रोगियों में सभी गंभीर रोगी नहीं होते है तथा इनमें से 70 से 80 प्रतिषत को कार्य में लगाया जा सकता है। मदद और पुनर्वास इन्हें रोजगार में लगाने में बहुत सहायक होता है। अनुमानतः उत्तर प्रदेष में 12 प्रतिषत मानसिक रोगी है जिनमें 2 प्रतिषत गंभीर रूप से पीडि़त है। परिणाम यह है कि प्रायः 60 से  70 लाख व्यक्ति या तो असहाय जीवन बिताते है या आत्महतया करने पर मजबूर हो जाते है। अथवा विक्षप्ता अवस्था में भिखारी का जीवन व्यतीत करते है। भारत जैसे कल्याण कारी राष्ट्र के लिए यह अतयन्त षर्मनाक है।

दि रिचमण्ड फैलोषिप सोसाइटी ;इण्डियाद्ध की लखनऊ षाखा ;नव उदय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, विराज खण्ड-5, गोमती नगर, लखनऊद्ध ने षनिवार 14 मार्च 2015 को ;दोहपर 2.30 से 5.30 बजेद्ध अपना वार्षिकोत्सव मनाया और 10 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में एक कार्यषाला श्उŸार प्रदेष में मनोरोगियों के पुनर्वास की चुनौतियाँश् का आयोजन किया।
माननीय डाॅ0 दिनेश शर्मा, महापौर, लखनऊ और श्री आषुतोष टण्डन ‘गोपाल जी’ विधायक लखनऊ पूर्व, विषिष्ट अतिथि थेे। इस अवसर पर एक स्मारिका का विमोचन किया गया जिसमें सोसाइटी के विजन, मिषन एवं मनोरोगियों के उपचार, कल्याण तथा पुनर्वास और इस दिषा में हमारी उलब्धियों की जानकारी दी गयी।
दि रिचमण्ड फैलोषिप सोसाइटी ;इण्डियाद्ध की लखनऊ षाखा का आरम्भ 10 वर्ष पूर्व मार्च 2005 में मनोरोग से ग्रसित व्यक्तियों को राहत देने एवं उनके परिवारजनों की व्यथा को कम करने के उद्देष्य से एक किराये के भवन से किया गया था और 2006 से डे केयर सुविधा की षुरूआत की गयी। मुख्य उद्देष्य था जन साधारण को मानसिक स्वास्थ्य और मनोरोगों के बारे में जागरूक करना, इस सन्देष का प्रसार करना कि मानसिक रोग अभिषाप नहीं है, अन्य रोगों की भाँति इनका भी इलाज सम्भव है, समुचित उपचार एवं पुनर्वास द्वारा एक स्वावलम्बी और सम्मानित जीवन प्राप्त कर पाना भी सम्भव है। अभिभावकों ने दि रिचमण्ड फैलोषिप सोसाइटी से प्रेरित होकर 2009 में एक संगठन मनोरोगी कल्याण संस्थान बनाकर सोसाइटी के कार्यक्रमों को भरपूर सहयोग देने की पहल की। हम धीरे-धीरे अनेक बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ते ही रहे। अपने षुभचिन्Ÿाकों व सहयोेगियों की मद्द और षुभकामनाओं के साथ हमने सफलतापूर्वक 10 वर्ष पूरे कर लिए। हमारी सेवाओं और प्रषिक्षण से लाभान्वित प्रषिक्षणार्थियों द्वारा प्रस्तुत रंगारंग कार्यक्रम और उनके द्वारा निर्मित विभिन्न वस्तुओं, कलाकृतियों की प्रदर्षनी से लोगों को इसका आभास हो गया।
यह बतलाते हुए खुषी हो रही है कि अब हमारे पास गोमती नगर में अपना भवन है जहाँ पर निम्नलिखित सुविधाएँ उपलब्ध हैं:
    बाह्यरोगी परामर्ष
    दिवा-परिचर्या तथा व्यावसायिक प्रषिक्षण
    अल्पकालिक आवासीय सुविधा
    जन जागरूकता एवं प्रसार कार्यक्रम
    सूचना प्रकाषन, प्रषिक्षण एवं षोध
‘नव उदय’ की सोच एवं कार्यषैली पारम्परिक मानसिक अस्पतालों से एकदम अलग है। मानसिक अस्पताल का कार्य प्रायः रोगी को उपचार द्वारा ठीक करने तक सीमित रहता है। नव उदय में उपचार के साथ-साथ रोगी के पुनर्वास पर भी ध्यान दिया जाता है। नव उदय में अस्पताल के स्थान पर एक घर जैसा परिवेष देने का प्रयत्न किया जाता है। यहाँ पर रोगी को एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में अपने खोई हुई क्षमताओं को समझने और निखारने का अवसर मिलता है। हमारा मुख्य उद्देष्य मनोरोगियों को उपचार एवं पुनर्वास द्वारा एक स्वावलम्बी सम्मानपूर्ण जीवन के लिए प्रेरित कर उन्हे परिवार एवं समाज से जोड़ना है। हमारी योजना संस्थान को एक ऐसे आदर्ष केन्द्र के रूप में विकसित करने की है जहाँ से अन्य स्थानों में पुनर्वास कार्य आरम्भ करने के लिए लोगों को समुचित प्रषिक्षण, प्रषिक्षित कार्यकर्ता एवं अन्य सुविधाएं प्राप्त हो सके। प्रत्येक जनपद में  सामुदायिक पुनर्वास की सुविधाओं वाला एक पुनर्वास केन्द्र का होना अनिवार्य हो और मानसिक स्वास्थ्य स्वयं-सेवक उपलब्ध हो। इस कार्य के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता जुटाना कठिन समस्या है। इसके लिए राज्य एवं प्रदेष सरकार को ध्यान देना और समुचित आर्थिक सहायता उपलब्ध करना बहुत जरूरी है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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