किसान मंच भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ 23 फरवरी व 24 फरवरी को नई दिल्ली स्थित जन्तर मंतर पर देश के अनेक किसान संगठनों के साथ आंदोलन में शामिल हो रहा है। किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने बताया कि देश के किसानो को अच्छे दिन का भरोसा देने वाली केन्द्र सरकार ने करोड़ों भोले भाले किसानो कि पीठ में छूरा घांेपा है। नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश देश के किसानों की भावनाओं को आहात करने वाला है। श्री दीक्षित ने बताया कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 1894 में अंग्रेज भारत लेकर आए थे। इस दमनकारी कानून में अंग्रेजों ने ऐसी व्यवस्था बनाई थी कि देश के किसान सरकार के खिलाफ किसी भी कोर्ट में अपनी जमीनें बचाने की अपील तक नहीं कर सकते थे। वहीं अब मोदी सरकार ने अंग्रेजों की हुकुमत के नक्शे कदम पर चलते हुए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को और कठोर व दमनकारी बनाकर लागू करने का काम किया है। किसानों की इस व्यथा से विचलित होकर प्रख्यात समाज सेवी अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में देश के किसान संगठन एक जुट होकर जंतर मंतर पर करोड़ों किसानों के हितों के संर्घष के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। श्री दीक्षित ने बताया कि 23 फरवरी को दोपहर 1 बजे उत्तर प्रदेश किसान मंच के सैकड़ों कार्यकर्ता 1 प्राईवेट पेपर मिल कालोनी निशातगंज महानगर बाल्मीकी पार्क में एकत्र होकर निजी वाहनों से वाया सीतापुर, लखीमपुर, शाहजहांपुर फरुखाबाद, हरदोई, बरेली पीलीभीत होते हुए जंतर मंतर नई दिल्ली पहुंचेगंे। और आंदोलन में शामिल होगंे। श्री दीक्षित ने कहा कि देश के किसानों को नाखुश करके कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता। जब गांव खुशहाल होगा तभी राष्ट्र खुशहाल होगा और तभी देश भी विकसीत हो सकेगा। किसान की उन्नति से ही देश की उन्नति होती है। किसानों की अनदेखी करके खुशहाली का रास्ता खोजना बेईमानी साबित होगी। किसान मंच का इतिहास है कि वह किसानों के हितों के लिए सदैव संर्घषशील रहा है। किसान मंच के संस्थापक स्व वी पी सिंह पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दादरी में आंदोलन चलाया। तत्कालिक केन्द्र सरकार को झुकने पर मजबुर कर दिया था। अंततः किसानों की जीत हुई थी। यही गलती अब वर्तमान मोदी सरकार ने औद्योगिक घरानो को फायदा पहुंचाने के लिए की है। और अंग्रजों के तरह दुगलकी कानून बनाने का काम किया। औद्योगिक घरानों के तलवे चाटने वाले सरकार की यह सबसे बड़ी भूल होगी। देश का किसान जाग गया तो केन्द्र सरकार को दिया दीपक लेकर एमपी एमएलए खोजने पड़ेगंे। लेकिन तब भी उन्हे वह हासिल नहीं होगंें। किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून लाकर भाजपा अपनी नाव को स्वयं डूबोने का कार्य कर रही है। प्रेस क्लब में किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष शेखर दीक्षित, वरिष्ट मार्ग दर्शक स्वामी विद्या चैतन्य, जिला अध्यक्ष योगेश त्रिपाठी, किसान मंच के मंडल संयोजक राम खिलावन पासी, किसान नेता अखिलेश वर्मा, अरशद अली, सुरेन्द्र पाल, योगेन्द्र त्रिपाठी आदि लोग उपस्थित थे।
भूमि अधिग्रहण का विरोध क्यों?
सन् 1894 मंे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश भारत में अंग्रेज लाए थे। तब इस कानून की आड़ में देश के किसानों की जमीने जबरन कौडियों के दाम अधिग्रिहित की जाती थी। हमारे देश के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुती देने वाले राष्ट्रभक्त शहीद भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुना दी गई और जब वे जेल में बंद थे तब उस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने जितने भी इंटरव्यू पत्रकारों को दिए सबमें उन्होने यही कहा था कि भारत में सबसे ज्यादा दमनकारी कानून कोई है तो वह भूमि अधिग्रहण ही है। वहीं स्वतंत्रता संगा्रम के उत्तर प्रदेश के महानायक का्रंतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ किसानो को जागरुक करने के लिए अंग्रजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। और किसानों के एक जुट करने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ पर्चे बटवां कर देश के किसानों को जागरुक किया था। किसानों पर इस जुल्म की दास्तान एक सौ पच्हत्तर वर्षाें से जयादा की है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में 1994 में मामूली संसोधन किया गया। फिर 2013 में यूूपीए की सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में संसोधन करते हुए थोडी राहत दी। और भूमि लेने पर 80 फीसदी किसानो की सहमति आवश्यक कर दी। और भी जैसे बहुफसली जमीनों के जगह पहले बंजर भूमि का ही अधिग्रहण करने का मामूली संसोधन किया था। इस फैसले को पलटते हुए मोदी सरकार अब देश भर के किसानों की जमीनों चाहे उसमें खेती करके किसान अपना जीविकोपार्जन करता हो उसे अधिग्रहित कर सकते हैं। यह कानून मोदी सरकार ने अंग्रेजों से दो हाथ बढ़कर और कठोर बना दिया है। इससे साफ प्रतीत होता है कि औद्योगिक घरानों के एहसानों को केन्द्र सरकार चुकता करने के लिए किसानों के खिलाफ आमादा हो गई है।
केन्द्र में सत्तारुढ़ मोदी सरकार ने 30 दिसंबर 2014 को भूमि अधिग्रहण अध्यादेश बिना संसद में चर्चा कराए राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया था। राष्ट्रपति महोदय ने 31 दिसम्बर 2014 को अपनी मोहर लगा दी। बताते चलें कि नए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में किसानों का सबसे बड़ा हथियार जो 80 फीसदी किसानों का सहमति का अधिकार था उसे मोदी सरकार ने समाप्त कर दिया। कहने का अर्थ है कि अब सरकार किसानो के बिना सहमति के उनकी भूमि कहीं भी कभी अधिग्रहित कर सकती है। और उसमे किसानो की कोई सहभाविका नहीं होगी। और यह भी जरुरी नहीं होगा कि उनकी भूमि बहुफसली है या बहुउपजाऊ है। सरकार खेतों से लहलहाती फसलों वाली जमीनों को भी किसानों से छीन सकती है। और वह अपने मर्जी से किसानों को उसका मुआवजा देगी।
श्री दीक्षित ने कहा कि किसान मंच किसान हितों के इस संघर्ष को तब तक जारी रखेगा जब तक यह अध्यादेश वापिस नहीं लिया जाता । किसान मंच उन्नाव के क्रांतिकारी चन्दशेखर आजाद व देश के लिए अपनी कुर्बानी देने वाले शहीदे आजम भगत सिंह को इस काले कानून को समाप्त करवाकर सच्ची श्रद्वांजली देना चाहता है। किसान मंच किसान हितों के प्रति संकल्पित है। आईए हम सब मिलकर किसान विरोधी कानून को उखाड़ फेंकने की मुहिम में शामिल होकर अन्नदाता के हौसलों को उड़ान दें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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