ऽ आजम राज्यपाल विवाद - मंत्री परिषद का संयुक्त दायित्व इस पूरे प्रकरण पर मुख्यमंत्री जी की असाधारण चुप्पी स्पष्ट करती है कि मुख्यमंत्री की सहमति से राज्यपाल पर टिप्पणियां हो रही है। मुख्यमंत्री यदि अपने ही मंत्री आजम खां द्वारा राज्यपाल पर किये जा रहे हमलों से असहमत है तो क्यों नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, तत्कालीन राज्यपाल ज्ञानी जैल सिंह, मंत्री के.के. तिवारी के प्रकरण को याद कर लेते उनके पास यह उदाहरण भी मौजूद है। मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद पर बने रहने के अधिकारी है।
ऽ आजम खां निहित स्वार्थो में लगातार राज्यपाल के असंवैधानिक पद पर टिप्पणियां करते रहे है। चाहे वे टी. राजेश्वर राव हो अथवा बी.एल. जोशी समय-समय पर राज्यपाल निशाने पर रहे है।
ऽ एक तरफ सरकार राज्यपाल के खिलाफ मुख्यमंत्री के मौन सहमति से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले है दूसरी तरफ राज्यपाल की सदाशयता व संवैधानिक मर्यादों के कारण सरकार के असत्य मिथ्या तत्थों से भरपूर भाषण को पढ़ रहे है। जो तत्थ है उसमें प्रदेश में दागी और दागदार यादव सिंह के प्रकरण का जिक्र नहीं है।
ऽ राज्य की कानून व्यवस्था बद से बदतर है, किसान को उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा, लगातार मा0 न्यायालय के परिवेक्षण के बावजूद सरकार गन्ना किसानों का भुगतान नहीं करा पा रही है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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