मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव रविवार को नई दिल्ली में आयोजित होने वाली नीति आयोग की शासी परिषद की पहली बैठक में आयोग के कार्यांे, रूपरेखा एवं कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही, श्री यादव संविधान की संघीय व्यवस्था के मद्देनजर केन्द्र सरकार के स्तर से राज्यों को अधिक से अधिक वित्तीय सहायता एवं सहयोग दिए जाने की भी पुरजोर वकालत करेंगे। वे इस बात पर भी बल देंगे कि वित्तीय संसाधनांे के आवंटन में विवेक की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। साथ ही, यह उम्मीद भी जाहिर करेंगे कि केन्द्र सरकार राज्यों की वर्षाें से चली आ रही कठिनाईयों के मद्देनजर बगैर किसी भेदभाव के, स्वयं पहल कर राज्यों को मदद उपलब्ध कराएगी। इसके साथ ही, मुख्यमंत्री द्वारा इस बात पर भी बल दिया जाएगा कि सभी केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं में राज्यों को कम से कम 90 प्रतिशत अनुदान राशि मुहैय्या करायी जाए।
यह भी उम्मीद की जा रही है कि मुख्यमंत्री केन्द्र और राज्य के बीच नियमित संवाद पर बल देंगे। साथ ही, इसे आवश्यक और अपरिहार्य बताते हुए नवगठित संस्था में भी ऐसी प्रणाली को विकसित करने की बात कहेंगे। वे राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न सेक्टरों में स्थायी कार्य दल के गठन की भी मांग करेंगे, जिनमें सेक्टर से जुड़े मंत्रालयों के साथ ही राज्यों की भी पूरी नुमाइंदगी भी हो। इन कार्याें दलों के
जरिए भावी योजनाओं की रूप-रेखा तय करने और मौजूदा योजनाओं की दिक्कतों को दूर करने के लिए गहन विचार-विमर्श होना चाहिए और उनकी संस्तुतियांे पर नीतिगत फैसले लिए जाना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री उल्लेख कर सकते हैं कि संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत अन्तर्राज्यीय परिषदों का गठन हुआ है। यह परिषद राज्यों के बीच उन विवादों के निस्तारण पर विचार-विमर्श करती है, जिसका सम्बन्ध एक से अधिक राज्य से हो। इसी प्रकार राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956 के तहत भी क्षेत्रीय परिषद गठित है, जिसकी बैठक समय-समय पर आयोजित हो रही है। संवैधानिक अधिकारों द्वारा गठित इन परिषदों और नीति आयोग के अधीन गठित होने वाली
क्षेत्रीय परिषदों के अधिकार और कार्य क्षेत्र में किस प्रकार विभाजन होगा, यह अभी साफ नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री पहले से गठित क्षेत्रीय परिषदों को और मजबूत करते
हुए उनकी नियमित बैठकों के आयोजन पर बल देते हुए इन बैठकों में लिए गए फैसलों को लागू करने के लिए प्रभावशाली व्यवस्था की बात भी कहेंगे। यह सुझाव भी देंगे कि नीति आयोग इन परिषदों में उठाए जा रहे विकास के मुद्दों पर कार्रवाई करे।
दूरगामी नतीजे वाली रणनीति के तहत मौजूदा परिवेश में 10 से 15 साल की दीर्घकालीन योजनाएं बनाए जाने की आवश्यकता से सहमति जताते हुए मुख्यमंत्री
समयबद्ध ढंग से पंचवर्षीय योजनाएं बनाने की वर्तमान प्रणाली को कायम रखने का सुझाव भी देंगे। वे यह भी मांग करेंगे कि पंचवर्षीय योजनाओं को अंतिम रूप देने से पहले राज्यों से राजनैतिक एवं अधीकारिक स्तर पर विस्तृत विचार-विमर्श जरूर किया जाना चाहिए। इसी के साथ सेक्टोरल कार्यकारी दलों में राज्यों की समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें जोड़ते हुए दिक्कतों को दूर करने के मुकम्मल इंतजाम होने चाहिए। वे इस बात पर भी बल देंगे कि पंचवर्षीय योजनाओं में साल दर साल वार्षिक योजनाओं पर विचार करते समय उनमें काट-छांट करना अथवा अपेक्षित संसाधनों में कटौती करना उचित नहीं होगा।
श्री यादव यह तथ्य भी सामने रखंेगे कि कुछ केन्द्रीय कार्यक्रम ऐसे हैं जिनकी कठिन शर्ताें और प्रतिबन्धों के चलते मात्र कुछ राज्य ही उनका लाभ हासिल कर पाते हैं। राज्यों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इन शर्ताें और प्रतिबन्धों को लचीला बनाना आवश्यक है। वित्तीय संसाधनों के आवंटन में विवेक की कोई गंुजाइश नहीं रहनी चाहिए, बल्कि पारदर्शी तरीके से वस्तुपरक मानक के जरिए राज्यों के बीच संसाधनों का बंटवारा होना चाहिए। इस बंटवारे में पिछड़े क्षेत्रों/राज्यों की जरूरतों को वरीयता दी जानी चाहिए।
राज्यों को विकास योजनाओं संचालित करने के लिए केन्द्र से स्थानान्तरित होने वाले संसाधनों के विशेष महत्व का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री यह अनुरोध भी करेंगे कि जो भी नवीन संस्था बने वह पारदर्शी हो, वस्तुपरक हो तथा उसके द्वारा राज्यों के पिछड़ेपन, गरीबी के आधार को महत्व देते हुए कार्रवाई की जाए। अभी यह स्थानान्तरण गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के आधार पर किया जाता है। यदि भविष्य में इसमें कोई संशोधन प्रस्तावित होता है तो राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर इसको अन्तिम रूप दिया जाय तथा स्थानान्तरण के मापदण्डों में राज्यों के पिछड़ेपन, गरीबी व जनसंख्या को वरीयता दी जाए।
केन्द्र सरकार द्वारा देश के विकास की मौजूदा चुनौतियों का सामना करने के लिए कतिपय महत्वपूर्ण पहल की गयी है, परन्तु अभी तक यह पहल इरादों तक ही सीमित है। इसके कार्यान्वयन हेतु वित्तीय व अन्य संसाधन तथा राज्यों की सक्रिय सहभागिता आवश्यक होंगी। मुख्यमंत्री यह भी बताएंगे कि केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई पहल तुलना में प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व से ही अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएं संचालित कर रही है जो राज्य की जनता के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
इन योजनाओं में सोलर पावर जनरेशन परियोजना, बालिकाओं को शिक्षित करने हेतु कन्या विद्याधन योजना, सुशासन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी/ई-गवर्नेन्स का अधिक से अधिक प्रयोग, 40 लाख गरीब परिवारों को समाजवादी पेंशन योजना से लाभान्वित करना तथा इस पेंषन योजना को प्राथमिक शिक्षा, चिकित्सा, मातृ एवं शिशु रक्षा तथा बाल पोषण से जोड़ना, प्रदेश में शहरी क्षेत्र में 24 घण्टे व ग्रामीण क्षेत्र में 18 से 20 घण्टे विद्युत आपूर्ति हेतु अवस्थापनाओं का विकास, लखनऊ सहित अन्य बड़े शहरों में मेट्रो योजना का क्रियान्वयन, आगरा से लखनऊ 8 लेन के एक्सप्रेस वे का निर्माण, लखनऊ स्थित चक गंजरिया में निजी भागीदारी से आई0टी0 पार्क का निर्माण शामिल हैं। प्रदेश में विकास की गतिविधियों को सुव्यवस्थित और समयबद्ध ढंग से संचालित करने के लिए राज्य सरकार हर वर्ष विकास का एजेण्डा निर्धारित कर उसे लागू करती है। राज्य सरकार शुरू से ही समाजवादी विचारधारा के आधार पर हर व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, दवा, बिजली और पानी की व्यवस्था करने और उसके सम्मान की रक्षा के लिए कृतसंकल्प है।
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री यह भी बताएंगे कि सुझाए गए नवीन पहलुओं को क्रियान्वित करने हेतु राज्य सरकार पर अत्यधिक वित्तीय बोझ डालने का प्रयास न किया जाय। राज्य को अपने फ्लैगशिप कार्यक्रम को संचालित करने हेतु संसाधन जुटाने में अत्यधिक कठिनाई हो रही है। अतः राज्यों को अपनी विकास परियोजनाओं को संचालित करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को संरक्षित करते हुए केन्द्र की योजनाओं को क्रियान्वित किया जाना श्रेयस्कर होगा। सभी केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं में कम से कम 90 प्रतिशत अनुदान राशि राज्यों को उपलब्ध करायी जाये।
राज्यों की वार्षिक योजनाओं के माध्यम से विकास कार्यो को द्रुत गति से कार्यान्वित करने और अल्प अवधि में सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने हेतु नीति आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में दो राय नहीं है। इस उद्देश्य को सफल बनाने हेतु विभिन्न राज्यों द्वारा किये गये नवीन एवं सफल प्रयोगों को अन्य राज्यों में कार्यान्वित कराने के उद्देश्य से नियमित रूप से कार्यशालायें आयोजित हों, जिनमें राज्यों के सम्बंधित प्रतिनिधि प्रतिभाग करें। इसी के साथ नीति आयोग द्वारा राज्यों के सफल प्रयोगों को अंगीकृत करते हुए राष्ट्रीय कार्यक्रमों में उसका समावेश किया जाये ताकि उनके आधार पर राज्य उसका लाभ उठा सके।
नीति आयोग को सहकारी संघवाद (ब्ववचमतंजपअम थ्मकमतंसपेउ) के सिद्धान्तों पर चलते हुए राज्यों के साथ मिलकर नीतियाॅं बनाते हुए विकास की गति बढ़ानी है। प्रदेशों की अपनी-अपनी प्राथमिकतायें हैं और विकास सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाये जाते हैं। इसलिए सभी राज्यों पर एक ही नीति कारगर नहीं हो सकती। नीतियों में लचीलापन रहना जरूरी है ताकि प्रदेश अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए उसमें बदलाव कर सके।
श्री यादव मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रोजेक्ट मानीटरिंग ग्रुप स्थापित करने के प्रस्ताव पर राज्य सरकार की सहमति की जानकारी भी देंगे। वे यह भी बताएंगे कि राज्य सरकार की अवस्थापना सम्बन्धी अनेक परियोजनाओं को निर्धारित समय-सारिणी में पूरा करने हेतु केन्द्रीय मंत्रालयों से विभिन्न प्रकार की अनापत्तियां व स्वीकृतियां आवश्यक होती हैं। ऐसे प्रकरण समय-समय पर राज्य से सन्दर्भित भी किये गये हैं। वे यह मांग भी करेंगे कि केन्द्र सरकार स्तर पर भी, नीति आयोग व प्रधानमंत्री कार्यालय स्तर पर राज्यों द्वारा सन्दर्भित प्रकरणों के समयबद्ध नियमित निस्तारण व समीक्षा की व्यवस्था हो, जिसमें राज्य सरकार एवं सम्बन्धित केन्द्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि सम्मिलित हों। इस दोहरी व्यवस्था से निश्चित रूप से पूरे देश में अवस्थापना विकास की योजनाओं को तेजी से क्रियान्वित कराया जा सकेगा।
सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री इस बात पर जोर देंगे कि आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर राज्यों को समुचित संसाधन उपलब्ध कराये बिना सबका साथ सबका विकास की परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता। वे उम्मीद जताएंगे कि केन्द्र सरकार राज्यों की वर्षो से चली आ रही कठिनाईयों को दृष्टिगत रखते हुए बिना किसी भेदभाव के स्वयं पहल कर राज्यों को सहायता मुहैया करायेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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