लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने आज यहां विधान भवन में आयोजित ‘भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 77वें सम्मेलन’ का
उद्घाटन करते हुए कहा कि देश की प्रगति में विधायी निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि
राज्यों की प्रगति से ही देश आगे बढ़ सकता है। सदन में जितनी रचनात्मक चर्चा होगी कानून उतने ही बेहतर बनेंगे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश को अच्छा नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री युवा होने के साथ-साथ अनुभवी भी हैं। श्री यादव, मुख्यमंत्री बनने से पहले वे सांसद भी रहे हैं,
इसलिए विधायी निकायों की भूमिका को अच्छी तरह से समझते हैं। सम्मेलन की शुरुआत से पूर्व उन्होंने ‘भारत में संसदीय लोकतंत्र-एक सिंहावलोकन’ नामक
प्रदर्शनी का दीप जलाकर उद्घाटन भी किया। इस मौके पर देश के विभिन्न राज्यों से आए पीठासीन अधिकारियों, आमंत्रित अतिथियों एवं लोकसभा अध्यक्ष का स्वागत करते हुए विधान सभा के अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय ने कहा कि उत्तर प्रदेश अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। 1857 की क्रांति से लेकर देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक यहां के लोगों ने अदम्य साहस और उत्साह के साथ अपने शौर्य का परिचय दिया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में देश को सर्वाधिक 09 प्रधानमंत्री दिए हैं।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा कि आजादी के 67 वर्षाें में लोकतंत्र की जड़े और अधिक गहरी हुईं हैं। देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं पहले से अधिक सुदृढ़ हुई हैं और उनका स्वरूप भी निखरा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संसद और विधान मण्डलों का इतिहास ऐसे पीठासीन अधिकारियों के नाम से भरा है, जिन्होंने संसदीय लोकतंत्र की उच्च परम्पराओं को स्थापित करने और उन्हें सुदृढ़ करने की दिशा में नये आयाम गढ़े हैं। पीठासीन अधिकारियों ने सदन की जिन महान परम्पराओं को अपनी सूझ-बूझ, बुद्धिमत्ता एवं निष्पक्षता से निभाया है उसकी सराहना देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी हुई है।
सदन को लोकतंत्र का मन्दिर बताते हुए श्री यादव ने कहा कि जनता की आशाएं और अपेक्षाएं प्रत्यक्ष रूप से सदन से जुड़ी हैं। इसलिए सदस्यों की पहली प्राथमिकता जनता के विश्वास को सदन के प्रति लगातार मजबूत बनाने की होनी चाहिए। पीठासीन अधिकारी एक जनप्रतिनिधि भी होता है, इसलिए उनकी जिम्मेदारी दोहरी हो जाती है। विगत कुछ वर्षाें से यह अनुभव किया जा रहा है कि पीठासीन अधिकारियों को अनेक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में उन्हे सदन के संचालन एवं उसकी गरिमा बनाए रखने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं। पीठासीन अधिकारियों को सदन का संरक्षक बताते हुए उन्हांेने कहा कि इन्होंने सदैव मर्यादित ढंग से अपने दायित्व का निर्वहन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि विधायी संस्थाएं आजादी के संघर्ष की देन हैं। आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाने में उत्तर प्रदेश विधान मण्डल की सशक्त मंच की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसी मंच से राज्य के महान नेताओं ने राजनैतिक क्रांति और सामाजिक परिवर्तन की आवाज को बुलन्द किया
है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए विख्यात ऐतिहासिक नगर लखनऊ में स्थापित उत्तर प्रदेश विधान मण्डल को देश का सबसे बड़ा
विधान मण्डल बताते हुए उन्होंने कहा कि श्री लाल बहादुर शास्त्री, चैधरी चरण सिंह, श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे महान राज नेताओं ने इसी सदन से होते हुए
देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान सभा में पीठासीन अधिकारी के पद की गरिमा में राजर्षि श्री पुरूषोत्तम दास टण्डन ने जिस परम्परा की नींव रखी, उसे श्री नफीसुल हसन, श्री आत्माराम गोविन्द खेर, श्री मदन मोहन वर्मा, श्री नियाज हसन सहित अन्य सभी अध्यक्षों ने दृढ़ता के साथ निभाया। उन्होंने वर्तमान अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय को इस परम्परा की एक मिसाल बताते हुए विधान परिषद के सभापतियों की भूमिका की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सर सीताराम से लेकर वर्तमान सभापति श्री गणेश शंकर पाण्डेय इस गौरवशाली मर्यादा को बनाए रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। श्री यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने समाजवादी आन्दोलन को पृष्ठभूमि प्रदान की है। इन्हीं आन्दोलनों के संघर्ष से निकले महान समाजवादी नेताओं ने समाजवाद को और अधिक सुदृढ़ किया। डाॅ0 राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विरासत और चैधरी चरण सिंह की विचारधारा को श्री मुलायम सिंह यादव ने और आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने भरोसा जताया कि इस प्रकार के सम्मेलन केवल सदन की पद्धति और प्रक्रिया-नियम सम्बन्धी मुद्दों पर विचार करने के लिए ही नहीं बल्कि राज्यों के विधान मण्डलों की कार्य प्रणाली में एकरूपता लाने में भी सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि उनका यह व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि ऐसे सम्मेलनों में वैचारिक चिंतन से उपजे निर्णयों से लोकतंत्र को लगातार पुष्ट करने का काम किया है। ज्ञातव्य है कि विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन वर्ष 1921 से आयोजित हो रहा है। इस सम्मेलन का भारतीय लोकतंात्रिक प्रणाली का दीर्घ अनुभव है। समय-समय पर यह सम्मेलन विभिन्न राज्यों में आयोजित होते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यह सम्मेलन इससे पूर्व वर्ष 1961 तथा वर्ष 1985 में आयोजित हो चुके हैं। लोकसभा अध्यक्ष सहित विभिन्न प्रदेशों के पीठासीन अधिकारियों एवं आमंत्रित अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन विधान परिषद के सभापति श्री गणेश शंकर पाण्डेय ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की धरती विधायिका को स्वस्थ और प्रभावी दिशा देने में सार्थक होगी।
इस अवसर पर प्रदेश के विभिन्न प्रान्तों के विधान सभा एवं विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी, लोकसभा एवं राज्य सभा के पदाधिकारी आमंत्रित अतिथि, पूर्व पीठासीन अधिकारी आदि उपस्थित थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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