जनता का हथियार व उन्हें समुचित न्याय दिलाने के उद्देश्य से लागू किया गया जनसूचना अधिकार अधिनियम अधिकारियों की उदासीनता के चलते पीडि़तों से दूर होता जा रहा है। समय सीमा व्यतीत हो जाने के बाद भी सम्बन्धित विभाग के अधिकारी मांगी गई सूचना आवेदक को मुहैया नहीं करवा पा रहे है। आवेदक एक वर्ष तक इन्तेजार करके अपनी समस्या लेकर बैठ जा रहा है। तो फिर यह कैसा जनसूचना अधिकार अधिनियम जब लोगों द्वारा मांगी गयी सूचना का जवाब नहीं दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि ऐसा कई मामला प्रकाश में आया है कि सूचना मांगने वाले आवेदक को निर्धारित समय तक सूचना नहीं मिल पाई यहां तक कि राज्य सूचना आयोग में भी अपील करने के पश्चात् भी उन्हें आयोग की कोई सूचना नहीं मिल पायी कि उनकी अपील दर्ज की गयी है या खारित कर दी गयी है। ऐसी स्थिति में आवेदक अपने को ठगा सा महसूस करने लगा है। इसीक्रम में बतातें चलें कि विकास खण्ड बल्दीराय में इन्दिरा आवास आवंटन में खण्ड विकास अधिकारी द्वारा व्यापक रूप से धांधली की गई इसे लेकर क्षेत्र में एक आर.टी.आई. कार्यकर्ता ने क्षेत्र की सभी ग्राम पंचायतों में आवंटित इन्दिरा आवास की पात्रों के नाम समेत सूची के अवलोकन हेतु खण्ड विकास अधिकारी से समय मांगा था लेकिन एक वर्ष बीत गया। अब कार्यकर्ता को समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करायी गयी। इसीक्रम में क्षेत्र में निवासी आर.टी.आई. कार्यकर्ता महेष कुमार साहू एवं ऊषा साहू ने सहारा इण्डिया परिवार के बैंक में लेन देन व पैसा जमा करने के मामले में घपलेबाजी को उजागर करने हेतु लगभग सात माह पूर्व बैंक के उच्चाधिकारी से उक्त अधिनियम के तहत सूचना मांगी थी। लेकिन भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए उच्चाधिकारी कार्यकर्ता को समय सीमा बीत जाने के बाद भी सूचना उपलब्ध नहीं करवाई। आरटीआई कार्यकर्ता ने इसकी शिकायत लिखित रूप से राज्य सूचना आयोग से भी की। लेकिन कई माह तक यह पता नहीं लग पाया कि उसकी शिकायत दर्ज की गयी या खारिज कर दी गयी। ऐसी स्थिति में आरटीआई के खिलाफ कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति से नकारा नहीं जा सकता। फिलहाल जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 का अनुपालन अगर सम्बन्धित अधिकारी निष्पक्ष करें तो शायद जनता का हथियार कहे जाने वाले इस महत्वपूर्ण कानून से भ्रष्टाचार में कमी लायी जा सकती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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