ठंड में कीटों की प्रकोप से बचायें आलू की फसलों को

Posted on 10 January 2015 by admin

जनपद में जबरदस्त पड़ी ठंड की वजह से रबी की मुख्य फसल सहित अन्य फसलों पर कीटों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। शीतलहर व ठंड के प्रकोप से आलू पर कीटों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। समय रहते किसानों ने यदि कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं किया तो फसलों का काफी नुकसान होना तय है।
जनपद में इस बार कड़कड़ाती ठंड ने लोगों को हिला कर रख दिया है। इस बार ठंड के साथ-साथ जबरदस्त कोहरा भी पड़ रहा है। गाॅवों में कोहरा इतना अधिक पड़ रहा है कि दोपहर तक कुछ भी दिखाई नहीं देता है। कड़कड़ाती ठंड व कोहरे का जबरदस्त मार झेल रहे किसानों का मानना है कि वह अपनी जान बचाये या खेती करें। जनपद के अधिकांश क्षेत्र के किसानों ने इस बार गेहूॅं, राई-सरसों, चना, मटर, अरहर आदि फसलों की बुआई की है। ग्रामीण क्षेत्रों में पाला भी पड़ने लगा है। पाले का असर फसलों पर साफ दिखाई देने लगा है। यह पाला गेहूॅं की फसलों के लिए जहां अमृत है तो वहीं राई-सरसों, चना, मटर, अरहर व आलू के लिए काफी घातक सिद्ध हो रहा है। राई-सरसों, चना, मटर आदि में इस समय फूल निकल रहे है। पाले की चपेट में आकर फूल मुरझाा जा रहे है। इन फूलों के मुरझा जाने की वजह से दाने पर भी असर पड़ रहा है। मटर की फसल को रोगों से बचाने के लिए समय पर रोग की पहचान एवं उसकी रोकथाम अति आवश्यक है। मटर की फसल में बुकनी, उकवा व झुलसा एवं फलीबेधक आदि प्रमुख कीट रोग होते है। कृषि विभाग द्वारा दी जा रही जानकारियों से बुकनी रोग में मटर के पौधों में पत्तियां, फलियां तथा तने पर सफेद चूर्ण सा फैलता है, बाद में पत्तिया ब्राउन या काली होकर मरने लगती है। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील 80ई0सी0, 500 मिली या 500-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 12 दिन के अंतराल पर कम से कम तीन या चार बार खेतों में अवश्य छिड़काव करना चाहिए। उकवा रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है और पूरा पौधा सूख जाता है। चार ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज में मिलाकर उपचारित करके मटर की बुआई करनी चाहिए। जिस भी खेत में यह बीमारी हो वहां तीन व चार साल तक इस फसल को नहीं बोना चाहिए। मटर की फली बेधक कीट भूरे रंग का पतंगा होता है जिसके ऊपरी पंख पर सफेद काली धारियां होती है तथा पिछले पंख के किनारे पर बाहरी पारदर्शी लाइन पायी जाती है। पूर्ण विकसित सूडि़यां गुलाबी रंग की होती है। कीट की गिड़ारें फलिया में बन रहे दानों को खाकर नुकसान पहुंचाती है। प्रकोपित फलियां रंगहीन, पानीयुक्त तथा दुर्गन्धमुक्त हो जाती है। फलीबेधक से 5 प्रतिशत प्रकोपित फलियां दिखाई देते ही बेसिलस थूरिजेसिंस 1 किग्रा या फेनवेलरेट 20 ई0सी0 एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। मटर की फसल जब पूर्ण रूप से पक जाये तो उसकी कटाई करनी चाहिए तथा ठीक से सूखाकर उसका भण्डारण करना चाहिए।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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