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2014. अंतरिक्ष विभाग के लिए सफलता का वर्ष वर्षांत समीक्षा.2014

Posted on 03 January 2015 by admin

अंतरिक्ष विभाग ने 2014 के दौरान भारत को उपलब्धियों की सीढ़ी पर चढ़ाने के प्रयासों में कई सफलताएं हासिल की है।
भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान ;जीएसएलवी.डी5द्ध का सफल प्रक्षेपण
देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन वाले भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान ;जीएसएलवी.डी5द्ध का 5 जनवरी 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र ;एसडीएससीद्धए श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण किया गया। जीएसएलवी.डी5 द्वारा निर्धारित भूस्थिर परिवर्तनीय कक्षा में 1982 किलोग्राम वज़न का जीसेट.14 स्था्पित किया गया।
भारतीय नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस.1बी का सफल प्रक्षेपणए भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली ;आईआरएनएसएसद्ध में दूसरा उपग्रह
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रए श्रीहरिकोटा से 04 अप्रैल 2014 को पीएसएलवी.सी24 के जरिए भारतीय नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस.1बीए भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली;आईआरएनएसएसद्ध में दूसरा उपग्रह और 16 अक्टूगबर 2014 को पीएसएलवी.सी26 के जरिए आईआरएनएसएस.1सीए आईआरएनएसएस का तीसरा उपग्रहए का सफल प्रक्षेपण किया गया।
सार्क उपग्रह
भारत ने 30 जून 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रए श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी.सी23 के जरिए 5 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया गया। ये विदेशी उपग्रह दृ ;1द्ध एसपीओटी.7 ;फ्रांसद्धए ;2द्ध एआईएसएटी ;जर्मनीद्धए ;3द्ध एनएलएस 7ण्1ध्सीएएन.एक्स.4 ;कनाडाद्धए ;4द्ध एनएलएस 7ण्2ध्सीएएन.एक्सज5 ;कनाडाद्ध और ;5द्ध वीईएलओएक्सस.1 ;सिंगापुरद्ध हैं।
अब तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ;इसरोद्ध ने विदेशी उपभोक्ताए और इसरो के व्याकवसायिक निकायए एंट्रिक्सस कॉरपोरेशन लिमिटेड के बीच अनुबंध के तहत व्या वसायिक आधार पर 19 देशों के 40 उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। इन उपग्रहों के प्रक्षेपण से 50ण्47 मिलियन यूरो और 17ण्17 मिलियन अमेरिकी डॉलर अर्जित किए गए हैं।
भविष्यर की परियोजनाओं में उन्नमत प्रक्षेपण यान प्रणाली का विकासए बेहतर समाधान के साथ पृथ्वीर के मनचित्र सबंधी अवलोकन उपग्रहए बेहतर रिजोल्यूशनए उच्चा शक्ति और उच्चा प्रवाह क्षमता वाले संचार उपग्रहए माइक्रोवेव मल्टी स्पेलक्ट्रिल रिमोट संवेदी उपग्रहए मौसम और जलवायु अध्यतयनए क्षेत्रीय नौवहन के लिए उपग्रहों का तारामंडलए मानव अंतरिक्ष विमान के लिए महत्वापूर्ण तकनीकियों का विकास और अंतरिक्ष विज्ञान तथा सौरमंडलीय परीक्षण के लिए उपग्रह विकसित करना शामिल है।
प्रधानमंत्री ने 30 जून 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रए श्रीहरिकोटा में अपने संबोधन में भारतीय अंतरिक्ष समुदाय से एक ऐसे सार्क उपग्रह को विकसित करने के लिए कहा जो हमारे सभी पड़ोसियों को हर प्रकार की सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करे। भारत सरकार के जरिए इसरो द्वारा सार्क देशों के साथ विचार.विमर्श कर सार्क उपग्रह विकास कार्यक्रम के लिए प्रस्तावव तैयार करने की आवश्यरकता है जो सार्क देशों की अंतरिक्ष एप्लीकेशनों और सेवाओं की आवश्यकताओं का समाधान करे।
मंगल उपग्रह अंतरिक्षयान को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थादपित किया गया
24 सितंबर 2014 की सुबह भारत के मंगलयान को 8 छोटे लिक्विे‍ड इंजनों के साथ 440 न्यू2ट्रॉन लिक्विड एपोगी मोटर ;एलएएमद्ध द्वारा मंगल ग्रह के कक्ष में स्थाापित किया गया। भारतीय मानक समय के अनुसार 07रू17रू32 बजे शुरू हुआ लिक्विड इंजन प्रक्षेपण 1388ण्67 सेकेंड तक चला और जिससे यान का वेग 1099 मीटर प्रति सेकेंट तक हो गया। इस परिचालन के साथ ही यान मंगल की कक्षा में प्रवेश कर गया। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इस महत्वयपूर्ण आयोजन के साक्षी बनने के लिए बेंगलोर में इसरो के टेलीमेट्रीए ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क ;आईएसटीआरएसीद्ध में उपस्थित थे। आईएसटीआरएसी में उपस्थित अन्य  गणमान्यों में कर्नाटक के राज्य पाल श्री वजुभाई आर वालाए रेल मंत्री श्री डीण्वीण् सदानंद गौड़ाएरासायन और उर्वक मंत्री श्री अनंत कुमारए कर्नाटक के मुख्यव मंत्री श्री सिद्दारमैयाए अंतरिक्ष राज्य़ मंत्री डॉण् जीतेंद्र सिंहए नागरिक उड्डयन राज्यन मंत्री श्री जीण्एमण् सिद्देश्वयराए संसद सदस्यत श्री प्रह़लाद वी जोशीए कर्नाटक सरकार में परिवहन मंत्री श्री रामलिंगा रेड्डी और कर्नाटक विधान सभा के सदस्यए श्री मुनिराजू एसण्ए इसरो के पूर्व अध्य्क्ष प्रोफेसर यूण्आरण् रावए और अंतरि‍क्ष अनुप्रयोग केंद्र के पूर्व निदेशक प्रोफेसर यशपाल शामिल थे।
मंगल की कक्षा में यान भेजने की प्रक्रिया संतोष जनक रूप से पूर्ण हुई और मंगल यान सामान्य  रूप से कार्य कर रहा था। यह यान अब मंगल की कक्षा में मंगल ग्रह की परिक्रमा कर रहा है जिसकी मंगल न्यूनतम दूरी ;पेरीएप्सीनसद्ध 421ण्7 किलोमीटर पर और अधिक्तम दूरी ;एपोएप्सीूसद्ध 76993ण्6 किलोमीटर है। मंगल की भूमध्यर रेखा के संदर्भ में कक्ष का झुकाव 150डिग्री है। इस कक्ष में यान को मंगल ग्रह का एक चक्ककर लगाने में 72 घंटे 51 मिनटए 51 सेकेंड लगते हैं।
5 नवंबर 2013 को मंगल यान को देश के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी के जरिए पृथ्वीं के कक्षा में स्थापित किया गया था। 1 दिसंबर 2013 को ट्रांस मार्स इंजेक्शन ;टीएमआईद्ध के बाद यान पृथ्वीथ के कक्षा से बाहर निकल कर 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश के लिए पथ पर भेजा गया।
मंगल यान के मंगल ग्रह पर भेजने के सफल अभियान से इसरो चौथी ऐसी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई है जिसने सफलतापूर्वक यान मंगल की कक्षा में भेजा है। आगामी हफ्तों में मंगल यान में गहन परीक्षण किया जाएगा और अपने 5 वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हुए यह यान मंगल ग्रह का क्रमबद्ध अवलोकन शुरू कर देगा।
भारत का तीसरा नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस.1सी का पीएसएलवी.सी26 के जरिए सफल प्रक्षेपण
इसरो के ध्रुवीय उपग्रह पक्षेपण यानए पीएसएलवी.सी26 के जरिए 16 अक्टू बर 2014 को भारतीय मानक समय के अनुसार 0132 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रए श्रीहरिकोटा से भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली ;आईआरएनएसएसद्ध में तीसरा उपग्रहए आईआरएनएसएस.1सी का सफल प्रक्षेपण किया गया। यह पीएसएलवी का लगातार 27वां सफल अभियान था। इस अभियान के लिए पीएसएलवी के श्एक्सआएलश् कॉन्फिगरेशन का इस्तेिमाल किया गया था। इससे पहले यान के इसी कॉन्फिगरेशन का 6 बार सफल उपयोग किया गया था।
अंतरिक्ष राज्यी मंत्री डॉण् जीतेंद्र सिंह ने एसडीएससीए श्रीहरिकोटा के अभियान नियंत्रण केंद्र से प्रक्षेपण को देखा था।
पहले चरण में इग्निशन के साथ पीएसएलवी.सी26 को छोड़े जाने के बाद योजना के अनुसार स्टे ज एंड स्ट्रे प ऑन इंग्निशनए हीट.शील्डड सेपरेशनए स्टे ज एंड स्ट्रेनप.ऑन सेपरेशंस और उपग्रह प्रक्षेपण जैसे महत्वसपूर्ण प्रक्षेपण चरण सफलता पूर्वक पूरे किए गए। करीब 20 मिनट 18 सेकेंड की उड़ान के बाद 1425 किलोग्राम वज़न के आईआरएनएसएस.1सी उपग्रह को 282ण्56किलोमीटर ग् 20670 किलोमीटर के अंडाकार कक्ष में स्थायपित किया गया था जो लक्ष्या से बहुत करीब था।
प्रक्षेपण के बाद आईआरएनएसएस.1सी के सौर पैनल स्वएतरू ही कार्य करने लगे थे। इसरो के प्रमुख नियंत्रण कक्ष ;हासनए कर्नाटक मेंद्ध ने उपग्रह पर नियंत्रण कर लिया। आने वाले दिनों में83 डिग्री पूर्व देशांतर पर भू.स्थिर कक्ष में उपग्रह को स्था पित करने के लिए प्रमुख नियंत्रण कक्ष से चार अभियान संचालित किए जाएंगे।
आईआरएनएसएस.1सी भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली के अंतरिक्ष सेगमेंट के लिए बने 7 उपग्रह में से तीसरा है। 02 जुलाई 2013 और 04 अप्रैल 2014 को क्रमशरूआईआरएनएसएस.1ए और आईआरएनएसएस.1बीए तारा मंडल के पहले दो उपग्रहों को पीएसएलवी द्वारा सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। आईआरएनएसएस.1ए और 1.बी दोनों ही अपने निर्धारित भू.स्थिर कक्ष से संतोषजनक कार्य कर रहे हैं।
स्वोतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली के आईआरएनएसएस को भारतीय क्षेत्र में स्थिति और भारतीय महाद्वीप के आसपास 1ए500 किलोमीटर की जानकारी देने के लिए किया गया था डिजाईन किया गया था। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाएं देगा। इनमें सभी उपयोगकर्ताओं के लिए स्टैंनडर्ड पोजिशनिंग सर्विसेज ;एसपीएसद्ध और अधिकृत उपभोगियों के लिए सीमित सेवाएं ;आरएसद्ध प्रदान की जाएंगी।
नौवहन मानकोंए उपग्रह नियंत्रणए उपग्रह की सीमा और निगरानी आदि के लिए प्रणाली तैयार करने और ट्रांसमिशन की जिम्मेिदारी कई ग्राउंड स्टेसशनों की है जिन्हें  देश में 15 स्था2नों पर स्था पित किया गया है।
आने वाले महीथनों में इस तारा मंडल का अगला उपग्रह आईआरएनएएस.1डी पीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा। वर्ष 2015 तक आईआरएनएसएस तारा मंडल के सभी 7 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की योजना है।
इसरों की अन्य् उपलब्धियां
अंतरिक्ष प्रक्षेपण के क्षेत्र में इसरों के कौशल को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ;इसरोद्ध की व्याकवसायिक इकाई. एंट्रिक्स5 कारपोरेशन लिमिटेड ;एंट्रिक्सगद्ध ने 1999 से अब तक इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ;पीएसएलवीद्ध का उपयोग कर 19 देशों के विदेशी उपभोक्ताोओं के 40 उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। आने वाले वर्षों में 6 देशों के 16 उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए अनुबंध को अंतिम रूप दे दिया गया है।
इसरो ने अपनी व्याूवसायिक इकाई एंट्रिक्स  के जरिए एशिया के विकासशील देशए इंडोनेशिया के लिए पहले ही एक उपग्रह प्रक्षेपित किया है और इंडोनेशिया के ही 2 और उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए अनुबंध को अंतिम रूप दे दिया गया है। अफ्रीका के अल्जीीरिया के लिए भी एक उपग्रह प्रक्षेपित किया गया था।
इसरो की व्यािवसायिक इकाई एंट्रिक्सअ कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा शुरू की गई अंतरिक्ष परियोजनाओं में. ;1द्ध भारतीय रिमोट संवेदी ;आईआरएसद्ध उपग्रह से आंकड़ें प्राप्त  करने के साथ भारत के बाहर 20 स्थाभनों पर प्रक्रिया सुविधाओं के लिए ग्राउंड स्टे शनों की स्थाकपनाए ;2द्ध यूरोपीय उपभोक्ता;ओं के लिए 2 समकालीन संचार उपग्रहों और भारतीय रणनीतिक उपभोगियों के लिए एक संचार उपग्रह का निर्माणए ;3द्ध विदेशी उपभोक्तााओं के 70 से अधिक विमान अभियानों के लिए खोज में सहायता उपलब्ध  करानाए ;4द्ध दूरसंचारए टेलीविजन प्रसारणए डायरेक्टं टू होम ;डीटीएचद्ध सेवाओं और वीसेट अनुप्रयोगों के लिए भारतीय संचार उपग्रह से उपग्रह ट्रांसपोंडर क्षमता के प्रावधानए ;5द्ध इसरो के पीएसएलवी के जरिए 40 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपणए ;6द्धटेली.एजूकेशनए टेली.मेडिसीनए आपदा को कम करने और ग्राम संसाधन केंद्रों के लिए गाउंड टर्मिनल्सष स्थाूपित करना और ;7द्ध घरेलू और विदेशी ग्राहकों के लिए परामर्श सेवाएं शामिल हैं।
इसरो के फेलोशिप कार्यक्रम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ;इसरोद्ध ने अमेरिका में केलीफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्था न ;केलटेकद्ध के एयरो स्पेनस लैबरोट्रिज से स्नाकतक करने के लिए एक फेलोशिप कार्यक्रम शुरू किया गया है। यह फेलोशिप कार्यक्रम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यरक्ष डॉण् सतीश धवन के सम्मायन में शुरू किया गया था। यह फेलोशिपए भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थाननए तिरुवनंतपुरम के एयरो स्पेशस विभाग के एक स्नाकतक छात्र को केलटेक में एयरो स्पे्स इंजीनियरिंग में स्नावतकोत्त र करने के लिए अंतरिक्ष विभाग द्वारा प्रति वर्ष प्रदान किया जाता है।
यह फेलोशिप कार्यक्रम अकादमिक वर्ष 2013.14 के शीत सत्र में शुरू किया गया था और एक छात्र ने इस फेलोशिप का लाभ उठाकर केलटेक से अपनी स्नारतकोत्ततर डिग्री हासिल कर ली है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ;इसरोद्ध और राष्ट्रीतय एयरो नॉटिक्सल एवं अंतरिक्ष प्रबंधन ;नासाद्ध पृथ्वीट के अवलोकन के लिए दोहरी फ्रिक्वेंयसी ;एल एंड एस बैंडद्ध के सिंथेटिक अपर्चर राडार मिशन पर एक साथ कार्य कर रहे हैं। दोनों एजेंसियों ने मंगल अभियान में सहयोग बढ़ाने की संभावनाओं को तलाशने के लिए श्इसरो.नासा मंगल कार्यकारी दलश् गठित किया है।
भारत का अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके.3 की सफल पहली प्रायोगिक उड़ान
18 दिसंबर 2014 को सुबह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रए श्रीहरिकोटा से छोड़ा गई भारत की अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके.3 की पहली प्रायोगिक उड़ान ;जीएसएलवी एमके.3 एक्सयध्सीएआरईद्ध सफल रही। एलवीएम3.एक्सजध्सीएआरई के नाम से पहचाने जाने वाले इस उप कक्षीय प्रायोगिक मिशन का मकसद उड़ान के दौरान चुनौतीपूर्ण वातावरण में विमान के कार्य क्षमता का परीक्षण करना थाए इसलिए इसे निष्क्रिय ;नॉन फंक्शकनलद्ध उच्चे क्रायोजनिक स्तार पर किया गया।
यह अभियान दूसरे प्रक्षेपण पैड से योजना के मुताबिक भारतीय मानक समय सुबह के 09ण्30 बजे जीएसएलवी एमके.3 के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुआ और निर्धारित 126 किमीण् की ऊंचाई पर करीब साढ़े पांच मिनट के बाद 3775 किलोग्राम के वज़न का क्रू मॉड्यूल एटमास्फियरिक रीइंट्री एक्समपेरिमेंट ;सीएआरईद्ध किया गया। इसके बाद सीएआरई को जीएसएलवी एमके.प्प्प् के उच्चर स्तेर से अलग किया गया और दोबारा वातावरण में भेजा गया और इसके पैराशूट के मदद से करीब 20 मिनट 43 सेकेंड के लिफ्ट ऑफ के बाद बंगाल की खाड़ी में सुरक्षित उतारा गया।
207 टन के ठोस प्रोपेलंटों के साथ दो बड़े एस.200 ठोस स्ट्रैकप ऑन बुस्टटरों को यान के लिफ्ट ऑफ पर इग्नाीईट किया गया और सामान्यड कार्य करने के बाद 153ण्5 सेकेंड के बाद अलग किया गया। लिफ्ट ऑफ के 120 सेकेंड के बाद एल110 लिक्विड स्टे5ज को इग्नादईट किया गया जबकि एस.200 अभी भी कार्य कर रहे थे और इन्हें  204ण्6 सेकेंड के लिए आगे बढ़ाया गया। सीएआरई लिफ्ट ऑफ के 330ण्8 सेकेंड के बाद जीएसएलवी एमके.3 के निष्क्रिय सी25 क्रायोजनिक अपर स्टेयज से अलग हुआ और वातावरण में दोबारा प्रवेश के लिए निर्देशित दिशा में बढ़ना शुरू किया।
सफल पुनरू प्रवेश चरण के बाद सीएआरई मॉड्यूल के पैराशूट खुले और इसके बाद श्रीहरिकोटा से करीब 1600 किलोमीटर की दूरी पर अंडमान महासागर के ऊपर आराम से उतारे गए। और यहां पर जीएसएलवी एमके.3 एक्सदध्सीएआरई अभियान सफलता पूर्वक सम्पउन्नय हुआ।
जीएसएलवी एमके.प्प्प् ग् ध्सीएआरई अभियान की सफलता के साथ ही क्रियाशील सी25 क्रायोजनिक अपर स्टेअज के साथ यान अपनी पहली विकासशील उड़ान के एक कदम और नजदीक आ गया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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