Categorized | लखनऊ.

प्रेस विज्ञप्ति

Posted on 14 October 2014 by admin

दिनांक 11 अक्टूवर, 2014 को आॅल इण्डिया जजेज एसोसियेशन एवं उत्तर प्रदेश न्यायिक अधिकारी सेवा संघ के संयुक्त तत्वाधान में तृतीय नेशनल जुडिशियल काॅन्फ्रेन्स का आयोजन इन्द्रा गाॅधी प्रतिष्ठान लखनऊ में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश के मुख्य न्यायाधिपति माननीय न्यायमूर्ति डा0 धनन्जय यशबन्त चन्द्रचूड़ ने किया । सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में माननीय उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति श्री तीरथ सिंह ठाकुर उपस्थित थे। इस अवसर पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति श्री प्रफुल्ल चन्द पन्त तथा माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश श्री इम्तियाज मुर्तजा एवं इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीशगण एवं समस्त भारत से आये विभिन्न राज्यों के न्यायिक संघो के पदाधिकारी एवं प्रतिनिधिगण तथा उत्तर प्रदेश के न्यायिक अधिकारी गण उपस्थित थे । सम्मेलन में माननीय मुख्य मंत्री भी आमंत्रित थे परन्तु महाराष्ट्र के चुनाव के कारण वे उपस्थित नहीं हो सकें, परन्तु राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में माननीय स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्री श्री अहमद हुसैन उपस्थित हुए तथा उन्हानें यह आश्वासन दिया कि न्यायिक अधिकारियों की जो भी उचित समस्या राज्य सरकार के सामने लायी जायेगी, राज्य सरकार उन सभी समस्याओं का तुरन्त निराकरण करने की कोशिश करेगी । माननीय मुख्य मंत्री की तरफ से समस्त भारत के न्यायिक अधिकारियों के सम्मान में एक प्रीतिभोज का आयोजन भी किया गया।  सभा का संचालन आॅल इण्डिया जजेज एसोसियेशन के जनरल सैके्रट्री तथा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा श्री वी0पी0 सिंह ने किया।
उक्त सभा में विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार रखे । अधिकतर न्यायिक अधिकारियों के प्रतिनिधियों ने मुख्य चिन्ता इस बात पर जताई कि न्यायिक प्रणाली पर जनता का विश्वास जारी रखने के लिए जनता को सुलभ एवं सस्ता एवं त्वरित न्याय दिलाना आवश्यक है तथा न्यायिक अधिकारियों
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को अपनी कार्यप्रणाली इस प्रकार से रखना चाहिए, जिससे कि जनता का विश्वास न्यायिक व्यवस्था के प्रति कायम रहे । अधिकांश वक्ताओं ने इस बात पर चिन्ता जताई कि प्रत्येक राज्य मेें बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में न्यायिक अधिकारियों की कमी है, जिसके कारण जनता को त्वरित न्याय नहीं मिल पा रहा है तथा प्रत्येक वर्ष दाखिल होने वाले मुकदमों की संख्या से कम संख्या के मुकदमों का निस्तारण हो पाता है, जो चिन्ता का विषय है । परन्तु वैकलाॅग कैसेज को निपटाने के लिए कोई ठोस उपाय का सोचना आवश्यक है ।  यह चिन्ता का विषय है कि भारत में लगभग (तीन करोड़) 3,00,00,000 मुकदमें विभिन्न न्यायालयों को मिलाकर लम्बित हैं ।   जनता के अनुपात में यहाॅ न्यायिक अधिकारियों की अत्यधिक कमी है । माननीय सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति श्री तीरथ सिंह ठो भाषण में यह भी कहा गया कि इस काॅफ्रेन्स कुर द्वारा अपनको केवल अधीनस्थ न्यायालय में न्यायिक सुधार की आवश्यकता तक सीमित न होकर सम्पूर्ण न्यायपालिका के परिप्रेक्ष्य में न्यायिक सुधार की आवश्यकता पर रखना चाहिए था  । सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि अधीनस्थ न्यायालयों से अधीनस्थ न्यायालय शब्द हटाकर डिस्ट्रिक्ट जुडिशियली के रूप में परिभाषित करना चाहिए, क्योंकि न्यायिक कार्य में प्रत्येक न्यायिक अधिकारी पूर्णरूप से स्वतंत्र होता है और न्यायपालिका में प्रत्येक स्तर पर स्वतंत्र रूप से नियमों के अनुसार कार्य करने की छूट है, इसमें किसी भी स्तर पर न्यायिक कार्य में बाहरी हस्तक्षेप नहीं होता है ।
सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं ने इस बात पर भी चिन्ता जताई कि न्यायिक अधिकारी के विरूद्ध झूठी शिकायतें भेज दी जाती है , जिसके कारण न्यायिक अधिकारी अपमानित होता है तथा उन्हें अनावश्यक रूप से झूठी शिकायत के आधार पर भी कुछ मामलो के लिए प्रमोशन आदि से बंचित होना पड़ता है, यह चिन्ता का विषय है ।  विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में इस बात की भी माॅग उठाई कि जिन न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ शिकायत झूठी पाई जाये, उन शिकायतों में शिकायत कर्ता के विरूद्ध भी कठोर कार्यवाही
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की जानी चाहिए । उक्त सन्दर्भ में माननीय मुख्य न्यायाधिपति उत्तर प्रदेश डा0 धनन्जय यशवन्त चन्द्रचूड़ द्वारा यह बताया गया कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश ने अभी हाल में सभी राज्यों के मुख्य न्यायाधीशो को पत्र भेजकर यह सुझाव दिया है कि किसी भी न्यायिक अधिकारी के विरूद्ध यदि कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो उस पर तब तक संज्ञान नहीं लिया जाये, जब तक कि शिकायत कर्ता अपनी शिकायत के समर्थन में अपना शपथपत्र दाखिल नहीं करता है । माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने सम्मेलन में अपने सम्बोघन में सम्मेलन में उपस्थित  न्यायिक अधिकारियों को यह आश्वासन दिया कि न्यायिक अधिकारी को निर्भीक होकर न्यायिक परम्परा के अनुरूप अपना कार्य करना चाहिए तथा झूठी शिकायतों के आधार पर किसी भी न्यायिक अधिकारी का उत्पीड़न नहीं होगा । परन्तु न्यायिक अधिकारी के कार्य में पूर्णरूप से सत्यनिष्ठा होनी चाहिए । उक्त अवसर पर सम्मेलन में चर्चाओ के बाद सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि भारतीय न्यायिक सेवा का गठन संविधान के 42 वे संशोधन के अनुसार, जिसमें आॅल इण्डिया जुडिशियल सर्विस के निर्माण की बात कहीं गयी है, का तुरन्त गठन किया जाना आवश्यक है तथा यह भी प्रस्ताव पारित हुआ कि आॅल इण्डिया जुडिशियल सर्विस के न्यायिक अधिकारियों के चयन की आयु सीमा 21 वर्ष से 30 वर्ष रखी जाये। इण्डियन जुडिशियल सर्विस में राज्यों के न्यायिक अधिकारियों को भी बैठने के लिए भी अवसर प्राप्त होना चाहिए , जिससे कि वह अपनी योग्यता के आधार पर इण्डियन जुडिशिल सर्विस में चयनित हो सकें तथा इण्डियन जुडिशियल सर्विस में चयनित अधिकारियों को प्रारम्भिक 7 से 10 वर्षो में सिविल जज जूनियर डिवीजन व सिविल जज सीनियत डिवीजन आदि के पदों पर कार्य के अनुभव के उपरान्त, अपर जनपद न्यायाधीश व जनपद न्यायाधीश के पद पर प्रोन्नत किया जाना चाहिए।
उक्त काॅफ्रेन्स में यह प्रस्ताव भी पारित हुआ कि संविधन के अनुच्छेद 217 के अनुसार हाईकोर्ट जज की नियुक्ति हेतु केवल दो श्रोत बताये गये हैं, जिसमें न्यायिक अधिकारी एवं अधिवक्ता हैं । अतः दोनों ही श्रोतों में बराबर - बराबर अंश में माननीय उच्च न्यायालय में
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नियुक्ति की जानी चाहिए । अर्थात न्यायिक सेवा का कोटा, न्यायिक सेवा में आये अधिकारियों में से माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर एलीवेशन हेतु 50 प्रतिशत दिया जाना चाहिए ।
सम्मेलन में यह प्रस्ताव भी पारित हुआ कि लाॅ कमीशन की भारत सरकार की 245 वी रिपोर्ट की संस्तुतियों के अनुसार समस्त भारत में अधीनस्थ न्यायालय के न्यायिक अधिकारियों की सेवा निवृत्ति की आयु 62 वर्ष किये जाने हेतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की जाये। सम्मेलन में सर्वसम्मति से यह भी प्रस्ताव पारित हुआ कि केन्द्रीय सरकार ने सातवें वेतन आयोग का गठन केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए कर दिया है।  पाॅचवें वेतन आयोग के सापेक्ष माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर न्यायिक अधिकारियों के वेतन आदि के पुनरीक्षण हेतु शेट्टी आयोग का गठन, प्रथम न्यायिक आयोग माननीय न्यायमूर्ति श्री के.जे.शेट्टी की अध्यक्षता में गठित हुआ था। उसके उपरान्त छटवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के उपरान्त न्यायिक अधिकारियों को अन्य सेवाओं के समान वेतन देने के लिए पदमनाभन कमेटी का गठन किया था परन्तु मुख्य रूप से पदमनाभन कमेटी ने छटवें वेतन आयोग के अनुरूप अपनी संस्तुतियाॅ की थी, परन्तु पदमनाभन कमेटी द्वारा न्यायिक आयोग के वेतन आदि के सम्बन्ध में कोई विस्तृत रिपोर्ट नहीं दी गयी तथा शेट्टी आयोग की रिपोर्ट को ही आधार मानते हुए वेतन के पुनरीक्षण की संस्तुति किया।  केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग का गठन हुआ है, जिसके सम्बन्ध में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि अखिल भारतीय स्तर पर न्यायिक अधिकारियों के वेतन व अन्य परिलब्धियों तथा कैडर रिव्यू हेतु न्यायिक वेतन आयोग का गठन किया जाये। उपरोक्त सभी प्रस्ताव नेशनल जुडिशियल काॅफ्रेन्स में सर्वसम्मति से पारित किये गये तथा यह भी प्रस्ताव पारित किया गया कि उपरोक्त सभी माॅगों के सम्बन्ध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अविलम्ब याचिका दाखिल किया जाये।
सम्मेलन स्तर पर विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों तथा उत्तर प्रदेश के अधिकतर न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया था तथा न्यायिक अधिकारियों ने अखिल भारतीय स्तर पर आॅल इण्डिया जजेज
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एसोसियेशन की यह काॅफ्रेन्स अपने में एक अभूतपूर्व रहीं , जिसका सफल संचालन सम्पन्न हुआ , जिसमें न्यायिक सुधार पर विस्तृत चर्चा हुई ।

(वी0पी0सिंह)
जनरल सैके्रट्री, आॅल इण्डिया जजेज एसोसियेशन/
अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा संघ

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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