देश भर में दुर्गा पूजा का समापन विजयादशमी के दिन हो जाता है वहीं सुलतानपुर जिले की ऐतिहासिक दुर्गा पूजा उसी दिन से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक चलती है। महोत्सव भव्यता के मामले में कोलकाता के बाद दूसरे स्थान का गौरव लिए सुलतानपुर की दुर्गा पूजा अपने चरम पर है। पारम्परिक तौर पर विजयादशमी से दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन होता है लेकिन यहां मूर्ति विसर्जन 8 अक्टूबर से शुरू होकर 10 अक्टूबर तक होगा। इस तरह महापर्व के रूप में दुर्गा पूजा यहां लगभग एक पखवारे तक मनायी जाती है। अपनी अनोखी और अलग परम्पराओं के कारण सुलतानपुर की दुर्गापूजा का स्थान देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अलग है। यहां मूर्ति स्थापना भी सप्तमी व अष्टमी को शुरू होता है जबकि देश भर में यह नवरात्र के पहले दिन ही हो जाता है। सुलतानपुर जिले में दुर्गापूजा की शुरूआत ठठेरी बाजार में वर्ष 1959 से भिखारी लाल सोनी के नेतृत्व में हुई थी, और श्री दुर्गा माता पूजा समिति की स्थापना करायी गयी थी। जिसकी प्रतिस्पर्धा में अन्य स्थानों पर भी विभिन्न समितियां बन गयी। उस समय मूर्तियों के विसर्जन के लिए टैªक्टरों आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिससे मां की प्रतिमाओं को कहारो के कंधों से ले जाया जाता था। इस विसर्जन शोभायात्रा में दुर्गापूजा प्रतिमा को आठ से बारह कहार लगकर अपने कंधों पर रख शहर भ्रमण करते हुए गोमती नदी के सीताकुण्ड घाट तक ले जाते थे। वर्ष 1972 के बाद से देवी मां की प्रतिमाओं में काफी बढोत्तरी हुई। जिले में महापर्व के रूप में मनायी जाने वाली दुर्गापूजा अपने आप में अनूठी है क्योंकि देश के अन्य स्थानों पर नवरात्र के प्रथम दिन ही देवी माताओं की प्रतिमाओं की स्थापना कर विजयादशमी को विसर्जित कर दिये जाते हैं। जबकि सुलतानपुर जिले में विजयादशमी के पांच दिन बाद पूर्णिमा को सामूहिक रूप से सैकडों प्रतिमाओं की विशाल शोभायात्रा नगर के ठठेरी बाजार प्रथम दुर्गामाता पूजा समिति स्थल से निकाली जाती है। विसर्जन आदि गंगा गोमती के सीताकुण्ड घाट पर केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के द्वारा निर्धारित मार्ग से होकर करीब 48 घण्टे निरन्तर चलते रहने के बाद अगले दिन देर सायं से प्रारम्भ होती है जो अनवरत अगले दिन तक जारी रहती है। सुलतानपुर की दुर्गा पूजा अपने अनूठी परम्पराओं से ही प्रसिद्धि नहीं पायी है बल्कि यहां की कौमी एकता एवं सद्भाव भी नमन योग्य है। मां दुर्गा की अद्भुत छटा को देखने के लिए मुस्लिम महिलाएं एवं बच्चे बूढे भी शामिल होते हैं। महोत्सव में आकर्षक कई पूजा समितियांे में मुस्लिम समुदाय के युवक भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से रातभर जगकर सुरक्षा आदि व्यवस्थाओं में सहयोग करते हैं। कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब मोहर्रम-बारावफात और दुर्गापूजा साथ-साथ पडे हैं पर दोनों वर्गों के प्रबुद्ध लोगों के आपसी सामांजस्य के कारण सुलतानपुर का साम्प्रदायिक माहौल कभी बिगडने नहीं पाया। इस बार बकरीद का पर्व भी दुर्गापूजा महोत्सव के बीच पड रहा है। प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की स्थितियों को देखते हुए आम लोगों में भय और आशंका जरूर बनी हुई है किन्तु महोत्सव के कर्ताधर्ताओ और मुस्लिम वर्ग के वे लोग जो रात जगकर पूरी तरह से सहयोग करते हैं उन्हें पूरा विश्वास है कि इस वर्ष का दुर्गापूजा पहले की ही तरह साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम करेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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