जनेश्वर मिश्र जयंती की पूर्व संध्या के उपलक्ष्य में प्रख्यात समाजवादी चिंतक जनेश्वर मिश्र के व्यक्तित्व, कृतित्व, योगदान व महत्व को रेखांकित करने वाली प्रथम ई-बुक ूूूण्रंदमेीूंतरपण्पद का विमोचन करते हुए समाजवादी नेता व काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जनेश्वर मिश्र प्रतिबद्ध समाजवादी थे जिन्होंने पूरा जीवन समाजवाद और लोकतंत्र को मजबूत करने में लगाया। उनके जीवन-दर्शन से सादगी और कमजोर तबके के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। वे सम्प्रदायिकता और भेदभाव को समाज के लिए घातक मानते थे। छोटे लोहिया के साथ अपनी स्मृतियों एवं संस्मरणों को साझा करते हुए शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जनेश्वर मिश्र हमारे अभिभावक और आदर्श थे। समाजवादी दर्शन को हम लोगों ने जनेश्वर जी के माध्यम से ही जाना। उन्होंने शिक्षक की तरह बहुत कुछ सिखाया। जनेश्वर जी के मन में हमेशा गरीबों और कमजोरों के लिए पीड़ा रही है। वे मुझसे अक्सर कहते थे कि गरीबों के आंसू पोंछना ही सच्चा समाजवाद है। वे चलते-फिरते ज्ञान-कोष थे। कभी भी धन-दौलत के पीछे नहीं भागे, न ही संपदा का संचय किया। वे कई बड़े पदों पर रहे, कई बार केन्द्रीय मंत्री बने लेकिन उनमें कभी पद व सत्ता का दर्प नहीं आया। उन्होंने अपनी सादगी और सरलता नहीं छोड़ी। वह आजादी के समय के समाजवादियों और हम लोगों की पीढ़ी के सेतु थे। जनेश्वर जी चाहते थे कि सामाजिक व राजनीतिक जीवन में आम महिलाओं की सहभागिता बढ़े। उन्होंने हमेशा गरीब घर की नारियों को विशेष अवसर देकर आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी। वह छोटी-छोटी घटनाओं से सूक्ष्म व जटिल दर्शन को समझा देते थे। यदि उन्हें अपने दौर का सबसे बड़ा समाजवादी चिंतक व समाजवादी अवधारणाओं का व्याख्याता कहा जाए तो गलत नहीं होगा। वे समतामूलक समृद्ध समाज के नवनिर्माण और डाॅक्टर राममनोहर लोहिया के प्रतिबद्ध व अग्रिम पंक्ति के सिपाही थे। लोहिया के विचारों को मूर्तरूप देने के लिए ही उन्होंने माननीय मुलायम सिंह यादव जी के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी बनायी। वे संसद और राजधानी में आम हिन्दुस्तानी और गांव-जवार की आवाज होते थे। डाॅक्टर राम मनोहर लोहिया ने एक बार उनकी प्रशंसा करते हुए कहा था कि जनेश्वर जी में प्रतिभा है और दबे-कुचले वर्ग की बेहतरी के लिए बड़ा काम करने की इच्छा भी। ये दोनों बातें विरले लोगों में मिलती है। डाॅ लोहिया का यह कथन युवा जनेश्वर के लिए था जो मानसरोवर कांड व कच्छ आन्दोलन का नायक थे।
छात्र जीवन से लेकर अंतिम समय तक वह जन-आन्दोलनों की अगुवाई करते रहे। उनके शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं, “समाजवादियों को देश की तकदीर बदलनी है तो भारी बलिदानों के लिए तैयार रहना होगा। समाजवादियों को राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस चलानी चाहिए। सिर्फ नेताओं के भाषण सुन लेने पर से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की राजनीति नहीं गरमायेगी।” मुझे पूरी उम्मीद है कि इस ई-बुक पुस्तक को हमारे युवा साथी पढ़कर सीखेंगे और राजनीति की चमक-दमक वाली मृगमरीचिका न फँसते हुए वैचारिक राजनीति से जुड़ेगे तभी देश व समाज का भला कर सकेंगे।
जो कौमें व पीढ़ी अपने बुजुर्गों व विरासत को भूल जाती हैं मिट जाती है। आज जनेश्वर जी और उनके विचार अपने जीवन काल से भी प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
जनेश्वर जी आम आदमी की पीड़ा को समझते थे और चाहते थे कि आम आदमी को उसका हक मिले, उसका काम समय से हो। उन्हें श्रद्धांजली देते हुए मैं राजस्व विभाग में सिटिजन चार्टरशिप लागू करता हूँ। समाजवादी आन्दोलन को और अधिक धारदार तथा विचारधारा को और अधिक व्यापक बनाना ही छोटे लोहिया को दी गई सच्ची श्रद्धांजलि है। इस अवसर पर काबीना मंत्री शिवाकान्त ओझा, नारद राय, सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी, एस०आर०एस० यादव, जनेश्वर जी की पुत्री श्रीमती मीना तिवारी, दामाद चन्द्रशेखर तिवारी, धर्मानन्द तिवारी, उपनिवेशवाद विरोधी मोर्चा के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल, राजू श्रीवास्तव समेत कई समाजवादी नेता मौजूद
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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