किस तरह घृणा और उपहास की
चीज हो गयी राजनीति
जरा कल्पना कीजिये मानव का संघर्ष
उत्थान की परणीति।
भूखे की भूख के आड़ मंे
निवारण की झूठी लच्छेदार भाषा में
अपनी पूरी करते रहे अभिलाषा
सौभाग्य की आकाश नीला है
संभावनाओं के सारे द्वार बन्द होने तक
आकाश नीला ही रहना है
यह बात हमारे पूर्वजों का कहना है
इस बजनदार दलील के पीछे
तर्क शास्त्री कई तरह के तर्क ढूढ़ सकते है?
अतिसंकीर्ण व्याख्या कर सकते है
पर में जो कहना चाहता हूॅ
उन वास्तविकताओं को कहकर रहूंगा
छिपाने की रत्ती भर दिलचस्पी नही है
चाहे जो हो, कवि अग्निवेद की इस कविता के विचारो की तरह भारतीय राजनैतिक दलो पर नजर डालते है तो देखते है कि भारतीय राजनैतिक पटल पर पहली बार भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के पीछे छिपी कहानी को जानना बहुत समाचीन रहेगा।वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा का कथन देश का बहुसंख्य मतदाता लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष परंपराओं के बीच पला-बढ़ा है। इसलिए मोदी का सत्ता में आना मुश्किल है वह यह भूल गये कि सारा धर्म निरपेक्षता का पाढ अब नई लोकतांत्रिक पीढ़ी वामपंथी इतिहास उनके चश्मे के इतर सच के धरातल पर महसूस करने के बाद ही पढ़ रही हैं मुज्जफ्फरनगर में हुए दंगे को सारी दुनियां ने देखा कि किस तरह तुष्टिकरण के कारण दंगों में मृत हिदुओं के परिजनों को मुआवजा देने से लेकर पुर्नवास तक में यूपी सरकार ने भेदभाव किया तब सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगानी पड़ी थी तब जाके यह भेद भाव बन्द हुआ था। उस दौर में आलोक धन्वा सहित सभी वामपंथी बृद्धिजीवी खतरनाक चुप्पी साधे क्या कर रहं थे पता नहीं पर उनकी चुप्पी का परिणाम ही बहुसंख्यक समाज एकजुट होकर मतदान के माध्यम से छद्मवेशी ताकतों को सबक सिखाने के लिए विवश ही नही हुआ अपितु उसने तय कर लिया कि आतंकवाद का समर्थन करने वालों को आगे भी सबक सिखाते रहेंगे। भाजपा का उदय 1980 में हुआ था। लेकिन तब तक भारतीय जनता पार्टी का नारा राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय एकता, लोकतंत्र तथा सकारात्मक धर्म निरपेक्षता के इर्द-गिर्द था। उस वक्त भाजपा ने गांधी वादी समाजवाद के माॅडल को अपना कर एक मध्यमार्गी राजनैतिक दल के रूप में जनसंघ से विलग रास्ते पर चलने की कोशिश की थी लेकिन गांधीवादी समाजवाद का माॅडल अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चुनावी अभियान में बुरी तरह से पिट गया। जिसके कारण भाजपा का 1985 में दूसरा जन्म दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव वाद के माॅडल के साथ शुरू हुआ। इस माॅडल के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक ने पूरी ताकत के साथ भाजपा का समर्थन किया और लालकृष्ण आडवाणी ने पहली बार भाजपा को दिल्ली में सरकार बनाने का सपना दिखाया। इस दौर में अटल जी की कविता जाऊ तो जाऊ कहाँ उनकी छटपटाहट को अभिव्यक्त करती है। दरअसल संघ ने भाजपा पर बिश्वास किया भाजपा तीव्र गति से आगे बढ़ने लगी। समाजविज्ञानी अभय कुमार दुबे के शब्दों में- भाजपा के तीसरे रूप को समझना हो तो यह जानना पड़ेगा कि लालकृष्ण आडवाणी का दिमाग कैसे काम करता है। वे राजनेता होने के साथ-साथ सिद्धांतकार भी हैं और ऐसी बातें कहने से भी नही हिचकते जो उन्हें अलोकप्रिय बना सकती है। 1999 के संसदीय निर्वाचनों के समय से ही वे यह कहते रहे है कि सरकार विचारधारा के आधार पर नही बल्कि आदर्शवाद के आधार पर चलती है। चूंकि सिद्धांत की बातें वे अंग्रेजी में बोलते है इसीलिए यह कहते समय आइडियालाजी और आइडजिल्म का सुंदर भाषिक संयोग बन जाता है। उससे उनके कथन की प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है। लेकिन बीबीसी पर करन थापर से बातचीत करते हुए जब आडवाणी ने अपना यह प्रिय सिद्धांत वाक्य दोहराया तो उन्हें पलभर के लिए मुंह की खानी पड़ी। करन थापर ने उलट कर कहा कि अगर विचारधारा की जरूरत नहीं तो फिर राजनैतिक दल की ही क्या जरूरत रह जाएगी। तब सक्षम और प्रतिबद्ध आईएएस अफसरों का एक वर्ग शासन चलाने के लिए प्रर्याप्त होगा। आडवाणी थापर की इस टिप्पणी का कोई संतोषजनक उत्तर नही दे पाए। थापर अपनी बात को और आगे बढ़ा सकते थे कि विचारधाराविहीन आदर्शवाद नौकरशाही की हुकूमत के खतरे से ही ग्रस्त नही होता वरन् वह समाज का गैर राजनीतिकरण भी करता है। तीसरे जन्म की भाजपा दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाब तो रही पर अकेले न होने पर शाईनिंग इंडिया का नारा देकर एक बार फिर सत्ता आने के लिए संघर्ष करने लगे। भूमंडलीकरण के दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ ने अपने पुराने कार्यकर्ता को गुजरात का मुख्यमंत्री बनवाकर भविष्य की भाजपा के बीज बोने शुरू कर दिये। दंगों के दबानल से गृस्त गुजरात को दंगा मुक्त बनाकर दंगों के दाग दामन में लिए पूरे देश में सभी राजनैतिक दलों के निशाने पर रहने वाले नरेन्द्र मोदी को जब भाजपा के चैथे जन्म यानि की युवा भाजपा के नेतृत्व की कमान सौपने का फरमान सुनाया गया तो पुराना नेतृत्व किसी भी हालत में अपनी पकड़ छोड़ने को तैयार न था। अन्तर विरोधों के बीच संघ के स्वयंसेवक ने समस्या ग्रस्त भाजपा का रिमोड कन्ट्रोल अपने हाथों में लेकर विकास रूपी समावेशी माॅडल के साथ भूमंडलीकरण के युग में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रचार प्रसार के साधनों का सदुपयोग करते हुए पूरे देश को गम्भीर चिन्तन के लिए मजबूर कर दिया। कब तक बहुसंख्यक समाज टुकड़ों-टंुकड़ों में बटकर अल्पसंख्यकवाद के तुष्टीकरण करके सत्ता छद्मधर्म निरपेक्ष लोगों को दी जाती रहेगी जो समस्या ग्रस्त भारत की समस्या निपटाने के नाम पर पावर और बैलेन्स बनने वाले क्षेत्रीय दल के रूप में उभराते रहेंगे और पावर आॅफ ब्लेकमेल बनकर इस देश को रूढ़ीग्रस्त बनाते रहेंगे। लार्ड विवरेज का कथन शान्तिपूर्वक सरकार बदलने की शक्ति प्रजातन्त्र की आवश्यक शर्त है, इस शर्त को सार्थक करते हुए युवा भाजपा का जन्म नरेन्द्र दामोदर मोदी के नेतृत्व में करके भाजपा के शालकापुरुष को भी सशंकित कर डाला। इस बदलाव के साथ-साथ एकात्मक मानववाद के माॅडल को बाजारवाद और भूमंडलीकरण के प्रगति कांक्षी दौर में अपने आपको सार्थक सिद्ध करने की जुम्मेदारी बन गयी है। परम्परा और प्रयेाग की दहलीज पर युवा मतदाताओं ने चुनौती पूर्ण ढंग से सहयात्री बन भारत के विकास को गन्तव्य तक ले जाने के लिए दृढ़ उन्नत समर्थन देकर लूली- लंगढ़ी नहीं पूर्ण बहुमत की सरकार दिल्ली में देकर आकांक्षा की है कि अब विसम्बताओं और विसंगतियों के दवानल से मुक्ति का मार्ग सुलभ हो। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन कानून के मकड़ जाल से नही अपितु विसमताओं और विसंगतियों को तथा रोजगार के सृजन के लिए समावेशी माॅडल बनाया जायेगा। जहाँ कहीं कोई तकलीप नही …….. न कष्ट खुशी, सुकून ही सुकून रहेगा। अच्छे दिन की उजाले की सुरंग कहाँ से किन पलों से गुजरती है और जिन्दगी के स्याह पन्नों को रंगीन बना देती है। इस प्रतीक्षा में सारा देश दो टक निगाहों से देख रहा है। 1950 की जनसंघ की स्थापना करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बाद 1980 में भाजपा में परिवर्तित जनसंघ के चैथे जन्म का उपहार जनमानस को कब मिलता है। इस बात की प्रतीक्षा और एकात्म मानववाद के व्याख्यायित होना बाकी है।
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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