खरीफ की फसल में तिलहनी खेती में मूंगफली एवं तिल महत्वपूर्ण हैं एवं कम वर्षा की स्थिति में इन की खेती की जा सकती है। जुलाई के माह में तिल एवं मूंगफली की बुवाई शीघ्र पूरी कर ली जाये। मंूगफली झांसी, हरदोई, सीतापुर, खीरी, उन्नाव, बहराइच, बरेली, बदायूं, एटा, फर्रूखाबाद, मुरादाबाद एवं सहारनपुर जनपदों में उगाई जाती है। तिल मुख्यतः बुन्देलखण्ड की भूमि-मिर्जापुर, सोनभद्र, कानपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, आगरा एवं मैनपुरी जनपद में शुद्ध एवं मिश्रित रूप से बोया जाता है।
कृषि प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो तथा फसल सतर्कता समूह से प्राप्त सूचना के अनुसार मंूगफली के दानों में 22-28 प्रतिशत प्रोटीन, 10-12 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 48-50 प्रतिशत वसा पाई जाती है। मंूगफली की संस्तुत प्रजातियों में चित्रा, कौशल, प्रकाश, अम्बर, टी0जी0-37ए, उत्कर्ष एवं दिव्या की बुवाई करें। इसी तरह तिल की संस्तुत प्रजातियों में टा-12,13,78, शेखर, तरूण एवं प्रगति की बुवाई करें।
मूंगफली की बुवाई में निर्धारित मात्रा में ही बीज का प्रयोग करे। बुवाई का समय, दर एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी, पौधे से पौधे की दूरी सुनिश्चित मात्रा में ही रखी जाये। उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के अनुसार सुनिश्चित मात्रा में किया जाये। यदि भूमि का परीक्षण नहीं कराया गया है तो अच्छी पैदावार के लिए नत्रजन 20 किग्रा0, फास्फोरस 30 किग्रा0, पोटास 45 किग्रा0, जिप्सम 250 किग्रा एवं बोरेक्स 4 किग्रा0 की दर से प्रयोग करें। तिल में भी भूमि परीक्षण के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करे। यदि परीक्षण नहीं कराया गया है तो 30 किग्रा0 नत्रजन, 15 किग्रा0 फास्फोरस तथा 25 किग्रा0 गन्धक प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें।
मूंगफली में वर्षा न हो तो दो सिंचाई फली बनते समय करें। तिल में जब 50 से 60 प्रतिशत तक फली लग जायें और उस समय वर्षा न हो तो एक सिंचाई करनी आवश्यक है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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