भूगर्भ जल निदेशक श्री रामसिंह ने बताया कि जल प्रकृति का अनमोल उपहार है। स्वच्छ जल, पृथ्वी, मानव, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु एवं वनस्पतियों तथा सुन्दर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है। इस अनमोल सम्पदा के संरक्षण के उपायों को हम सभी को करना होगा।
उन्होंने कहा कि किसान भाई खेतों में फसलों की सिंचाई क्यारी बनाकर करें। सिंचाई की नालियों का पानी बेकार न बहने दें, पक्की नालियों से, कैनवास एवं पी0वी0सी0पाइप का प्रयोग करके पानी को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बागवानी की सिंचाई हेतु ड्रिप विधि तथा फसलों की सिंचाई हेतु स्प्रिन्कलर विधि को अपनायें। हैण्डपम्प/कूपों के पास में दो फीट लम्बा दो फीट चैड़ा तथा छः फीट गहरा गढ्ढ़ा बनाकर उसे रेत से भर दें जिससे बेकार पानी गढ्ढ़े में जाकर अवशोषित हो जायेगा इससे जल भूगर्भ में जायेगा और जल की बचत होगी। गन्दगी, कीचड़ तथा मच्छरों से छुटकारा मिलेगा। हर घर में छतों से वर्षाकाल में बहने वाले पानी को रिचार्ज करने की विधि अपनानी होगी। वर्षा जल को एकत्रित करके दैनिक जीवन में प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि घर में नलों की टोटियों को दुरूस्त रखें। नलों से पानी बेकार न बहायें और टपकने भी न दें। टोटियों को खराब होने पर ठीक करायें। मुंह धोने, दांत साफ करने, शेव बनाने, नहाने कपड़ा धोने व बर्तन माॅजने के समय नल को केवल जरूरत के अनुसार ही खोले तथा बाल्टी में पानी भकर उसका उपयोग करें।
श्री सिंह ने बताया कि पानी की बचत हेतु घर के फर्श तथा वाहनों को धोने के बजाय गीले कपड़े से पोंछ कर साफ करें। स्नानगृह एवं किचन से निकलने वाले पानी का उपयोग शौचालय की सफाई, फ्लशिंग व अन्य कार्यों में करें। फ्रिज को डिफ्रास्ट करने पर निकले पाने का उपयोग घरेलू कार्यों में करें। पेड़ पौधों एवं फसलों की सिंचाई आदि में आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग कदापि न करें। हैण्डपम्प/कूपों के पास बेकार पानी जमा न होने दें। गन्दा पानी पाइप के सहारे पुनः बोरिंग में प्रवेश करके स्वच्छ भूजल भण्डार को प्रदूषित करता है।
निदेशक ने लोगों से अपेक्षा की है कि वे गेहूं, सब्जी, दाल, फलों एवं चावल तथा अन्य वस्तुओं की धुलाई नल की तेज धार में न करें। बर्तन में डाल करके साफ करें तथा बचे हुए पानी को बेकार न बहायें इसे एकत्रित करके पेड़ पौधों की सिंचाई में प्रयोग करें जिससे पेड़ पौधे हरे भरे रह सकें। कपड़े धोने में अधिक डिटर्जेन्ट का प्रयोग न करें। कपड़ों को धोते समय अधिक पानी न बहायें। नहाते समय भी अधिक पानी का उपयोग न करें। आवश्यकतानुसार जल का उपयोग करें। उन्होंने बताया कि नल सबर्सिबल से घर के सामने की गली, सड़क तथा परिसर की धुलाई में बेकार पानी न बहायें। जानवरों को नहलाने में पानी का अधिक दुरूपयोग न करें। सार्वजनिक नलों की टोटियों को खुला न छोड़े, पाइप लीकेज़ देखे उसकी शिकायत जल संस्थान को करें। पानी की टंकियों में बाल्व अवश्य लगायें और पानी को ओवर फ्लों होने पर बेकार जल बहाव पर रोक लगाये। औद्योगिक/व्यवसायिक क्षेत्रों में जल की बचत हेतु औद्योगिक प्रयोग में लाये गये जल का शोधन करके उसका पूर्ण सदुपयोग किया जाय। मोटर गैराज में वाहनों की धुलाई से निकलने वाले जल की सफाई करके पुनः प्रयोग करें। वाटर पार्क तथा होटलों में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार बार प्रयोग करें। होटल निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम, उद्योग क्षेत्रों आदि में वर्षा जल का संग्रहण करके उसका प्रयोग सुनिश्चित करें। सार्वजनिक स्थानों पर लगे नल एवं सार्वजनिक शौचालयों में पानी बहता हुआ नहीं छोड़ना चाहिए। रेलवे, बस स्टेशनों पर पेयजल हेतु लगे नलों/टोटियों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। पानी को जहां भी नलों/टोटियों अथवा पाइप से बेकार में बहता हुआ दिखे उसे रोकने की दिशा में उचित उपाय करने चाहिए।
श्री रामसिंह ने बताया कि जन सामान्य तथा बच्चों एवं महिलाओं को पानी की बचत तथा सदुपयोग हेतु संवेदनशील बनाने के लिए पूरे प्रदेश में जागरूकता अभियान वृहद स्तर पर संचालित किया जा रहा है। भूजल प्रबन्धन, वर्षा जल संचयन एवं भूजल रिचार्ज हेतु ‘‘समग्र नीति’’ निर्गत की गयी है। छात्रों में जागरूकता हेतु कक्षा 6 से 8 तक के पाठ्यक्रम में रेनवाटर हार्वेस्टिंग विषय वर्ष 2007 से शामिल किया जा चुका है। कक्षा-10 एवं 12वीं में वर्षा जल संचयन एवं भूजल संरक्षण से संबंधित अध्याय सत्र 2013-14 के पाठ्यक्रम में लागू किया जा चुका है। समस्त उद्योगों मे ंभू-जल स्तर एवं भूजल गुणवत्ता अनुश्रवण हेतु पीजोमीटर की व्यवस्था अनिवार्य कर दी गयी है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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