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उत्तर प्रदेष हिन्दी संस्थान-विष्णु प्रभाकर जयन्ती समारोह उदात्तीकरण साहित्य का पर्याय है। -उदय प्रताप सिंह

Posted on 23 June 2014 by admin

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में विष्णु प्रभाकर जयन्ती समारोह का आयोजन मा0 श्री उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं विष्णु प्रभाकर जी के चित्र पर पुष्पांजलि के अनन्तर प्रारम्भ हुई संगोष्ठी में वाणी वन्दना की संगीतमय प्रस्तुति सुश्री पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत    डाॅ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
अभ्यागतों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डाॅ0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा - विष्णु प्रभाकर जी ने अपनी लेखनी से ऐसे साहित्य को रचा जिसने साहित्य जगत को समृद्ध किया। ‘आवारा मसीहा‘, ‘अर्धनारीश्वर‘ आदि जैसे जीवनीपरक उपन्यासों से उन्हें प्रसिद्धि मिली। हिन्दी साहित्य में उपन्यासों की रचना करना एक कठिन साधना है। इसमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र में खुला आकाश नहीं मिलता। पाठकांे की आलोचनाओं एवं उनकी मनोदशा का ध्यान रखना पड़ता है। यह तो धरती पर रेंगने जैसा कार्य है। उनमें उपन्यासों में देशकाल, पर्यावरण, भौगोलिक परिवेश का प्रभाव भी उनकी रचनाओं में दिखता है। वे साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर थे।
हिन्दी में जीवनीपरक उपन्यास और ‘आवारा मसीहा‘ विषय पर व्याख्यान देतेे हुए अगरतला से पधारे डाॅ0 जयकौषल जी ने कहा - यह जीवनीपरक उपन्यास होते हुए भी एक रोचक उपन्यास है। मेरी राय में यह उपन्यासपरक जीवनी है। ऐसे अन्य उपन्यास भी लिखे गये जिनमें मानस का हंस, खंजन नयन आदि उपन्यास भी जीवनीपरक उपन्यास की श्रेणी में हैं। बांग्ला भाषा में भी जीवनीपरक उपन्यास उपलब्ध हैं। रामविलास शर्मा ने ‘निराला की साहित्य साधना‘ में निराला के जीवन से पर आधारित है। बांग्ला में विष्णु चन्द्र शर्मा की ‘अग्नि सेतु‘ भी जीवनीपरक उपन्यास है। जीवनीपरक उपन्यास जीवनी से अधिक किसी लेखक के जीवन संघर्ष की यात्रा माना जा सकता है। इन उपन्यासों में पक्षतापूर्ण लेखन के आरोप की संभावना रहती है।

हिन्दी में जीवनीपरक उपन्यास और ‘आवारा मसीहा‘ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए नोएडा से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री विभूति नारायण राय जी ने कहा - जीवनी, आत्मकथा व जीवनीपरक उपन्यासों को लिखने की एक लम्बी परम्परा रही है। इन उपन्यासों में नायक की प्रधानता व श्रेष्ठता को दर्शाने की भी परम्परा है। जीवनी लिखते समय हम केवल नायक के जीवन-मृत्यु के वर्णन तक सीमित नहीं रहते हैं बल्कि इसमें सामाजिक परिस्थियों का पूरा लेखा-जोखा रखते हैं। विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित ‘आवारा मसीहा‘ की भाँति ही इलाचन्द्र जोशी ने भी शरतचन्द्र के जीवन का भी वैज्ञानिक विश्लेषण किया। राय जी ने कहा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘बाणभट्ट की कथा‘ व ‘कबीर‘ में भी जीवनीपरक उपन्यासों के तत्व मौजूद हैं। जीवनीपरक उपन्यासों पर विचारधाराओं का भी प्रभाव पड़ता है।
अध्यक्षीय सम्बोधन देते हुए संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष, मा0 उदय प्रताप सिंह ने कहा - विष्णु प्रभाकर जी बडे़ संवेदनशील व्यक्ति थे वे गांधी जी की साकार मूर्ति थे। विष्णुप्रभाकर द्वारा लिखित ‘आवारा मसीहा‘ जीवनीपरक उपन्यास शरतचन्द्र के जीवन पर आधारित है। शरतचन्द्र कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। विष्णुप्रभाकर व शरतचन्द्र के जीवन के प्रारम्भिक दिन एक जैसे थे। इन दोंनो साहित्यकारों ने बिन्दु से सिन्धु तक की यात्रा की। उदात्तीकरण साहित्य का पर्याय है। शरत की कहानियों पर लगभग 50 से अधिक फिल्में बन चुकीं हैं लेकिन ऐसा होता है कि कहानी के लेखक का नाम बहुत छोटे अक्षरों में लिखा जाता है। विष्णुप्रभाकर ने ‘आवारा मसीहा‘ की रचना करके शरतचन्द्र को साहित्य में महत्वपूर्ण सम्मान प्रदान किया। डाॅ0 सुधाकर अदीब द्वारा लिखित ‘शाने तारीख‘ उपन्यास को भी जीवनीपरक उपन्यासों की श्रेणी में रखा जा सकता है। साहित्य का अर्थ ही है सबका हित हो।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 अमिता दुबे, प्रकाशन अधिकारी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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