Categorized | लखनऊ.

भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 में संशोधन का प्रस्ताव अनुमोदित

Posted on 13 June 2014 by admin

मंत्रिपरिषद नें भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 (अधिनियम संख्या-02, सन् 1899) की अनुसूची 1-ख के अनुच्छेद 31, 33, 35, 48 एवं 63 में संशोधन के प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया है। इसके लिए मंत्रिपरिषद ने भारतीय स्टाम्प (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2014 के प्रारूप को स्वीकृत कर दिया है।
ज्ञातव्य है कि स्टाम्प शुल्क की प्रभार्यता सम्बन्धी स्टाम्प शुल्क के आगणन के तरीकों ;डवकम व िब्ंसबनसंजपवद व िैजंउच क्नजलद्ध में संशोधन आवश्यक हो गया है क्योंकि भारतीय स्टाम्प अधिनियम की अनुसूची 1-ख के अनुच्छेद 31, 33 एवं 63 के अन्तर्गत क्रमशः विनमय पत्र, दानपत्र तथा लीज के अन्तरण के विलेख आच्छादित है तथा वर्तमान स्टाम्प अधिनियम के प्राविधानों के अधीन इन विलेखों में अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य के स्थान पर विलेख में उल्लिखित मूल्य पर स्टाम्प शुल्क देय है। इस कारण पक्षकारों द्वारा अपनी इच्छानुसार मूल्य का उल्लेख करते हुए स्टाम्प शुल्क अदा किया जाता है, जो कि बाजार मूल्य से बहुत कम होता है, परन्तु फिर भी विधिक व्यवस्था के अभाव में इन विलेखों पर स्टाम्प शुल्क की अपवंचना के सम्बन्ध में कोई भी विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम की अनुसूची 1-ख के अनुच्छेद 48 के अधीन अचल सम्पत्ति के अन्तरण का अखण्डनीय अधिकार दिए जाने वाले पावर आफ अटार्नी के विलेख पर स्टाम्प शुल्क की प्रभार्यता उसमें उल्लिखित अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य पर है। परन्तु वास्तविकता यह है कि एक-दो पावर आफ अटार्नी के विलेख को छोड़कर किसी भी विलेख में अचल सम्पत्ति के अन्तरण करने का अखण्डनीय अधिकार दिए जाने का उल्लेख नहीं किया जाता है तथा विलेख में शब्द खण्डनीय का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण बाजार मूल्य के आधार पर स्टाम्प शुल्क देय न होकर मात्र 50 रुपये का स्टाम्प शुल्क देय होता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि वास्तव में पक्षकार स्टाम्प शुल्क की अपवंचना के दृष्टिकोण से विक्रय पत्र न कराकर पावर आफ अटार्नी का विलेख करा लेते हैं, जिसके कारण रियल स्टेट में अपराधीकरण तथा कालेधन का प्रभाव होना स्वाभाविक है, जिसकी पुष्टि मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा सूरज लैम्प एण्ड इण्डस्ट्रीज बनाम हरियाणा राज्य व अन्य में पारित निर्णय से भी होती है। यह स्वाभाविक है कि सामान्यतया अचल सम्पत्ति के अन्तरण का अधिकार रक्त सम्बन्ध यथा पिता-पुत्र आदि के मध्य ही होता है, परन्तु यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी अचल सम्पत्ति का रक्त सम्बन्ध से भिन्न किसी व्यक्ति को विक्रय का अधिकार दिया जाता है, तो स्पष्ट है कि ऐसा अधिकार बिना प्रतिफल नहीं दिया जाएगा। अतः रियल स्टेट में होने वाले अपराधीकरण एवं कालेधन के प्रवाह को रोकने के लिए यह अपरिहार्य हो गया है कि रक्त सम्बन्ध से भिन्न व्यक्तियों के पक्ष में अचल सम्पत्ति के अन्तरण के अधिकार से सम्बन्धित पावर आफ अटार्नी के विलेखों पर स्टाम्प शुल्क की दरें बढ़ा दी जाएं।
इसी प्रकार भारतीय स्टाम्प अधिनियम की अनुसूची 1-ख के अनुच्छेद 35 के अन्तर्गत 30 वर्ष से अधिक अवधि के लिए निष्पादित लीज के विलेख पर स्टाम्प शुल्क की प्रभार्यता लीज के विलेख में उल्लिखित अचल सम्पत्ति के बाजार मूल्य पर है, परन्तु 30 वर्ष से कम अवधि के लिए निष्पादित लीज के विलेख पर स्टाम्प शुल्क की प्रभार्यता विलेख में उल्लिखित प्रीमियम एवं/या रेन्ट (जैसा भी हो) पर है। इस कारण पक्षकारों द्वारा मनमाने ढंग से विलेख में किराए का उल्लेख करते हुए तथा वास्तविक किराया छिपाते हुए स्टाम्प शुल्क अदा किया जाता है।
उपरोक्त कारणों से करापवंचन की इस प्रवृत्ति पर प्रभावी नियंत्रण हेतु भारतीय स्टाम्प अधिनियम (अधिनियम संख्या 2, सन् 1899) में संशोधन करने का निर्णय लिया गया है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

April 2025
M T W T F S S
« Sep    
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
282930  
-->









 Type in