इलाहाबाद मण्डल के डाक विभाग के आला अफसर जहां विभाग की उपलब्धियो मेें इजाफा करने का दावा करते हैं वहीं तहसील मुख्यालय करछना स्थित डाकघर में विगत तीन दशकों से निरन्तर पत्र पत्रिकाओं की हो रही चोरी को रोक पाने में पूरी तरह नाकाम रहे है।
गौर तलब है कि करछना डाकघर में कई कर्मी ऐसे हैं जो बीसों वर्ष से वहाॅ जमंे हेैं और पत्रिका चोरों के गिरोह को संरक्षण प्रदान करते हैं ऐसे में पत्र-पत्रिकाओ की बडे़ पैमाने पर चोरी कभी रूक नहीं सकती। यहॅंा जो कर्मचारी डाक की छॅटाई का करते हैं वे मुगारी की डाक खड़सरा में बेन्दौ की डाक बरांव में जानबूझ कर डाल देते हैं और बाद में मिस डाक ’’ को वापस करने से पहले ही गायब कर देते हैं। बेन्दौ की डाक सबसे अधिक गायब होती है क्योंकि कह सस्थाओं की डाक व पत्र पत्रिकाएं यहाॅ प्राय; रोज ही आते हैं। यघपि इधर पन्द्रह बीस दिन से बेन्दौ उप डाकघर से शायद ही कोई डाक बाॅटी गई हो। इस शाखा डाकघर के अन्तर्गत ग्राम गॅंधियांव से प्रकाशित होने वाली पत्रिका साहित्यंाजलि प्रभा के सम्पादक ने आरोप आरोप लगाया है कि उनकी डाक प्राय; गायब कर दी जाती है। भारतीय राष्ट्ीय पत्रकार महासंद्य के संयोजक डा0 भगवान प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि करछना डाकघर में मनी आर्डर भी गायब कर दिये जाते हैं। 29 मई 2012 को सानपाड़ा डाकघर नवीं मुम्बई से मनी आर्डर संख्या 069199120529011504 से चार सौ का मनी आर्डर भेजा गया जो 31 मई 2012 को वापस गया और भेजने वाले को आज तक वापस नहीं मिला । 14 अगस्त 12 को जाॅच के माध्यम से पता चला कि 29 जुलाई 2012 को करछना से पेड दिखाया गया है प्रश्न यह कि लगभग डेढ़ माह तक उक्त मनी आर्डर कहाॅ था। पेड होने पर हस्ताक्षर किसका हैं? प्राप्त कर्ता और भेजने वाले दोनों को नहीं मिला तो भुगतान किसने लिया? करछना डाकघर में लापरवाही का आलम यह कि यहॅा अनेक प्रतियोगी छात्रों के पत्र तब मिलते हैं जब उनकी परीक्षा समाप्त हो चुकी होती है। चोरी की गयी पत्रिकाएं एवं समाचार पत्रों के पन्ने कभी दुकानों से किराना सामग्री लेने पर मिल जाते हैं जो यह दर्शाते हैं कि एकत्रित पत्र पत्रिकाएं रद्दी के भाव बेच दी जाती हैं। कदाचित डाक विभाग के उच्चाधिकारी कभी कभार करछना डाकघर का आकस्मिक निरीक्षण करते तो वास्तविकता का पता उन्हें भी चल जाता।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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