समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एवं कारागार मंत्री श्री राजेन्द्र चैधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश लोकतंत्र के महापर्व-लोकसभा चुनाव -2014 के दौर से गुजर रहा है। समाजवादी पार्टी इसमें कई मोर्चो पर लड़ रही है। एक ओर देश में यथास्थितिवादी और जातिवादी ताकतें हैं तो दूसरी ओर सांप्रदायिकता का जहर फैलाने वाली ताकतें भी अपनी साजिशों में लगी है। समाजवादी पार्टी का मानना है कि देश में विकास की प्रक्रिया बिना किसी बाधा के चलती रहे इसके लिए देश के सामाजिक ताना बाना में सामंजस्य और सौहार्द की निरंतर आवश्यकता है जो तत्व इसमें बाधक हैं और समाज को सांप्रदायिक आधार पर बाॅटने का काम कर रहे हैं, वे देष की एकता-अखण्डता के लिए खतरा हैं।
समाजवादी पार्टी का सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष का पुराना इतिहास है। श्री मुलायम सिंह यादव ने बराबर लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता की ताकतों को बढ़ाया है। वे आस्था से ऊपर संविधान को मानते हैं। सामाजिक न्याय और सामाजिक सद्भाव के लिए समर्पित रहे हैं। मो0 आजम खाॅ भी श्री मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सांप्रदायकिता से लड़ते रहे हैं। उ0प्र0 में भाजपा पहले दिन से ही सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कुचेष्टा करती रही है। कांगे्रस और बसपा उनका साथ निभा रही है।
चूंकि समाजवादी पार्टी की सरकार ने अधिकांश पांच साल के चुनावी वायदे दो साल में पूरे कर दिए हैं। मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के प्रति जनता का भरोसा बढ़ता चला जा रहा है। इससे हताश निराश और कुठिंत तत्व समाजवाद के रथ के पहिए आगे बढ़ने से रोकने में लग गये हैं। श्री मुलायम सिंह यादव और श्री मो0 आजम खाॅ के बयानों केा तोड़ मरोड़ कर एक दूसरे ही ढंग से पेश करने की साजिशें चल पड़ी हैं। इन साजिशों में वे लोग शामिल हैं जिनकी जमीन खिसक रही है और जो हारे जुआरी की भूमिका में आ गए हैं।
चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से हो इसके लिए निर्वाचन आयोग जिम्मेदार है और उसे यह जिम्मेदारी बिना राग-द्वेष के निभानी चाहिए। भाजपा के अमित शाह लगातार संाप्रदायिकता की राजनीति कर रहे थे। उमा भारती और अमित शाह दोनों बराबर धमकी भरे बयान देते हैं कि चुनाव बाद उ0प्र0 की बहुमत की निर्वाचित सरकार गिरा दी जायेगी। नरेन्द्र मोदी कभी गुजरात के शेरों की बाते करते हैं, कभी आजम खाॅ की भैंसों की और अब उन्होंने ताना मारा है कि नेता जी उ0प्र0 में श्री अखिलेश यादव से सांड भी नहीं सम्हाले जा पा रहे हैं। वैसे तो यह उनका ओछापन ही है, लेकिन देश के बड़े पद के लिए यह मर्यादाहीन और छोटी हरकत है।
भाजपा के नेताओं की भाषा चुनाव के माहौल को बिगाड़ने और राजनीतिक प्रदूषण फैलाने वाली है। निर्वाचन आयोग पता नहीं क्यों भाजपा के बिगड़े नेताओं के इन बयानों का संज्ञान नहीं ले रहा है। एक बहुचर्चित उक्ति है कि ‘‘न्याय होने के साथ यह लगना भी चाहिए कि न्याय किया गया है।’’ आजम खाॅ साहब को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर अपनी सफाई का मौका तो मिलना ही चाहिए था। निर्वाचन आयोग को 5Û00 बजे तक उनको जबाव देना था पर उससे भी वंचित कर उनको चुनाव प्रचार से बेदखल करना निर्वाचन आयोग की दुर्भाग्यपूर्ण कार्यवाही है। समाजवादी पार्टी की मंाग है कि लोेकतंत्र की सुरक्षा के लिए निर्वाचन आयोग अपने निर्णय पर पुनः विचार करें जिससे साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष विचारों के अन्तर की स्पष्टता स्थापित हो सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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