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नन्द निकेतन नाका हिन्डोला। चेतना साहित्य परिषद के तत्वाधान में श्रंृगार विषयक समीक्षा काव्य गोष्ठी का आयोजन श्री जगमोहन नाथ कपूर ‘सरस‘ की अध्यक्षता एवं श्री रमा शंकर सिंह के कुशल संचालन में सम्पन्न हुआ।

Posted on 15 April 2014 by admin

नन्द निकेतन नाका हिन्डोला। चेतना साहित्य परिषद के तत्वाधान में श्रंृगार विषयक समीक्षा काव्य गोष्ठी का आयोजन श्री जगमोहन नाथ कपूर ‘सरस‘ की अध्यक्षता एवं श्री रमा शंकर सिंह के कुशल संचालन में सम्पन्न हुआ।
गोष्ठी का शुभारम्भ डा0 शिवभजन कमलेश ने अपने सरस श्रंृगारिक मातृ स्तवन से किया।
काव्य संध्या में प्रथम पुष्प के रुप में श्री धीरज मिश्र ने श्रंृगारिक दोहे एवं मुक्तक अर्पित किये।
सब  कहते हैं भूल  जा,  रोना है बेकार।
दिल कैसे भूले भला, पहला-पहला प्यार।।
श्री जगदीश शुक्ल  ने अपने काव्य पाठ में श्रंृगार की अद्भुत छटा बिखेरी-
चंचला कहूँ कि मृग नैनी नाम दूँ मैं तुझे कैसे कहूँ मोहिनी तू मन में समायी है।।
डा. आशुतोष वाजपेयी ने अप्रतिम छन्द सुनाकर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया-
दिव्य है स्वयम्वर उषा के आगमन पूर्व, शशि संग मैं तो ससुराल चली जाऊँगी।।
डा. शिवभजन कमलेश ने अपने काव्य पाठ में श्रंृगार का ललाम गीत सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया ।
राम-कसम बेरी के बेर, आओ गदराने लगे। फूूलों से लद गये कनेर, दिन हैं इतराने लगे।।
श्री भोलानाथ अधीर ने श्रृंगार की ग़ज़ल प्रस्तुत की।
बात जब भी शबाब तक पहुँची, घूम फिर कर शराब तक पहुँची।
काव्य संध्या के शिखर पर विराजमान गोष्ठी के अध्यक्ष श्री जगमोहन नाथ कपूर ‘सरस‘ ने समस्त कवियों को उनके सुन्दर एवं मधुर श्रृंगारिक काव्य पाठ के लिए साधुवाद दिया एवं स्वयं खूबसूरत अशआर पेश किये।
प्यार का व्याकरण नहीं होता,
किन्तु अन्तःकरण ज़रुरी है।
गोष्ठी में, श्री अशोक कुमार शुक्ल, श्री नवीन बैसवारी, श्री अरविन्द कुमार झा, श्री कृष्ण द्विवेदी द्विजेश, श्री राम शंकर वर्मा, श्री अनिल वर्मा, श्री बसन्त राम दीक्षित ‘बसन्त‘, श्री रमा शंकर सिंह, श्री आशिक रायबरेलवी, श्री कृष्णकान्त झा आदि कवियों ने अपने  अद्भुत काव्य पाठ से समस्त श्रोताओं को रससिक्त किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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