सहारा के खातों के सत्यापन में सेबी की धीमी रफ्तार से सर्वोच्च न्यायालय नाराज

Posted on 09 April 2014 by admin

नयी दिल्ली,…………अप्रैल - सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा के ओएफसीडी इश्यू से जुड़े निवेशकों के खातों के सत्यापन की प्रक्रिया में सेबी की धीमी रफ्तार पर अपनी नाराजगी दिखाई है। गत 3 अप्रैल को सहारा समूह और सेबी के मध्य चल रहे मुकदमे की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस मामले से सम्बन्धित निवेशकों के सत्यापन में बाज़ार नियामक ज़्यादा प्रगति करने में असफल रहा है।
सेबी ने निवेशकों को वापसी के लिए सहारा से अतिरिक्त रळपए 20,000 करोड़ धनराशि की मांग की है। दूसरी ओर सहारा का कहना है कि वह पहले ही कुल देय लगभग रळपए 25,800 करोड़ में से लगभग रळपए 23,500 करोड़ यानी 93 प्रतिशत धनराशि सहारा इंडिया रीयल एस्टेट काॅर्पोरेशन व सहारा हाउसिंग एवं इन्वेस्टमेंट काॅर्पोरेशन लिमिटेड के द्वारा जारी किये गए ओएफसीडी के निवेशकों को वापस कर चुका है। इसके साथ ही मूल रसीदों, प्रपत्रों, केवाईसी विवरण व वाउचरों सहित सभी आवश्यक प्रमाण भी पहले ही सत्यापन के लिए सेबी को प्रस्तुत कर चुका है।
गत 3 अप्रैल को मामले की सुनवाई के समय सहारा ने न्यायालय से मांग की कि वह सेबी को यह निर्देश दे कि वह कम्पनी के ओएफसीडी इश्यू के निवेशकों के सत्यापन की प्रक्रिया प्रारम्भ व समाप्त करे।
वैसे तो सेबी यह दावा करता आ रहा है कि सहारा द्वारा उपलब्ध करवाए गए निवेशकों के खाते काल्पित हैं, परंतु नियामक की स्वतंत्र सत्यापन प्रक्रिया में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। हालांकि सहारा ने बाज़ार नियामक के पास 18 महीने पहले ही रळपए 5120 करोड़ जमा करवा दिए थे, परंतु सेबी अब तक ओएफसीडी निवेशकों को मात्र रळपए एक करोड़ से भी कम राशि ही वापस कर पाया है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि वर्ष 2008 में सहारा ने रिज़र्व बैंक आॅफ इंडिया की कड़ी निगरानी में लगभग 4 करोड़ जमाकर्ताओं को रकम अदायगी की थी। केंद्रीय बैंक को तब एक भी कल्पित खाता नहीं मिला था। इस ओएफसीडी इश्यू में भी लगभग उन्हीं निवेशकों का समूह है।

हालांकि सेबी अपने कथनानुसार इस इश्यू में वास्तविक निवेशक ढूंढ़ रहा है, परंतु उसके द्वारा इस ढूंढ़ने के कार्य की प्रक्रिया बेहद कमज़ोर और अक्षम है जिससे कोई फायदा नहीं होगा। सहारा के निवेशकों के लिए सेबी की वेबसाइट पर उपलब्ध प्रपत्र केवल निवेश वापसी के प्रार्थना पत्र हैं न कि निवेशकों की पहचान के प्रपत्र। अतः ये प्रपत्र केवल उन्हीं निवेशकों के लिए हैं जिन्हें सहारा से रिफंड प्राप्त नहीं हुआ है और उन्हें उनके धन की वापसी बाकी है। सेबी ने अभी तक ऐसी कोई प्रक्रिया चालू नहीं की है जिससे उन निवेशकों का सत्यापन हो सके जिन्हें उनका निवेश वापस मिल चुका है। इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश निवेशकों को पहले ही रिफंड किया जा चुका है, जैसा कि सहारा पहले से ही दावा करता रहा है। अगर यह ही वास्तविकता है तो निवेशक भला क्यों बेवजह ऐसे कई-कई पन्नों वाले प्रपत्र भरेंगे।

वैसे भी सहारा के ओएफसीडी इश्यू के अधिकांश निवेशक गांवों और कस्बों के रहने वाले हैं जहां उन्हें कम्प्यूटर और इंटरनेट की सुविधाएं न के बराबर प्राप्त हैं। अगर एकबारगी यह मान भी लिया जाए कि सहारा ने कुछ को उनकी रकम नहीं लौटाई है, तो भी ऐसे निवेशकों को सेबी की वेबसाइट से ये प्रपत्र कैसे मिल पाएंगे? वैसे भी ये प्रपत्र काफी पेचीदा हैं, और इन्हें भरने में काफी कागज़ी कार्यवाही और मशक्कत करनी पड़ेगी जो कि उन छोटे निवेशकों के लिए दिक्कत भरा काम होगा, जो गांवों में बसे हैं और समाज के उन कमजोर तबकों से हैं जहां शिक्षा का स्तर काफी निम्न है। आश्चर्य की बात यह भी है कि सेबी ने रिफंड मांगने वालों को धन के ट्रांसफर के लिए बैंक में खाता खोलने को कहा है। बहुत सारे ओएफसीडी इश्यू के निवेशक ऐसे हैं जिनकी पहुंच बैंकिंग सेवाओं तक है ही नहीं। अतः उनके लिए तो मात्र रिफंड पाने के लिए खाता खोलना भी एक भारी भरकम कवायद ही है।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय सहारा की आलोचना करता आया है और कंपनी प्रमुख सुब्रत राॅय और दो निदेशक एक महीने से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में हैं, सर्वोच्च न्यायालय को सेबी के लचर रवैये और निवेशक सत्यापन में अक्षम रहने पर भी कड़ा रळख अपनाना चाहिए।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in