आयतुल्लाह सैयद अली नकी जो विश्व भर में सैयदुलउलमा के नाम से प्रसिद्ध हैं के जीवन और उनके कामों पर हो रहे सेमिनार के दूसरे दिन आज देश विदेश की विभिन्न यूनिवर्सिटियों से आए विद्धान और उलमा ने सैयदुलउलमा के जीवन और कारनामों पर प्रकाश डाला। दिन भर में चार सत्रों में विद्वानों और उलमा ने अपने वक्तव्य और लेखनी के माध्यम से दिखाया कि सैयदुलउलमा एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने जमाने से 100 साल पहले पैदा हुए।
पहले सत्र की अध्यक्षता प्रोफैसर ईराक रजा जैदी और श्री आजम अली निजामी ने की। इस सत्र में डाक्टर सनाउल्लाह मीर, प्रो सैयद रजा मूसवी, डाक्टर तौकीर आलम फलाही, डाक्टर अबू सूफियान इस्लाही, प्रोफैसर अत्हर रजा बिलग्रामी और प्रोफैसर अजीजुद्दीन हुसैन ने सैयदुलउलमा के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। प्रोफैसर सैयद रजा मूसवी ने उनकी लेखनी के बारे में लिखते हुए उन्होंने बताया कि शायद ही ऐसा कोई लेखक हुआ हो जिसने अरबी, फारसी और उर्दू में एक समान लिखा। प्रोफैसर अत्हर रजा बिलग्रामी ने बताया कि उन्होंने जिन्दगी में जो कुछ सीखा वह सैयदुलउलमा के साथ रहते हुए सीखा।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रोफैसर अख्तरूल वासे, प्रोफैसर अजीजुद्दीन हुसैन और प्रोफैसर अत्हर रजा बिलग्रामी ने की। इस सत्र में मौलाना फरमान हुसैन, डाक्टर मौहम्मद आसिम खां, श्री लईक रिजवी, डाक्टर मौहम्मद मुश्ताक, डाक्टर हसनैन अख्तर, प्रोफैसर मसूद अनवर अलवी, प्रोफैसर जाफर रजा बिलग्रामी और प्रोफैसर अबुल कलाम कासमी के सैयदुलउलमा के जीवन और कार्य पर लेखों को पढ़ा गया। डाक्टर मौहम्मद आसिम खां कहा कि सैयदुलउलमा बीसवीं सदी के सब से बड़े आलिम थे। श्री लईक रिजवी ने सैयदुलउलमा की उर्दू शायरी पर अपने लेख में कई हवालों से बताया कि सैयदुलउलमा एक ऐसे शायर थे जो उर्दू, अरबी और फारसी तीन भाषाओं में शायरी करते थे। उनकी शायरी को तीनों जबानों में अदबी हैसियत हासिल है। डाक्टर मौहम्मद मुश्ताक ने सैयदुलउलमा के द्वारा की गई कुरान की तफसीर को सबसे बेहतरीन तफसीर में से है। इसी प्रकार डाक्टर हसनैन अखतर ने सैयदुलउलमा की अरबी लेखनी के बारे में बताते हुए कहा कि ईराक, लेबनान और मिस्र में आज भी सैयदुलउलमा का नाम अदब के साथ लिया जाता है। प्रोफैसर मसूद अनवर अलवी ने सैयदुलउलमा की अरबी शायरी पर अपने लेख को पढ़ते हुए कहा कि ऐसे कम ही आलिम होते हैं जिन्होंने शायरी के मजमूए कहे हैं और जो अरबी साहित्य का आज अंग बन गए हैं। प्रोफैसर अबुल कलाम कासमी ने सैयदुलउलमा के बारे में जो उर्दू में शायरी हुई है उसपर अपने लेख में बताया कि उर्दू के कई बड़े शायरों ने सैयदुलउलमा पर कविताएं लिखी हैं।
तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्रोफैसर अनीस अशफाक, मौलाना जकी बाकरी और आगा अहमद मूसवी ने की। इस सत्र में सैयद महबूब अली, मौलाना रजा रिजवी गरवी, डाक्टर मौहम्मद इस्माईल और प्रोफैसर सउद आलम कासमी ने अपने लेख पढ़े। प्रोफैसर सउद आलम कासमी ने सैयदुलउलमा की अदभुत लेखनी पर प्रकाश डाला। प्रोफैसर अनीस अश्फाक ने क्हा कि दुनिया में जो भी बड़ी सोच रखने वाले लोग हैं वह एक समान सोचते हैं। उन्होंने कहा कि सैयदुलउलमा ने अरस्तु और प्लेटो की लेखनी शायद न पढ़ी हो लेकिन उनके विचार बहुत समान हैं।
चैथे और अंतिम सत्र की अध्यक्षता प्रोफैसर फज्ले इमाम और मौलाना मौहम्मद रजा दाउदानी ने की। इस सत्र में श्री गुलाम मुरतजा रिजवी, डाक्टर हयात आमिर, मौलाना शाहवार नकवी, डाक्टर लतीफ काजमी और मौलाना सैयद रजा हैदर ने अपने लेख प्रस्तुत किए। श्री गुलाम मुरतजा रिजवी ने सैयदुलउलमा की करबला पर लेखनी के बारे में बात करते हुए क्हा कि करबला को पहचनवाने में जो काम सैयदुलउलमा ने किया वह किसी ने नहीं किया। मौलाना रजा हैदर ने मुस्लिम देशों में सैयदुलउलमा को जिस इज्जत से देखा उसका ब्योरा दिया।
मौलाना कल्बे सादिक ने कहा कि मैं जो कुछ भी हूं वह सैयदुलउलमा के साथ रहने के कारण हूं। इस मौके पर ईराक से आयतुल्लाह अब्बास काशिफुल गिता, पाकिस्तान से मौलाना तालिब तबातबाई, मौलाना अली मौहम्मद नकवी और पाकिस्तान के ही मौलाना मौहम्म्द रजा दाउदानी भी मौजूद थे।
विश्व भर में प्रसिद्ध और भारतीय उपमहाद्वीप के 20वीं शताब्दी के सब से बड़े इस्लामी विद्वान और शोधकर्ता आयतुल्लाहिल उजमा सैयद अली नकी उर्फ नक्कन साहब जो सैयदुलउलमा के नाम से अधिक प्रख्यात हैं की 25वीं पुण्यतिथी के अवसर पर 75 वर्ष से भी पुरानी संस्था यादगारे हुसैनी की ओर से लखनऊ के शाह नजफ में आज एक तीन दिवसीय महान अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार का यह दूसरा दिन था।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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