भारतीय जनता पार्टी ने कहा एक बार फिर समाजवादी पार्टी वादों की पोटली के सहारे काठ की हांडी चढ़ाने की कोशिश में है। प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा पिछले वादों में भी पेंच थे, इस बार भी वादों में पेंच है। नारा किसान कर्जमाफी का पर जब सच सामने आया तो केवल चचा के बैंक के कर्ज माफ। नारा दिया हमारी बेटी उसका कल, जब सच सामने आया तो केवल अल्पसंख्यक बेटी। नारा था सबका विकास, पर जब सच सामने आया तो विकास अल्पसंख्यक गांवों में।
पार्टी के राज्य मुख्यालय पर आज बुधवार को संवाददाताओं से वार्ता के दौरान प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने सपा के घोषणा पत्र पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वादे करते समय पढ़ तो लेते। वादा है आयकर की छूट 1.5 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख करने की। पर सच यह है कि 2 लाख की छूट सीमा अभी है। जब झूठे आरोपों में जेलों में बंद बेकसूर की बात की जा रही है तो फिर केवल मुसलमान क्यों? दरअसल एक बार फिर मुस्लिम तुष्टीकरण का राग अलापने की कोशिश की गई है। किसानों की कर्ज माफी के तर्ज पर बुनकरों, हथकरघा व पावरलूप का विद्युत बकाया बिल माफ करने की बात की जा रही है। किसान कर्ज माफी की घोषणा के बावजूद किसान आत्महत्या कर रहा है। अब इस घोषणा के बाद जो बुनकरों के बिजली बिल बकाया होंगे और इस वादे पर विश्वास करके कि बिल माफ होंगे वे भरोसा करेंगे, फिर समाजवादी पार्टी की घोषणाओं में जिस तरह नियम व शर्तें लागू रहती है इसमें भी लागू होना स्वाभाविक हैं। बदहाली और आत्महत्या का एक और वर्ग तैयार होगा।
उन्होने कहा कि कृषि और किसान पर जोर देते हुए पिछली बार की तरह इस बार भी उपज का लाभकारी मूल्य देने की बात कहीं गयी 2012 के घोषणा पत्र में भी यही बाते कही गयी थी। अंतर इतना है कि वरियता क्रम में तब पहले नंम्बर पर थी, अब दूसरे नंबर पर है तब वादा था किसान की उपज का लागत मूल्य निर्धारित करने के लिए एक आयोग के गठन का जिसे तीन महीने में राज्य सरकार को रिर्पोट देनी थी, तीन महीने छोड़ दिजीए 24 महीने हो गये अभी आयोग का गठन ही नही हुआ। धान, गेहूॅ, गन्ना से जुड़े किसानों को किसी तरह की दिक्कत का सामना नही करना पड़ेगा का वाद था, धान खरीद कागजों में हुई। गेहूॅ खरीद का सच खुद मुख्यमंत्री ने जाकर देखा। गन्ने की स्थिति यह है कि सरकार मिल मालिकों के पक्ष में खड़ी दिखी। 10.5 हजार करोड़ का बकाया है, किसान मारा-मारा फिर रहा है सरकारी दावे उपलब्धियों का बखान कर रहे है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जांच आयोग बना समयबद्ध जांच कराने की बात थी। पर जब सच सामने आया तो सरकार सेफ पैसेज देती हुई नजर आयी।
श्री पाठक ने कहा कि विधानसभा चुनाव के समय भी सपा ने लोकलुभावन घोषणापत्र जारी किया था। दो वर्ष में ही उसने दिखा दिया कि उसकी सोच बहुत सीमित है। सपा वोट बैंक की राजनीति से ऊपर ही नही उठ सकती। वह ढिंढ़ोरा पीटती है, लेकिन सुशासन नही दे सकती। अब तो अल्पसंख्यक सम्प्रदाय के लोग भी सपा शासन में अपने को असुरक्षित महसूस करते है। युवाओं के लिए रोजगार सृजन का जिक्र नही है। एक बार फिर वादो-नारों के सहारे चुनावी सफलता की आस लगाये समाजवादियों को जनता समझ चुकी है। वादें सरकार बनाने पर पूरे होगें पर यहां तो सत्ता की चाभी रखने के लिए चुनाव लड़ा जा रहा है। जब सत्ता की चाभी मिलेगी और सामने सीबीआई होगी तो क्या होगा इन वादो की पोटली का।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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