चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक पार्टियों के योद्धा चुनाव युद्ध में पूरी तरह से कूद पडे हैं। नन्दगोपाल ’नन्दी‘ के चुनावी मैदान में उतर जाने से समीकरण पूरी से बदल गया है, नन्दी को कंाग्रेस से टिकट मिलने से वैश्य समुदाय असमंजस व धर्मसंकटे में फंस गया है। नन्दी को जब बसपा ने विधानसभा के लिये शहर दक्षिणी से चुनाव लडवाया था तो वैश्य वर्ग व अन्य समुदाय ने नन्दी को हाथों हाथ लिया था और नन्दी विजयी हुए जिसके परिणाम स्वरूप नन्दगोपाल ’नन्दी‘ को ईनाम के रूप मे बसपा सुप्रीमो ने उन्हे कैबिनेट मंत्री बनाया किन्तु वर्तमान समय मे स्थिति बिल्कुल विपरीत है। नन्दी को बसपा से निकाल दिये जाने पर नन्दी ने भाजपा से टिकट लेने की कोशीश की किन्तु भाजपा ने ठेंगा दिखा दिया फिर नन्दी ने कंाग्रेस मे जुगाड लगाया और कामयाब भी हुए, कंाग्रेस का प्राथमिक सदस्य न होते हुए भी प्रियंका गंाधी के हाथों टिकट पा गयें जिसका इलाहाबाद में कंाग्रेसियो ने तीखा विरोध भी किया।कंाग्रेस ने नन्दी के सहारे वैश्यों के साथ साथ स्वर्णों को रिझाने का प्रयास किया है किन्तु श्यामचरण गुप्ता जो सपा का दामन छोडकर भाजपा में आयें हैं जिनपर भाजपा ने विश्वास करते हुए इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया है, श्यामचरण 2004 में चित्रकुट के रास्ते एक बार लोकसभा पहुच भी चुके हैं, नन्दी और श्यामचरण दोनो एक दुसरे के लिये सबसे बडा खतरा बन गये है। श्यामचरण की भी पकड वैश्य समुदाय मे मजबूत है तथा भाजपा का प्रत्यासी होने की वजह से स्वर्णों का भी वोट बैंक इन की तरफ झुक रहा है इस दुविधा की स्थिति में वैश्य वर्ग को ये फैसला करना मुश्क्लि है कि नन्दी कोे चुने या फिर श्यामचरण को क्योंकि दोनो ही अपने हैं।इस बार भी सपा ने रेवती रमण पर विश्वास करते हुए पुनः मैदान में उतारा है किन्तु सपा प्रत्यासी रेवती रमण सिंह की स्थिती इस बार खराब ही दिख रही है क्योंकि रेवती जी से पिछडा वर्ग के साथ साथ स्वर्ण भी खफा नजर आ रहा है। आरक्षण के मुद्वे को लेकर सपा से पिछडा वर्ग वैसे ही नाराज चल रहा है, विशेषकर यादवों का वोट विखरता हुआ नजर आ रहा है। सपा के सक्रिय युवा नेता मनोज यादव और दिनेश यादव पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ई.वि. पहले से ही बगावत किये हुए है जिसका खामियाजा इ.वि.वि. चुनाव में समाजवादी पार्टी को भुगतना पडा था। अगर केजरीवाल की पार्टी ’आप‘ भी अपना प्रत्यासी उतारती है तो फिर नुकसान भाजपा,बसपा,काग्रेस और सपा को ही होगा किन्तु सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और कंाग्रेस को होगा इन सारे समीकरणों का फायदा फिलहाल बसपा प्रत्यासी केशरी देवी पटेल को मिलता दिखाई दे रहा है क्योंकि बसपा का परम्परागत वोट का बिखराव होता कहीं दिखाई नही दे रहा हैं तथा पटेल और कुर्मीयों की संख्या भी इलाहाबाद में बहुतायत है,अन्य पार्टियां सेन्धमारी करने की कोशीश में लगी है किन्तु फिलहाल इनको सफलता नही मिलता दिखाई दे रहा। इस संग्राम मे कौन हारेगा,कौन जीतेगा इसका निर्णय इलाहाबाद की सेना;जनताद्ध तय करेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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