केन्द्र सरकार ने राज्यों पर जो सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के अन्तर्गत गरीब व्यकितयों को कम से कम दर पर राशन उपलब्ध कराने की जो जिम्मेदारी सौंप रखी है, राज्य सरकारें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश सरकार उस वितरण प्रणाली में पूर्णतया असफल साबित हो रही है। सरकार चाहे भाजपा की हो, कांग्रेस की हो, बसपा की हो या फिर वर्तमान समाजवादी पार्टी की सरकार हो, हर सत्तापक्ष के साथ अनाज के माफियाओं का गहरा सम्बन्ध है। जितनी भी सरकारी स्तर से पूरे राज्य में राशन की दुकानें अलाट की गयी हैं, उन सभी में सरकार की ओर से महीने में दो बार ग्राहकोंराशन कार्ड धारकों को देने के लिये जो सामग्री डिपों में आती है, वह गोदामों से डिपो तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 60 प्रतिशत ही रह जाती है, 40 प्रतिशत खाधान सामग्री गोदाम से उठने के बाद माफियाओं के कब्जे में चली जाती है। अनाज माफिया 4 रूप्या किलो और 7 रूपया किलों वाला चावल और अनाज 14 रूपये के हिसाब से चक्की वालों तथा बडे व्यापारियों को हाथों हाथ बेच देते हैं। स्थानीय स्तर पर इस गोरख धन्धे को जिलाधिकारी से लेकर सभी प्रशासनिक अधिकारी और सत्ता पक्ष के नेता भली भांति जानते हैं। सबको यह भी मालूम है कि इस गोरख धन्धे का मुखिया स्थानीय स्तर पर जिला पूर्ति अधिकारी होता है। यदि आप किसी डिपो होल्डर की शिकायतें लेकर जिला पूर्ति अधिकारी के पास जाते हैं तो वह सीधे मुंह बात करने को ही तैयार नही होते हैं। यदि आप जिला पूर्ति अधिकारी को अपने प्रभाव में ले लेते हैं, या उन के व्यकितत्व पर आपका दबाव पड जाता है, तो वें सत्ता पक्ष के नेताओं को लाकर आपकी ज़बान खामोश करा देते हैं। कुल मिलाकर स्थानीय स्तर पर खाधान सामग्री को डिपो से उठाकर बाजार में स्वतंत्र रूप से गैर कानूनी ढंग से बेचने वाले खाधान्न माफियाओं का दबदबा है। आम आदमी की शिकायत सुनने के लिये कोर्इ भी तैयार नही है। इससे भी बडी बात तो यह है कि हर डिपो होल्डर के पास 30 प्रतिशत जाली राशन कार्ड बने हुए हैं जिनका राशन वें स्वयं हज़म कर लेता है। सरकार कितनी भी सख्ती क्यों न करे मगर जबतक सत्ता पक्ष के नेता और खाधान्न माफियाओं की इसी प्रकार सांठ गांठ रहेगी, तबतक केन्द्र से चलकर प्रदेश तथा प्रदेश से चलकर गांव-गांव पहुंचने वाली सरकारी खाधान्न वितरण प्रणाली र्इमानदारी के साथ संचालित नही हो पायेगी?
राशन की कालाबाज़ारी अब आम बात हो चली है और इस घोटालेबाजी से कोर्इ भी अछूता नही है जिसका कारण प्रत्येक नागरिक का राशन कार्ड होना और उसके साथ राशन के नाम पर छल किया जाना अब प्रत्येक माह का मामला है। इस विषय में आम आदमी बेहद परेशान नज़र आता है। सवाल यह नही है कि ऐसा क्यों हो रहा है तथा कब से हो रहा है। सवाल यह है कि इस परेशानी और हकतलफी पर रोक कौन और कब लगा पायेगा।
तहसील सदर सहारनपुर के गांव पटनी निवासी अब्दुल राजि़क ने बताया कि हमारे यहां कर्मवीर और विकास नामक दो व्यकित राशन डिपो का संचालन करते हैं जो तीन महीने में एक बार राशन का पूर्ण वितरण करते हैं, उनका स्पष्ट कहना है कि हम तो अधिकारियों तक हिस्सा पहुंचाते हैं, हमारा कोर्इ कुछ नही बिगाड़ सकता। स्थानीय पक्का बाग निवासी तमसील ने बताया कि कभी भी राशन डिपो पर राशन पूरा नही मिलता और जितना चाहे उतना माल डिपो होल्डर स्वयं रखकर ब्लैक में बेचता है, और विरोध करने पर दबंगर्इ पर उतारू हो जाता है। उधर सदर तहसील के ही गांव लखनौती कलां एवं हीराहेडी निवासी समरेज आलम ने भी यही बताया कि पहली बात तो यह कि हमारे गांव हीराहेडी से लखनौती कलां लगभग 5 किलोमीटर दूर पडता है जहां डिपो होल्डर सुभाष समय पर वितरण की सूचना भी नही देता है तथा अधिकतर माल को ब्लैक करता है।
समाजसेवी एवं पत्रकार नफीसुर्रहमान का कहना है कि उपरोक्त प्रकरणों में जब भी मैं स्वयं शिकायतें लेकर जिला पूर्ति कार्यालय पंहुचा तो जिला पूर्ति अधिकारी ने मेरी शिकायतों को अनदेखा करते हुए स्पष्ट रूप से बताया कि हमारे डिपो होल्डर जिस तरह का कार्य अन्जाम दे रहे हैं, वह सन्तोषजनक है। उनका कहना था कि हम पर भी लखनऊ वालो का दबाव रहता है, इसलिये हम स्थानीय स्तर पर डिपो होल्डरों पर सख्ती नही कर सकते। हमारे स्टाफ और निरीक्षकों को ऊपर पैसा भेजना पडता है तथा बहुत से खर्चे भी हम पर शासन की ओर से लगे हुए हैं।
इस विषय में जब जिलाधिकारी श्रीमति संध्या तिवारी से बात की गयी तो उन्होने कहा कि अच्छा हुआ आपने मेरे संज्ञान में मामला डाल दिया है, अब मैं सख्ती से इस विषय में पूछताछ करूंगी और किसी भी प्रकार से इस प्रकार के मामलों पर रोक लगार्इ जायेगी तथा ऐसा करने वालों के विरूद्व सख्त कानूनी कार्यवाही अमल में लार्इ जायेगी
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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