हम भारतीय लोकतंत्र की परिभाषा को समझने में इस समय अपने आपको अक्षम पा रहे है क्योंकि आये दिन रोज रोज नये नये विचार लोकतंत्र की परिभाषा गढ रहें है,
हमारी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस भाजपा, बसपा, सपा,के विचार जो समाचार पत्रों व विज्ञापनों के जरिये हम तक पहुंचती है यह है कि-
कांग्रेस की नजर में लोकतंत्र की परिभाषा मुसिलम, दलित, पिछडे, व गांधी परिवार तक ही सीमित नजर आ रहे है।
भाजपा की नजर में लोकतंत्र की परिभाषा अति पिछडे और धार्मिक उन्माद ही नजर आ रहे हैं।
बसपा की नजर में लोकतंत्र की परिभाषा पिछडे वर्ग के महान विभूतियों के स्मारकों पे जनता की गाढी कमार्इ के अरबों रूपये लगाकर जनता तक पेश करना।
सपा की नजर में यादव और मुसिलम समाज ही सम्पूर्ण नागरिकता पाने के योग्य है।
क्या हमारा समाज इसी भेदभाव से शुरू और इसी से खत्म होता है इस बात को सभी लोग सभी पार्टियां अच्छी तरह समझ लें की अगर किसी समाज जैसे अनारक्षित समाज के योग्य युवकों को हमारी सरकारी और हमारी सोच से उनकी योग्यता को कुचला जा रहा है अगर ये सिथतियां नहीं बदली तो एक ही उपाय बचता है वर्ग संघर्ष जो किसी देश व समाज के हित में नहीं होता है इस लिए हमारे विचार से डार्विन के सिद्धांत का पालन करना ही हमारा देश समाज व प्रदेश के लिए जरूरी है योग्यता की उत्तर जीविता का सिद्धांत योग्यता को जाति धर्म व समाजों में ना बांटे योग्यता को सम्मान दें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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