उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में फणीष्वरनाथ रेणु जयन्ती समारोह का आयोजन मा0 श्री उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं फणीश्वरनाथ रेणु जी के चित्र पर पुष्पांजलि के अनन्तर प्रारम्भ हुर्इ संगोष्ठी में वाणी वन्दना की संगीतमय प्रस्तुति श्रीमती पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत श्री अनिल मिश्र, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया। अभ्यागतों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डा0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा - रेणु का जन्म 04 मार्च, 1921 में हुआ। वे केवल 56 वर्ष जीवित रहे। मैला आँचल उनकी प्रमुख रचनाओं में एक हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र उनका उपन्यास मैला आँचल ने प्रमुख भूमिका निभायी है। अपने इस उपन्यास में क्षेत्रियता को पुट मिलता है, शब्दों में स्थानीय समस्यायें की झंकार सुनायी पड़ती है। वे जन समुदाय से जुड़े विषयों को अपनी रचनाओं में समिमलित करते थे। समाज की तस्वीर उनके साहित्य दर्पण में परिलक्षित होती है।
हिन्दी साहित्य में आचंलिक उपन्यास की परम्परा और रेणु विषय पर व्याख्यान देते हुए डा0 दिनेष कुषवाहा, रीवा ने कहा - रेणु रचनाएँ ग्रामीण आँचल से सम्बनिधत हैं। उन्होंने जन भाषा में अपने साहित्य को लिखा है। रेणु जी ग्रामीण आंचल के सशक्त रचनाकार थे। रेणु ने आंचलिक उपन्यासों की शुरूआत की। उनमें भोलापन व सादगी भी थी। उनके उपन्यासों देहाती समाज का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। शब्दों का पर्याय व प्रयोग भी काफी महत्वपूर्ण होता है। रेणु ही लोक जीवन से सम्बनिधत रचनाएं करते हैं। मैला आंचल आजादी से मोह भंग का वर्णन साहस व र्इमानदारी से प्रतीकात्मक रूप में किया है। वे ठेठ किसान चेतना के उपन्यासकार थे। वे महान कथा शिल्पी थे।
हिन्दी साहित्य में आचंलिक उपन्यास की परम्परा और रेणु विषय पर प्रकाश डालते हुए डा0 शंभु नाथ, लखनऊ ने कहा - रेणु जी के उपन्यास मैला आंचल में सार्थक, सर्जनात्मक आंचलिकता के तत्व विधमान हैं। रेणु जी से सम्बनिधत अपने संस्मरणों को बड़े ही सुन्दर ढं़ग से सुनाते हुए उन्होंने कहा वे असाधारण व्यकितत्व के धनी थे साथ ही उन्होंने ने फिल्म ‘तीसरी कसम’ के कुछ अंशो को भी बड़ें ही रोचक ढं़ग से सुनाया। अंचल प्रधान रचना आंचलिक होती है। उन्होंने अन्य भाषाओं में भी लिखे लेखकों के आंचलिक उपन्यासों की भी चर्चा की। आचंलिकता और सार्वभौमिकता में काफी कुछ निकटता का सम्बन्ध है। वे कथा शिल्पी व महान आंचलिक उपन्यासकार हैं। हिन्दी उपन्यासों की श्रृंखला में निशिचत ही ‘मैला आंचल’ एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
अध्यक्षीय सम्बोधन देते हुए संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष, मा0 उदय प्रताप सिंह ने कहा - कि वे एक महान उपन्यासकार, समाज के प्रत्येक वर्ग की आवश्यकताओं व समस्यायों का काफी निकटता से अध्ययन कर अपनी रचनाओं में उसका उल्लेख करते थे। रेणु जी के प्रति उन्होंने अपने भाव इस प्रकार प्रकट किये कि ‘तुम्हारे चरणों की धूल ही फूल के रूप में आपको अर्पित करता हूँ इससे अच्छा उपहार मुझे पूरे संसार में नहीं मिला।’
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डा0 अमिता दुबे, प्रकाशन अधिकारी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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