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गुलाब गैंग : रील लाइफ बनाम रियल लाइफ

Posted on 01 March 2014 by admin

फिलिमस्तान की यह पुरानी कहानी है जहां अनेक निर्माता, निर्देशक, लेखक, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार दूसरों के गीत, संगीत, रचनाओं, कहानियों को अपनी बनाकर प्रस्तुत कर देते हैं और लाखों रूपया कमाते हैं जबकि मौलिक लेखक, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार हाथ मलते रह जाते हैं। ऐसे लोगों के पास कापीराइट एक्ट के अनुसार अपनी रचना सिद्ध करने का कोर्इ ठोस प्रमाण नहीं होता। निर्माता, निर्देशकों की यह प्रवृतित बढ़ती ही जा रही है अब तो स्पष्ट प्रमाण होने के बावजूद कुछ लेखक, निर्देशक दूसरों की रियल लाइफ कहानियों पर रील लाइफ फिल्म बना लेते हैं और मूल कहानीकार द्वारा क्लेम करने पर साफ इंकार कर देते हैं।
ऐसी ही एक फिल्म बनी है गुलाब गैंग जिसकी कहानी किसी कपोल कल्पना पर आधारित नहीं बलिक बुन्देलखण्ड में वास्तव में महिलाओं की लड़ार्इ लड़ रहीं गुलाबी गैंग की कमाण्डर सम्पत पाल के चरित्र की कहानी पर बनी फिल्म है। यह बात अलग है कि गुलाब गैंग फिल्म के लेखक, निदेशक सौमिक सेन उसे स्वीकार नही करते उनका कहना है कि गुलाबी गैंग से मेरी फिल्म गुलाब गैंग का कोर्इ सम्बन्ध नहीं है। वे गुलाबी गैंग कमाण्डर की तारीफ तो करते हैं। कहते हैं कि सम्पत पाल बहुत अच्छा काम कर रही हैं उनके गैंग का काम मुख्य रूप से बदतमीज पतियों को रास्ते पर लाना है जब कि उनकी फिल्म में बालिकाओं की शिक्षा एक बड़ा मुददा है उनको आत्म निर्भर बनाने की कोशिश है ताकि वे इस दुनिया में स्वयं की मेहनत के दम पर जी सकें।
वास्तव में सौमिक सेन ने गुलाबी गैंग के मूल विचार धारा को आधार बनाकर ही अपनी कहानी का ताना-बाना बुना है, वही उनकी फिल्म की आत्मा है। वे गुलाब गैंग का शीर्षक भले ही एरो सिमथ के गीत दि पिंक इज रेड के भाव को बताते हो और कहते हो कि गुलाबी रंग लाल के बहुत नजदीक होता है और कभी-कभी खतरनाक भी। यदि ऐसा है तब उन्होंने अपनी फिल्म का शीर्षक ”पिंक इज रेड या ”लाल गैंग क्यों नही रख लिया? उन्हें गुलाब गैंग रखने का आइडिया कहां से आया? वास्तव में यह बुन्देलखण्ड (बाँदा) के गुलाबी गैंग से ही प्रभावित होकर रखा गया है। गुलाब गैंग के मुख्य पात्र रज्जो के माध्यम से वास्तविक पात्र सम्पत पाल की राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति को भुनाने का प्रयास किया गया है जिसे माधुरी दीक्षित ने अभिनीत किया है यह गुलाबी गैंग के असली चरित्र सम्पत पाल के चरित्र की कहानी है जिसने अपने गैंग के माध्यम से केवल बुन्देलखण्ड में ही नहीं देश-विदेश में महिलाओं को न्याय दिलाने के क्षेत्र में नाम कमाया है, किन्तु लेखक निर्देशक इसे स्वीकार करने से साफ इन्कार कर देते हैंं।
सौमिक सेन सम्पत पाल को केवल बदतमीज पतियों को रास्ते पर लाने वाली महिला और पतियों के विरूद्ध महिलाओं के संघर्ष को ही गुलाबी गैंग का मुख्य उददेश्य मानते है। यदि वे ऐसा मानते है तो उन्होंने गुलाबी गैंग और उनकी कमाण्डर की गतिविधियों उपलबिधयों का सही मूल्यांकन नहीं किया। एक फिल्मकार जिस विषय पर व्यवसायिक फिल्म बना रहा हो उस पर गम्भीर होम वर्क न किया होगा। यह अवश्य मानने योग्य है कि उन्हें गुलाबी गैंग की गतिविधियों उपलबिधयों की पूरी जानकारी हो, कमाण्डर सम्पत पाल की जानकारी हो किन्तु वह जानबूझ कर असली कहानी को स्वीकार न कर रहे हों।
फिलिमस्तान की रीति-नीति की दृषिट से यदि बात करे तो भला वे गुलाबी गैंग और कमाण्डर सम्पत पाल के जीवन संघर्ष को कैसे स्वीकार कर सकते हैं? यदि वे स्वीकार करते हैं तो उन पर सीधे-सीधे कहानी चोरी का आरोप लग जाता लेकिन सौमिक सेन अपनी ही बातों (श्री अजय ब्रह्राात्मज को दिये साक्षात्कार) में फंस जाते हैं। वे कहते हैं मैंने इस फिल्म को गम्भीर और कलात्मक नहीं होने दिया, यह शुद्ध हिन्दी मशाला फिल्म हैं इसमें प्रचलित ढांचे में ही शिक्षा, समानता और आत्म निर्भरता का सन्देश भी दिया है। इसका तात्पर्य यह है कि कहानी का मूल विषय गम्भीर और कलात्मक था वह विषय गुलाबी गैंग और सम्पत पाल का ही था जिसे लेखक ने मशाला फिल्म का विषय बनाकर प्रस्तुत किया है ताकि मूल कहानी का लाभ भी मिल जायें और गुलाबी गैंग व सम्पत पाल के कापीराइट के दायित्व से भी बच जाय।
लेखक निर्देशक सौमिक सेन और प्रोडयूसर अनुभव सिन्हा ने केवल फिल्म की कहानी ही नहीं उड़ार्इ बिना लागत के फिल्म का संगीत भी दूसरे के मंच पर रिलीज करा लिया इसलिये इसमें माधुरी दीक्षित को सुप्रसिद्ध नायिका के रूप में नहीं बलिक गुलाब गैंग की रज्जो के रूप में प्रस्तुत किया गया जबकि वह स्वयं ही इस अभियान की गुडविल ब्राण्ड एम्बेस्डर हैं। निर्देशक स्वयं कहते हैं कि गुलाब गैंग में सात गाने हैं और लम्बे समय बाद माधुरी दीक्षित ने सुप्रसिद्ध नृत्य निर्देशिका सरोज खान के निर्देशन मे डान्स किया है। किसी हिन्दी मशाला फिल्म जैसा कि में माधुरी दीक्षित जैसी नृत्य प्रवीण नायिका हो और सरोज खान जैसी नृत्य निर्देशिका ने निर्देशन किया हो तो निर्माता, निर्देशक भला फिल्म के संगीत को उसकी सफलता के मानक के रूप में क्यों न प्रस्तुत करेंगे? प्रोडयूसर ने इस बात का खास ख्याल रखा और फिल्म के रिलीज से पहले संगीत रिलीज कर उसे चर्चा में लाने का कार्यक्रम बनाया। वे धूम-धाम से संगीत रिलीज तो करना चाहते थे किन्तु किसी जुगाड़ की तलाश में थे कि रिलीज समारोह का खर्च न उठाना पड़े। पहले माधुरी दीक्षित के फैन पटना के पप्पू सरदार (ये माधुरी दीक्षित की हर नर्इ फिल्म का समारोह भव्य तरीके से अपने स्तर पर मनाते हैं) के समारोह में रिलीज का कार्यक्रम बना जो इस बार संगम नगरी इलाहाबाद में आयोजित होने वाला था। बातचीत चल ही रही थी कि इस बीच इन्हें एक प्रमुख हिन्दी दैनिक समाचार पत्र के ”बेटी बचाओ अभियान के बनारस में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की जानकारी मिली तो उसी में इन्होंने संगीत रिलीज का कार्यक्रम बना लिया और अपने प्लान के अनुसार उसी मंच पर रिलीज कराया। इस प्रकार बनारस में 24 जनवरी 2014 के बेटी बचाओ अभियान कार्यक्रम में बिना किसी विशेष खर्च के वे संगीत रिलीज कराने में भी सफल रहे।
सम्पत पाल को गुलाबी गैंग की कहानी पर गुलाब गैंग फिल्म बनने की सर्वप्रथम जानकारी अप्रैल 2012 में हुर्इ जैसे ही उन्हें जानकारी हुर्इ तो उन्होंने कहा बिना अनुमति यदि उनके जीवन पर फिल्म बनायी तो वह कोर्ट जायेंगी। यदि किसी को फिल्म बनाना है तो पहले मुझसे अनुमति ले लें फिल्म का सिक्रप्ट दिखायें तब फिल्म निर्माण करें। प्रोडयूसर अनुभव सिन्हा ने उसी समय दावा किया कि उनकी फिल्म उत्तर प्रदेश के किसी संगठन या महिला के जीवन से प्रेरित नहीं है। ये विवादास्पद बाते दोनों ओर से आयी और हो गयी किन्तु इनका कोर्इ निराकरण नहीं हुआ। इधर प्रोडयूसर निर्देशक ने फिल्म का निर्माण प्रारम्भ कर दिया जो अपनी गति से काम चलता रहा और एक वर्ष में लगभग पूर्ण हो गया।
एक वर्ष बाद मर्इ जून 2013 में ‘गुलाब गैंग फिल्म की फिर खबर आयी तो सम्पत पाल ने बम्बर्इ के एस.सी. पाल व एम. सेठना एडवोकेट के माध्यम से 13 जून 2013 को प्रोडयूसर, निर्देशक को कानूनी नोटिस भेजा जिसके सम्बन्ध में उन्होंने परिक्षण करने सम्बन्धी गोलमाल जवाब दिया और कहा कि हम विस्तृत उत्तर बाद में देंगे किन्तु उनका उत्तर अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। निर्माता निर्देशक ने अपनी मनमानी चलाते हुए फिल्म का संगीत तो रिलीज कर लिया है अब फिल्म के रिलीज की बारी है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व सन्ध्या पर इसके रिलीज की तैयारी है।
‘गुलाबी गैंग जन संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं सह-संस्थापक जयप्रकाश शिवहरे उर्फ बाबूजी का कहना है कि बम्बर्इ के एस.सी. पाल एडवोकेट के नोटिस के जवाब में निर्माता, निर्देशक ने विस्तृत उत्तर देने की भ्रामक बातें कहकर जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया है और आज तक सम्पर्क नहीं किया। गुलाब गैंग के प्रदर्शन पर कमाण्डर सम्पत पाल ने अपना अधिकृत ऐतराज जता दिया है, प्रशासनिक स्तर पर भी रोक लगाने हेतु तैयारी कर ली गयी है। यदि इतने पर भी बात नहीं बनती है तो संगठन रैली, धरना प्रदर्शन, अनशन की कार्यवाही करेगा। पहले रिपोर्ट से, फिर कोर्ट से उसके बाद भी नहीं माने तो बाँस कोर्ट (बाँस का डण्डा जो गुलाबी गैंग का निशान है इसको लेकर गुलाबी गैंग की महिलायें चलती हैं) से मनवाया जाएगा।
गुलाबी गैंग और गुलाब गैंग का मामला बड़ा ही रोचक बनता जा रहा है दोनों तरफ से अपनी-अपनी तैयारियाँ है। गुलाब गैंग के निर्माता निर्देशक ने मीडिया, सोशल मीडिया, टीवी आदि अनेक प्रचार के माध्यमों से अपनी फिल्म का प्रचार प्रारम्भ कर दिया है इधर गुलाबी गैंग जन संगठन की कमाण्डर सम्पत पाल, राष्ट्रीय संयोजक जयप्रकाश शिवहरे सहित अन्य पदाधिकारी प्रदर्शन रोकवाने के लिए कमर कस चुकें है। असली शकित परीक्षण 7 मार्च को देखने को मिलेगा जब निर्माता निर्देशक फिल्म रिलीज करेंगे और गुलाबी गैंग की रियल लाइफ कमाण्डर सम्पत पाल गुलाब गैंग की रील लाइफ कमाण्डर माधुरी दीक्षित की फिल्म रिलीज को रोकने का प्रयास करेगी।
एक अहम प्रश्न पैदा होता है कि बिना प्रमाण वाले कहानीकारों, लेखकों की रचना चोरी होने के मामलों की भांति क्या इसमें भी वे बच जायेंगे? राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति वाले गुलाब गैंग और कमाण्डर सम्पत पाल के ठोस प्रमाण के बावजूद क्या उन्हें न्याय मिल पायेगा या कानूनी दांवपेंच का फायदा उठाकर निर्माता निर्देशक इसमें भी धता बताने में कामयाब हो जायेंगे?

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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