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आर्इपीसी की धारा 498 की तरह ही आर्इपीसी की धारा 376 का गलत इस्तेमाल

Posted on 24 February 2014 by admin

केन्द्र सरकार के मन्त्री कपिल सिब्बल द्वारा तहलका के एडीटर तरूण तेजपाल के पक्ष में दिया गया बयान कि महिलाओं की अस्मत से सम्बनिधत आर्इपीसी की धारा 376 का दहेज उत्पीडन से सम्बनिधत आर्इपीसी की  धारा 498 की तरह ही गलत इस्तेमाल हो रहा है पर खासा बवाल हुआ है। इसमें कोर्इ दो राय नही कि कपिल सिब्बल का बयान अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। जिन लोगों ने न्याय की गरिमा को बनाये रखा तथा जिनकी वजह से न्यायपालिका आज भी स्वतन्त्र एवं विश्वसनीय स्तम्भ के रूप में पूरे विश्व में लोहे के सतून की मानिन्द नजर आ रही है। भारत की उस न्यायपालिका के पूर्व मुख्य न्यायधीश सर्वोच्च न्यायालय (नर्इ दिल्ली)  जसिटस अलतमश कबीर ने भी जसिटस ए. के. गांगुली के खिलाफ एक युवती द्वारा लगाये गये आरोप को गम्भीरता से लेते हुए प्रेस को निर्भिकता पूर्वक यह बयान दे डाला कि मुझे यह विश्वास नही होता कि एके गांगुली जैसा काबिले एहतराम जसिटस ऐसा कुकृत्य करने का साहस भी कर सकता है। न्यायपालिका में अल्तमश कबीर का नाम एक ऐसा नाम है कि जो वास्तव में न्याय से जुडा है। आपने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद को सुशोभित करते हुए जो निर्णय दिये उनका एक महत्व है। अल्तमश कबीर ने दिग्गज राजनेताओं तथा केन्द्र सरकार के दबाव को न मानकर संविधान में उल्लेखित धाराओं का शत प्रतिशत पालन किया तथा अपने आदेश ठीक उसी प्रकार जारी किये कि जो आर्इपीसी और सिविल धाराओं के अन्तर्गत किया जाना अत्यन्त जरूरी था। हम जब कपिल सिब्बल की बात करते हैं तो हमे जसिटस अल्तमश कबीर के विचारों को भी सामने रखना होगा।केन्द्र सरकार ने महिलाओं तथा सामाजिक संगठनों के दबाव में आकर एक दशक पूर्व दहेज से सम्बनिधत वादों के सख्ती से निपटारे हेतु आर्इपीसी में एमेन्डमेन्ट करके जिस तरह से दहेज की धाराओं को सख्त किया उसका नतीजा यह हुआ कि 12 साल से लेकर 90 साल का बूढा भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिये गये। छोटे-छोटे घरेलू झगड़ों पर भी 498 का प्रयोग होने लगा तथा समाज में सम्बन्ध विच्छेद एवं परिवार बंटवारे के मामलों में तेजी से बढोतरी हुर्इ और आपसी समझौतों में कमी महसूस की गयी। लगातार दहेज से सम्बनिधत उक्त धारा का दुरूपयोग होने का अहसास जब केन्द्र सरकार, राज्य सरकार एवं नेताओंं को होने लगा और जनता में हाहाकार मचा तब माननीय सुप्रीेम कोर्ट को पुन: एक आदेश जारी करना पडा जिसके अनुसार दहेज से सम्बनिधत मामालों पर कार्यवाही जांच के बाद ही सुनिशिचत की गयी। पुलिस को निर्देशित किया गया कि बिना छानबीन के एवं ठोस शहादतों के बाद ही दहेज की धाराओं में गिरफ्तारी की जाये। तब जाकर मनगढन्त दहेज की घटनाओं में बेतहाशा कमी आयी। उक्त कथन से साबित हुआ कि जिस प्रकार दहेज प्रकरण के मामलों में आर्इपीसी की धाराओं का दुरूपयोग किया गया उसी प्रकार महिलाओं की अस्मत से जुडे मामलों में भी किसी हद तक नही बलिक दामिनी काण्ड 2012 के बाद से बहुत हद तक दुरूपयोग होना आम बात हो गया है। जब तहलका के चीफ एडीटर तरूण तेजपाल के साथ कार्य करने वाली सहकर्मी जो लगातार दो साल से तरूण तेजपाल के साथ काम कर रही थी, यह इल्जाम लगाती है कि काफी समय पूर्व उसके साथ तथा उसकी अस्मत के साथ खेला गया उसी बात से यह साबित हो गया है कि यह केवल षडयन्त्र है। यदि किसी महिला के साथ छेडछाड अथवा कुकृत्य किया जाता है तो उसकी रिपोर्ट पीडिता द्वारा एक सप्ताह के भीतर सम्बनिधत थाने को की जानी जरूरी है। यही चलन अंग्रेजों के कार्यकाल से चला आ रहा है परन्तु आर्इपीसी की धाराओं में लचक होने के कारण तथा अधिवक्ताओं को न्यायालयों द्वारा छूट दिये जाने के परिणामस्वरूप कोर्इ भी व्यकितमहिला अपने साथ किये गये दुव्र्यवहार एवं अत्याचार से सम्बनिधत शिकायत सम्बनिधत थाने अथवा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में तीन माह पश्चात भी प्रस्तुत करके प्रतिवादी को प्रताडित करने का कार्य करती है तो उससे यह झलकने लगता है कि इस शिकायत में कहीं न कहीं झोल अवश्य है। जिस व्यकित कोमहिला को किसी से शिकायत है तो वह एक सप्ताह के भीतर अपनी शिकायत क्यूं दर्ज नही करा रही है? और   यदि एक सप्ताह के पश्चात शिकायत की जा रही है तो उससे साबित होता है कि यह किसी षडयन्त्र का हिस्सा है। तरूण तेजपाल जैसे व्यकित को जो कि धन, सैलिब्रेटी और शकित में देश के 50 लोगों की लिस्ट में शामिल हैं वह ऐसा करेगा यह हर बुद्विजीवी की समझ से बाहर की बात है। अभी मामला अखबारों की सुर्खियों में ही है कि तरूण तेजपाल के बाद एक और अधिवक्ता इन्टर्न ने सम्बनिधत काबिले एहतराम और अपने आप में व्यवहार कुशल होने के साथ साथ न्याय प्रिय जसिटस एके गांगुली पर यह आरोप मढ दिया कि जब वें इन्टर्न का कार्य गत वर्ष दिसम्बर 2012 में दामिनी काण्ड के दौरान दिल्ली में कर रही थी तो उस समय जसिटस एके गांगुली ने उसको भी अपनी बाहों में भर लिया था और अब उसको इस बात का अहसास हुआ कि उसके साथउसकी अस्मत के साथ खिलवाड किया गया। जिसकी बाबत उसने एक ब्लाग पर अपनी शिकायत प्रस्तुत की तथा टवीटर पर जनता को अपनी बाबत परिचित कराया। सवाल यह पैदा होता है कि जब एके गांगुली जैसा व्यकित कि जिसकी बाबत पूर्व मुख्य न्यायाधीश जसिटस अल्तमश कबीर यह कह चुके हैं कि इस शिकायत पर मैं किसी भी सूरत में यकीन नही कर सकता उसके अतिरिक्त एके गांगुली स्वयं सख्ती से इन आरोपों का खण्डन कर चुके हैं। स्वयं इस मामले को हार्इप्रोफार्इल परिसिथतियों में मुख्य न्यायाधीश जसिटस सदाशिवम ने तीन जजों की एक कमेटी गठित कर पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिये हैं उसके बावजूद भी चन्द राजनेताओं द्वारा और सामाजिक संगठनों द्वारा एके गांगुली के विरूद्व माहौल तैयार करना इस तथ्य को उजागर करता है कि एके गांगुली भी उसी तरह साजिश का शिकार हुए हैं कि जिस तरह से पिछले माह तरूण तेजपाल को शिकार बनाया गया है। यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन तथा समाज में सम्मानित कहे जाने वाले उधोगपतियों तथा राजनेताओं को कठघरे में खडा करके जो तहलका तरूण तेजपाल ने पूरे विश्व में मचाया। जिसके विरूद्व वें प्रमाण जनता के सामने लाये गये वें व्यकित हर हाल में तरूण तेजपाल से बदला लेने की फिराक में था। तरूण तेजपाल के यहां जिस सहकर्मी को पच्चीस हजार रूपये मासिक तनख्वाह मिलती हो यदि देश का कोर्इ राजनेताउधोगपति उस महिला को पांच करोड का लालच दे दे तो वह अपने भविष्य की चिंता को देखते हुए चिन्तामुक्त होकर किसी के भी विरूद्व कोर्इ भी शिकायत दर्ज कराने से नही हिचकिचायेगी? ठीक इसी प्रकार जसिटस एके गांगुली ने भी  दर्जनों ऐसे मुकदमात में आदेश दिये हैं कि जो उधोगपतियोंराजनेताओं से सम्बनिधत थे भला ये कैसे भूल सकते हैं कि जिनके खिलाफ जसिटस एके गांगुली ने निर्णय सुनाया हो वह जसिटस गांगुली को भूल जाये। परिणामस्वरूप इस तरह की जितनी भी घटनाएं सेलिब्रेटियों के साथ घट रही हैं उनके पीछे एक घिनौनी साजि़श काम कर रही है। हमारी माननीय सर्वोच्च न्यायालय से विनती है कि जिस प्रकार दहेज के मामलों में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकारराज्य सरकारों तथा पुलिस को निर्देशित किया है और जिस प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सख्त निर्देशोें के बाद दहेज प्रकरणों के मामलों में कमी आयी है उसी तरह महिलाओं की अस्मतछेडछाड से सम्बनिधत प्रकरणों के बाबत भी माननीय सुप्रीम कोर्ट को केन्द्र सरकारराज्य सरकार और सम्बनिधत पुलिस को सख्त दिशा निर्देश जारी करने चाहियें ताकि बिना जांच किये तथा बिना ठोस सबूत जुटाये मात्र शिकायत कर्ता की शिकायत पर किसी की भी गिरफ्तारी को प्रतिबनिधत किया जाये। दिसम्बर 2012 दामिनी काण्ड के बाद सामाजिक संस्थाओं नेराजनेताओं ने वाबेला मचाकर केन्द्र सरकार को महिलाओं की अस्मत से सम्बनिधत शिकायतों पर जिस ठोस कानून बनाने पर विवश किया है आज वही कानून भारत के सम्मानित नागरिकों के लिये और सम्मानित नागरिकों की आनबान के लिये भारी आफत बना हुआ है। कल को केन्द्र सरकार में ऊंचे पदों पर आसीन किसी भी व्यकित के विरूद्व कोर्इ भी स्वार्थी तत्व इसी तरह का आरोप किसी भी महिला द्वारा लगवा सकता है। उल्लेखनीय है कि दो दशक पूर्व एक केन्द्रीय मंत्री पर भी एक महिला ने भी इसी प्रकार आरोप लगाकर उन्हे अपमानित करने का काम अन्जाम दिया था। कठिन छानबीन के उपरान्त यह मालूम पडा कि यह सब षडयन्त्र माफियाओं ने केन्द्रीय मंत्री के खिलाफ रचा था। इतना सबकुछ होने के बावजूद यदि अभी भी केन्द्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायाधीश इस ओर से सचेत नही हुए तो जिस तरह से दहेज की धाराओं का दुरूपयोग होता रहा है ठीक उसी तर्ज पर बलिक उससे भी खतरनाक परिसिथतियों में धारा 376 का प्रयोग जारी रहेगा।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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