समाचार पत्र यदि सुआधारित तथ्यों पर किसी लांक्षन लगाता है और ऐसा लांक्षन लोक कल्याण के लिए सद्भावना पूर्वक लगाया गया है तो वह अवमानना के दायरे में नहीं आता है। शहर के चर्चित डाण् अनिल गुप्ता हत्याकांड में डाण् एससी गौड़ द्वारा दाखिल अवमानना के वाद में आरोपी अखबार के संपादक को उन्मोचन प्रदान करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने यह अवधारणा दी है। कोर्ट ने संपादक को अवमानना के आरोप से बरी करते हुए कहा है कि उनकी ओर से प्रस्तुत सीबीसीआईडी रिपोर्ट मेें दिए तथ्यों से स्पष्ट है कि अखबार की रिपोर्ट कपोल कल्पित नहीं थी बल्कि वह ठोस तथ्यों पर आधारित थी। कोर्ट ने समाचार जगत की सक्रियता के चलते कई चर्चित मामलों में प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता साबित होने का भी जिक्र अपने आदेश में किया है।
मामला 20 साल पुराने डाण् अनिल गुप्ता हत्याकांड से जुड़ा है जिसमें डाण् अनिल गुप्ता उनकी पत्नी रश्मि गुप्ताए बहन शालिनीए साढ़े तीन साल के पुत्र अभि और मां शांति गुप्ता की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। घटना 17.18 फरवरी 1993 की रात में अंजाम दी गई। इसे लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। उस वक्त शहर से प्रकाशित समाचार पत्र प्रयाग राज टाइम्स और लीडर;अंग्रेजी दैनिकद्ध ने इस घटना को लेकर प्रमुखता से समाचार और लेख प्रकाशित किए। नौ अप्रैल 1995 को इन समाचार पत्रों ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल के अस्थि रोग विभाग के तत्तकालीन विभागाध्यक्ष डाण् एससी गौड़ के संबंध में एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें डाण् गौड़ के मेडिकल कालेज की छात्राओं से सेक्स स्कें डल में फंसने और बचने तथा डाण् अनिल गुप्ता हत्याकांड से भी साफ बच निकलने का आरोप लगाया गया। डाण् गौड़ ने इस प्रकाशन को तथ्यहीन तथा मनगंढ़त बताते हुए अपनी अवमानना का परिवाद समाचार पत्रों और उसके संपादक अनुपम मिश्र के खिलाफ योजित किया था।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने इस मामले में अनुपम मिश्र के उन्मोचन ;डिस्चार्जद्ध के बिंदु पर सुनवाई की। अनुपम मिश्र की ओर से अपना पक्ष साबित करने के लिए सीबीसीआईडी की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जो उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की थी। सीबीआईडी की इस रिपोर्ट के अलावा डाण् गौड़ के खिलाफ अन्य दस्तावेज भी न्यायालय के समक्ष रखे गए। सीबीसीआईडी की रिपोर्ट का न्यायालय ने अपने आदेश में जिक्र किया है जिसमें मामले को लेकर डाण् गौड़ और प्रीति नर्सिंग होम के संचालक डाण् एके गुप्ता के संबंध में गंभीर टिप्पणियां की गई है। रिपोर्ट में हत्याकांड से संबंधित कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों को दबा देने का भी जिक्र है। पोस्टमार्टम करने के तरीके पर भी सवाल उठाए गए हैं। समाचार पत्र ने किसी विद्वेष से प्रेरित होकर यह लेख लिखा इस बात को साबित करने में भी डाण् गौड़ नाकाम रहे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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