विश्व वेटलैण्ड दिवस के अवसर पर आज इनिदरा गांधी प्रतिष्ठान गोमती नगर में वन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण श्री वी0एन0 गर्ग ने कहा कि आज सम्पूर्ण विश्व में वेटलैण्ड दिवस मनाया जा रहा है। वेटलैण्ड के अन्तर्गत मानव अथवा प्रकृति द्वारा निर्मित ऐसे क्षेत्र आते हैं जहाँ जल स्थैतिक अथवा गतिशील हो तथा जल की गहरार्इ 6 मीटर से अधिक न हो। श्री गर्ग ने कहा कि वेटलैण्डस जैव विविधता संरक्षण, जल आपूर्ति, मत्स्य पालन, कृषि कार्य, मनोरंजन, परिवहन, पारिसिथतिकीय पर्यटन एवं विभिन्न वनस्पति व वन्य प्राणियों के वास स्थल के रूप में विभिन्न महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। विश्व वेटलैण्ड दिवस की विषय वस्तु को अत्यन्त प्रासंगिक बताते हुए श्री गर्ग ने कहा कि विश्व में ताजे जल के 70 प्रतिशत भाग का उपयोग कृषि कार्य में होता है। वेटलैण्ड व कृषि में गहरा सम्बन्ध है जिसके दृषिटगत कृषकों को ऐसी तकनीक से परिचित कराया जाये जिससे वेटलैण्ड सुरक्षित रहे तथा कृषि प्रभावित न हो। वेटलैण्ड के असितत्व के लिये विभिन्न कारकों का उल्लेख करते हुए श्री गर्ग ने कहा कि वेटलैण्ड का बुद्धिमत्ता पूर्ण उपयोग, विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय, अनुसंधान, प्रशिक्षण, समुचित वैज्ञानिक व समेकित प्रबन्धन एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से वेटलैण्ड का संरक्षण संभव है।
प्रमुख वन संरक्षक, श्री जे0एस0 अस्थाना ने कहा कि शिकार, अति विदोहन, वहन क्षमता से अधिक दबाव व प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना कर रहे वेटलैण्ड का वैज्ञानिक प्रबन्धन किए जाने हेतु गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है। बढ़ी जनसंख्या की आवश्यकता पूर्ण करने हेतु निर्माण कार्य में तेजी के कारण वेटलैण्ड में कमी होने के परिणाम स्वरूप भू गर्भ जल स्तर व जल उपलब्धता में कमी हो रही है।
श्री अस्थाना ने कहा कि वेटलैण्ड अत्यन्त महत्वपूर्ण परिसिथतिकीय तंत्र तथा विभिन्न वनस्पतियों व स्थानीय वन्यप्राणियों के महत्वपूर्ण वासस्थल हैं। विकास कायोर्ं व वेटलैण्ड के मध्य समन्वय स्थापित कर वेटलैण्ड संरक्षित कर सकते हैं।
प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) डा0 रूपक डे ने अभ्यागतों का स्वागत करते हुए विश्व वेटलैण्ड दिवस की पृष्ठभूमि, वेटलैण्ड संरक्षण की आवश्यकता, क्षरण हेतु उत्तरदायी कारण व इससे होने वाले दुष्परिणामों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इण्टरनेशनल क्रेन फाउण्डेशन के श्री गोपी सुंदरम ने कहा कि प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण की समृद्ध परम्परा, धान की खेती व धार्मिक कारणों से प्रदेश के वेटलैण्डस में जलीय पक्षियों में विविधता पार्इ जाती है। प्रदेश में पाए जाने वाले 400 प्रजातियों के पक्षियों में से 37 प्रतिशत वेटलैण्ड पर निर्भर हैं। प्रदेश के वेटलैण्डस में पाए जाने वाले पक्षियों में सारस, ब्लेक नेक्ड स्टार्क, एशियन ओपन बिल्ड स्टार्क, पर्पल हेरल्ड का उल्लेख करते हुए श्री सुंदरम ने कहा कि वेटलैण्ड के आकार व घनत्व का प्रभाव पक्षियों की संख्या व विविधता पर पड़ता है।
डब्लू0डब्लू0एफ0 के वेटलैण्ड विशेषज्ञ श्री बेहरा ने कहा कि स्वच्छ जल में पार्इ जाने वाली डालिफन, गंगा व ब्रहम पुत्र नदी बेसिन तक सीमित हो गयी है। देश में वर्तमान में इनकी संख्या मात्र 1800 रह गर्इ है। डालिफन की संख्या वर्षा पर निर्भर नदियों में घट रही है जबकि ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली नदियों में इनकी संख्या बढ़ रही है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों यथा गंगा, घाघरा, गण्डक, चम्बल, यमुना व चम्बल के मिलन स्थल, नरौरा बैराज से कानपुर एवं कानपुर इलाहाबाद के मध्य डालिफन की संख्या व वितरण पर विस्तार से प्रकाश डाला। श्री बेहरा ने डालिफन व इसके पास स्थल के समक्ष उत्पन्न संकट व डालिफन संरक्षण हेतु स्थानीय समुदायों की सहभागिता प्राप्त करने हेतु किए जा रहे प्रयासों पर विस्तान से प्रकाश डाला। टी0एस0ए0 के श्री शैलेन्द्र सिंह ने प्रदेश में वेटलैण्ड पर निर्भर वन्यजीवों कछुए, मगर, विभिनन प्रजाति के पक्षियों, घडि़याल के प्राकृतवास, व्यवहार, प्रबन्ध हेतु चुनौतियों व संरक्षण हेतु किए जा रहे प्रयासों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस अवसर पर प्रमुख वन संरक्षक (मूल्यांकन एवं कार्ययोजना) श्री उमेंद्र शर्मा, प्रबन्ध निदेशक (वन निगम) श्री इकबाल सिंह सहित वरिष्ठ वनाधिकारियों ने भाग लिया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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