वर्धा दिण् 29 जनवरी 2014 रू महात्माद गांधी अंतरराष्ट्री य हिंदी विश्व्विद्यालय में विश्वाविद्यालय के साहित्यय विभाग एवं उत्त2र प्रदेश हिंदी संस्थाभनए लखनऊ के संयुक्त तत्वादवधान में ष्अदम की कविता रू जनरुचि और पठनीयता का संदर्भष् विषय पर आयोजित राष्ट्री य संगोष्ठीा के दूसरे दिन हिंदी गजल की परंपरा में अदम पर हुयी चर्चा के दौरान आधार वक्ताो के रूप में उपस्थित गोविंद प्रसाद ने कहा कि अभी तो मैं हिंदी ही सीख रहा हूं। अच्छीर हिंदी के लिए उर्दू को जानना जरूरी है। गज़ल शब्दा अरबी का है लेकिन अरबी में गज़ल की कोई परम्पछरा नहीं रही। यह फारसी की है। रूपकों का संसार ईरान से आया है। गज़ल इशारे की जबान होती है। आजादी के बाद यह सवाल पैदा हो जाता है कि गज़ल उर्दू की है या हिंदी की। दुश्येन्तो के आने के बाद गज़ल को नया रास्ता मिल गया। हिंदी कवियों का गज़ल से बुनियादी सरोकार कभी नहीं रहा। गज़ल प्रदर्शन की वस्तु है अज्ञेय ने कहा था।
दुश्यरन्तर ने जो जबान गज़ल को दी वह उर्दू वालों ने भी स्वीाकार की। अदम की शैली दो टूक है उसमें लाग लपेट या संशय नहीं है। उन्होंजने अपना खुद गज़ल का स्कूील बनाया। इनकी गज़लों में तात्काललिकता मिलती है। इनके यहाँ वर्तमान की अधिकता है। जबकि इनके समकालिनों में इतना नहीं है। गालिब की शायरी में तमन्ना और ताबिज है। अदम में तमन्नाज मिलती है।
विश्व विद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में संपन्नन सत्र में वक्ताइ के रूप में उपस्थित डाण् अखिलेश राय ने कहा कि गज़लों का प्रारम्भर खुसरो से मानते हैए हिंदी को हिंदुओ से उर्दू को मुसलमानों से जोड़ा जाता है। शमशेर खुद कहते हैं कि मैं हिंदी.उर्दू का आबा हॅू। अदम ने दुश्यंदत से बहुत कुछ लिया है। गज़ल की ठोस धरती पर अवतरण अदम ने ही किया। सर्वहारा की समस्या एं अदम की गज़लों का विषय बनती है। अदम की गज़लों में भावए संवेदनाए समसामायिक जीवन की घटनाएँ हैं। अदम की दृष्टि वर्गीय है। इनकी गज़लों में व्यंेग्या की धार है प्रतीक नहीं। इन्होंाने गज़ल की भाषा ही नहीं बल्कि कथ्यष को भी बदल दिया। बड़ा शायर अपने समय की सच्चा इयों को बया करता है। अदम की गज़लें हिंदी गज़ल परम्पारा को सुदृढ़ करती हैं। अध्यीक्षता करते हुए दूधनाथ सिंह कोई भी विधा किसी की विरासत नहीं होती। जब तक लंगड़ा प्रजातंत्र रहेगा तबतक अदम की कविता प्रासंगिक रहेगी। जब हमारा समाजए संस्कृीतियाँ आदि बदल जाएगी तब शायरी भी इतिहास की वस्तुी हो जाएगी। शमशेर का लेख दो खण्डोंा में ;उर्दू की कवयत्रियाँद्ध अधूरापन ही कविता और कला का सौंदर्य है। गालिब कवि की सफलता इस बात में है कि उसकी कविता की सार्थकता बढ़ती जाये। अदम ने कविता को जनता की भाषा तक ले गये। कवि से यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वह जो कविता में लिखता है आवश्यषक नहीं की उसे अपने जीवन में उतारे। डाण् दिलीप शाक्य का कहना था कि अदम नक्समलवादए मार्क्सेवाद और गांधीवाद को अपनी गज़लों में दिखाते है। अदम जिस आम आदमी की बात करते है वह गांधीवाद में भी है और जनवाद में भी। अदम समय को पछाड़ देना चाहते हैं जबकि शमशेर समय से संघर्ष करते दिखते हैं। साहित्यम विभाग के सहायक प्रोफेसर डाण् रामानुज अस्था ना ने कहा कि अरबी में गज़लें कम लिखी गयी। उर्दू विवशता में उत्प न्नो भाषा हैं। फारसी संयोगात्म क भाषा है। अदम ने तत्सीम शब्दािवली के काफी शब्दों का प्रयोग किया। सत्र का संचालन डॉण् धूमकेतु ने किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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