नई दिल्ली में आज हिन्दु्स्ताान टाइम्स1 समिटए 2013 में प्रधानमंत्री डॉक्ट र मनमोहन सिंह के संबोधन का मूल पाठ निम्नुलिखित हैरूश्श्मुझे आप लोगों के बीच आने की खुशी हैए लेकिन हमारी मुलाकात दुखद परिस्थितियों मेंए दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रुपति नेल्स न मंडेला के निधन के समय हो रही है। उन्होंोने विश्वच की अंतरात्मार का प्रतिनिधित्वट किया। वे दमन और अन्या य के विरुद्ध अपनी जनता को विजय दिलाने के लंबे अर्से बाद भी ऐसी ही बुराइयों के प्रति संघर्षरत लोगों के लिए आशा की किरण बने रहे। बटे हुए विश्व में वे सुलह और सद्भाव के साथ काम करने का एक उदहारण थे और आने वाले लंबे अर्से तक हमें उनके जैसी कोई अन्यर शख्सियत देखने को नहीं मिलेगी। भारत उन्हेंल भावनाओं और आदर्शों से एक सच्चाय गांधीवादी मानता है और पूरे विश्वन के साथ मिलकर उनके कार्यों और शिक्षाओं के प्रति आभार व्यक्तव करता है। हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
आज के प्रयोजन की ओर लौटते हुएए मैं दशक भर से हर साल इस प्रकार के सालाना आयोजन करने के प्रयासरत रहने और प्रतिबद्धता दर्शाने के लिए शोभना जी की सराहना करता हूं । आपके पिछले दस समिट्स में से प्रत्ये्क के विषय पर गौर करने पर मैंने पाया कि आपने लगातार भारत के भविष्यद – अवसरों और चुनौतियों दोनों पर ध्यारन केन्द्रित किया है। व्याावसायिक तौर पर भी मीडिया का यह दायित्वऔ बनता है कि वह वर्तमान पर ध्या्न केन्द्रित करेए लेकिन मुझे खुशी है कि इस तरह के समिट के आयोजन जैसे प्रयासों के माध्य्म से वे अकसर भविष्य के बारे में भी चिंतन करते हैं।
इसी भावना को बरकरार रखते हुए इस अवसर का उपयोग करते हुए मैं भी थोड़ा रुक कर बड़े परिदृश्यह पर अपने नजरिये से विचार करना चाहता हूं।
मेरा नाता ऐसी पीढ़ी से हैए जिसने हमारे स्वाचधीनता संग्राम और राष्ट्रर निर्माण के हमारे प्रयासों से आकार लिया। स्वाेधीनता ने हमें आशा प्रदान की और स्वााधीनता ने हमें साहस प्रदान किया। लोकतंत्र ने हमें अधिकार और उत्तमरदायित्व प्रदान किये तथा राष्ट्रा निर्माण ने हमारे संविधान को परिभाषित किया। हमारी पीढ़ी ने तकरीबन आधी सदी धीमी वृद्धिए धीमे औद्योगिक विकासए बार.बार पड़ते अकाल और बहुत कम सामाजिक गतिशीलता देखी। वह भारत आज भी हमारे बहुत से भाइयों और बहनों के लिए विद्यमान हैए लेकिन बहुत कम लोगों के लिए।
बिल्कुकल अलग माहौल में जीवन बिताने के बादए मेरी पीढ़ी लगातार उसकी तुलना हमारे वर्तमान से करती है और वास्तेविकता यह है कि एक पीढ़ी के रूप में हमने अपने जीवन में ऐसे बदलाव का दौर देखा हैए जिसकी कल्पहना भी हमारी युवावस्थान के दौरान संभव नहीं थी। मेरे जैसे लाखों भारतवासी हैंए जिन्होंने अपना बचपन बहुत कम उम्मीाद के वातावरण के बीच बिताया है और उसके बाद बिल्कुएल अलग किस्मक का जीवन जिया है। यह सिर्फ समय के बदलाव मात्र से नहीं हुआए बल्कि भारत की जनता के प्रयासए साहस और महत्वा कांक्षाओं के मिश्रण तथा केन्द्रं और राज्यों् की विभिन्नप सरकारों की ओर से प्रदत्तव नेतृत्वश और मार्गदर्शन से हुआ।
शून्यण वृद्धि दर वाली 1900 और 1950 के बीच की आधी सदी के बाद हमने 3ण्5 प्रतिशत की दर से सालाना वृद्धि होते देखी। जब हमें महसूस हुआ कि दूसरे विकासशील देश हमें पछाड़ रहे हैं और उन्हों ने विकास के नये रास्तेु तलाश लिए हैंए तो हमने भी 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में अपना रास्ताे बदल लिया । पिछले दो दशकों से औसत सालाना वृद्धि दर दोगुने से ज्या दा बढ़कर 7ण्0 प्रतिशत हो गई और भारतीय अर्थव्यधवस्थाे वृद्धि के मार्ग पर बढ़ती गई ।
स्वाढभाविक रूप से इसमें उतार.चढ़ाव के दौर आएंगे। अर्थव्यावस्थाय का चक्र हमारे समक्ष अच्छेू प्रदर्शन के वर्ष और साधारण प्रदर्शन के वर्ष प्रस्तुयत करता हैए लेकिन सबसे ज्याषदा उल्लेपखनीय बात यह है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है तथा ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है। आज बहुत से लोग 5 प्रतिशत सालाना वृद्धि दर से संतुष्टब नहीं हैए जबकि हमारी आजादी के दो दशकों से ज्या दा अर्से बाद तक हमारी पंचवर्षीय योजनाओं की वृद्धि दर का लक्ष्यद पांच प्रतिशत था।
वैश्विक चुनौतियों की दिशा में तमाम उतार.चढ़ावों और अतीत में की गई नीतिगत भूलों के बोझ के बावजूद हमारी अर्थव्यतवस्थार वृद्धि के रास्ते पर है। यह पहला सबक हैए जो मैंने थोड़ा रुक कर और उभरते बड़े परिदृश्य् पर गौर करते समय सीखा है। हालांकि आर्थिक वृद्धिए सामाजिक बदलाव और राजनीतिक सशैक्तिकरण ने भारतीयों की बिल्कुिल नई पीढ़ी में नई महत्वाककांक्षाओं को जन्मस दिया है। इसने वृद्धि की तेज रफ्तार और बेहतर जीवन के प्रति बेचैनी बढ़ाने में योगदान दिया है। ये आकांक्षाएं और महत्वााकांक्षाएं सरकारों पर ज्या्दा देनेए बेहतर प्रदर्शन करनेए ज्याादा पारदर्शी बनने और ज्यारदा प्रभावशाली बनने का दबाव बना रही हैं। श्श्बढ़ती महत्वा कांक्षाओं की क्रांतिश्श् जारी है और मैं उसका स्वादगत करता हूं। वास्तकविकता तो यह है कि थोड़ा रुकने और बड़े परिदृश्ये पर गौर करने पर सही मायने में सबसे ज्यावदा महत्व पूर्ण हमारी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली मालूम पड़ती हैए जो इन अपेक्षाओं पर खरी उतरती आई है। पहले से कहीं ज्यातदा तेजी से बदल रहे भारत के संदर्भ मेंए हमारे गणराज्ये के प्रत्येतक राज्य में सरकारों का निर्वाचन और पुनर्निर्वाचन शांतिपूर्णए निष्पषक्ष और कारगर रूप से होने वाले चुनावों के माध्यकम से होता आया है।
कभी.कभार जनाक्रोश सड़कों पर और मीडिया के माध्यमम से दिखाई दे सकता हैए लेकिन भारत का श्श्शांत बहुसंख्यपक वर्गश्श् सुरक्षा और बदलाव के लिए अपने मताधिकार का इस्तेुमाल वैध लोकतांत्रिक तरीकों से करता है। पिछले दो वर्षों से कुछ बेहद महत्व।पूर्ण और चिंतित नागरिकों ने पूरे राजनैतिक वर्ग पर भ्रष्टद और जनविरोधी होने का आरोप लगाते हुए निराशावाद फैलाने की कोशिश की है। बहुत से लोगों ने यह सुझाव देना शुरू कर दिया है कि भारत में लोकतंत्र ने सही योगदान नहीं दिया। उन्होंनने संसद के फैसलों का सम्मा न करने से इनकार करते हुए संसद पर हमला बोला। क्याक इससे हमारी जनता लोकतंत्र के खिलाफ हो गईघ् क्यार इससे वह निर्वाचन प्रणाली के प्रति हताश हो गईघ् नहीं। पिछले दो वर्षों में हुए प्रत्ये्क चुनाव तथा हाल ही में सम्पलन्न विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्याप पर नजर डालिए। महत्वोकांक्षाओं और बढ़ती अपेक्षाओं का मंथन करते हुए भी हमारे देश की जनता ने मतदान करने और लोकतांत्रिक माध्य मों के जरिए बदलाव लाने का रास्ताे चुना। यह दूसरा सबक हैए जो मैंने थोड़ा रुक कर और उभरते बड़े परिदृश्य पर गौर करते समय सीखा है। हमारी जनता की बढ़ती महत्वंकांक्षाओं को पूरा करने तथा उच्चक वृद्धि के साथ राजनीतिक निरंतरता सुनिश्चित करने की नई चुनौती से जूझते हुए हमने वृद्धि की नई रणनीति परिभाषित की जिसे मोटे तौर पर श्श्समावेशी वृद्धिश्श् कहा जाता है। हमारी वृद्धि की प्रक्रियाओं को सामाजिक और क्षेत्रीय रूप से समावेशी बनाना हमारी सरकार की नीतियों का पैमाना रहा है। हमारी समावेशी वृद्धि की रणनीति के 6 घटक हैंरू पहलाए वह है जिसे मैं अकसर श्श्ग्रामीण भारत के लिए नयी व्यिवस्थामश्श् कहता हूं.ग्रामीण विकासए ग्रामीण बुनियादे ढांचे.विशेषकर सड़क और बिजलीए ग्रामीण स्वास्य् र और शिक्षा में निवेश तथा ग्रामीण उत्पा दों के लाभकारी दाम। हम इसे श्श्भारत निर्माणश्श् कहते हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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