जैसा कि आपको विदित है कि उत्तगर प्रदेश में 50 लाख किसान और उनके परिवार गन्नेप से अपनी आजीविका चलाते हैं। उत्ततर प्रदेश में प्रतिवर्ष 135 से 140 मिलियन टन गन्ना पैदा करते हैंए जो देश में सर्वाधिक है। चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा उद्योग हैए जो वहां लोगों के बड़े वर्ग को रोजगार मुहैया करा रही है। देश की शीर्ष और सबसे कुशल चीनी उत्पासदक कंपनियां भी यहां हैं। गत वर्ष उत्त र प्रदेश के किसानों को 6000 करोड़ रुपए के गन्नें के मूल्य के एरियर का सामना करना पड़ा था।;31 मार्च 2013 को देश के कुल 12ए700 करोड़ रुपए बकायों का 49:द्ध। गन्ने के नए सीजन में पिराई आरंभ होने ही वाली हैए इसके बावजूद अभी भी 2400 करोड़ रुपए बकाया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसानों का इतना भारी भरकम बकाया शेष हैए जो नए सीजन में ले जाया जाएगा।
सामान्यर तौर परए गन्नेभ की आवश्यषकता को निर्धारित करने और किसी मिल के लिए गन्ना आरक्षण का काम प्रति वर्ष अगस्तर के अंत में खत्मे हो जाता हैए किंतु पिछले वर्ष के बकायोंए गन्नेर के मूल्या निर्धारण की नीति स्परष्ट न होने और चीनी की कम कीमतों की वजह सेए मिल मालिक इस प्रक्रिया से दूर हैं। उत्तलर प्रदेश में इस कारोबार के कुछ प्रमोटरों से व्य क्तिगत बातचीत के दौरानए मैने पाया कि बैंक रूचि नहीं दिखा रहे हैं या उन्हों ने बताया है कि वे कार्यशील पूंजी ऋण देने की स्थिति में नहीं है। चीनी उद्योग को वर्ष 2012.13 के चीनी सीजन ;एसएसद्ध में 3000 करोड़ रुपए का नकद घाटा हुआ और उससे पहले वर्ष में और 1000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
घाटों का मुख्यस कारण कम हुई चीनी की कीमतें बताई जाती हैंए जो पिछले तीन चीनी सीजनों ;2010.11 से 2012.13द्ध के दौरान लगातार देश भर में उत्पांदित सरप्लडस चीनी की वजह से हैए और 2013.14 की सीजन में और सरप्लीस होने की उम्मीाद है। चीनी के स्टॉपक अब सबसे उँचे स्तेरों पर हैए और चालू 2013.14 एसएस के अंत तक 100 लाख टन को पार कर जाएगाए जिससे 30ए000 करोड़ रुपए का नकदी प्रवाह रुक जाएगा।
जब तक चीनी के सरप्लएस को वाजिब स्तारों तक लाने के प्रयास नहीं किए जातेएऔर मिलों को वित्ती1य सहायता नहीं प्रदान की जातीए तब तक चीनी उद्योग नकदी के लिए संघर्षरत रहेगा। अधिकांश बैंक इस सेक्टपर का उधार देने को राजी नहीं हैं और इस वजह सेए चीनी उद्योग का नकदी के लिए संघर्ष जारी रहेगा। उत्तरर प्रदेश में मिल से निकलने के बाद की चीनी के कीमतें पिछले साल इस समय के दौरान 36 रुपए प्रति किलो से गिरकर अब लगभग 29 रुपए प्रति किलो आ गई हैंए और इस प्रकारए 2013.14 में कहीं अधिक घाटा होने का भय हैए जो कि बदकिस्म ती से फिर से देश में सर्वाधिक होगा। इसलिए उत्त्र प्रदेकश में गन्नेाकीकीमतफिर से बकाया में चली जाएंगीए और 6000 करोड़ रुपए के पिछले वर्ष के रिकार्ड एरियर को पार कर जाएंगी।
हमारे छोटे और मझोले किसानों को उनके देय राशियों का समय पर अदा होना सुनिश्चित करके उनका संरक्षण करना आवश्य क है। इसलिएएयथासंभव निम्ननलिखित उपाय करने की जरू
कद्ध अगले 8.10 महीनों में 30.40 लाख टन चीनी का निर्यात करने की जरूरत है। मैं समझता हूँ कि चीनी की वैश्विक कीमतों में मंदी आई हुई है और भारत से चीनी का निर्यात व्यनवहार्य नहीं है। इसलिएए 2006.07 और 2007.08 एसएस की तरहए भारत सरकार को 30 लाख टन निर्यात के लक्ष्यश के लिए प्रोत्सा2हन की घोषणा करनी चाहिए।
खद्ध देश में इतनी अधिक चीनी सरप्लिस होने सेए भारत में चीनी आयात करने का कोई कारण नहीं है। हमें चीनी का निर्यात करने की जरूरत हैए न कि ब्राजील और पाकिस्ताकन से सस्ती चीनी का आयात करने की। इसलिएए चीनी पर आयात शुल्क0 को 15: से तुरंत बढ़ाकर 40: से 60: के बीच किया जाना चाहिए।
गद्ध भारत सरकार द्वारा 2007.08 में घोषित की गई ब्याोज अनुदान योजना की तरहए चीनी मिलों को 4.5 वर्षों तक कर्ज मुहैया कराने के लिए एक योजना तैयार की जानी चाहिएए जिसके लिए सरकार द्वारा सामान्य् कोष और चीनी विकास निधि से ब्याएज राशि मुहैया कराया जाए।ऋण की राशि पिछली बार की तरह अदा किए गए सीमा.शुल्कय के बराबर हो सकती है और यह अंतिम 2 वर्षों में देय होगी।
घद्ध चीनी के सरप्ल स का एक हिस्साह इथेनाल बनाने के लिए भी इस्तेेमाल किया जा सकता है। मुझे बताया गया है कि यदि तेल कंपनियां इथेहनाल के लिए सही कीमत मुहैया कराएंए तो चीनी के सरप्लास में से लगभग 15 से 20 लाख टन घटाया जा सकता है। इससे मिलों को अत्यंकत जरूरी नकदी प्रवाह मिलेगा। साथ हीएइससे देश के लिए विदेशी मुद्रा की बचत होगी और उस मात्रा तक तेल का आयात भी कम होगाए जिससे सीएडी को कम करने में मदद मिलेगी।
अतरूए मैं आपसे इस मामले में व्यजक्तिगत हस्तनक्षेप करने और मंत्रिमंडल की अगली बैठक में उपर्युक्त अनुरोधों का परीक्षण कराने का अनुरोध करना चाहूँगा। इसमें किसी भी प्रकार का विलंब होने से कई चीनी मीलें बंद हो सकती हैं और इससे किसानों को अपने गन्नोंँ को जलाना पड़ेगा इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएंगी जिस पर नियंत्रण करना कठिन होगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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