महाराष्ट्र हिन्दुस्तान में है और यहां बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषा मराठी है जो भारतीय भाषाओं में एक है। लेकिन महाराष्ट्र में खासकर मुंबई में अपने ही देश के दूसरे प्रांतों के लोगों के साथ गैरहिन्दुस्तानी जैसा सलूक किया जा रहा है। इस काम में शिवसेना और उसी के पेट से निकली मनसे लगी हैं जबकि आम मराठी और उत्तर भारतीयों के बीच पारिवारिक रिश्ते की सोंधी गंध मिलती है। शिवसेना ने पहले दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाया था, अब उत्तर भारतीय निशाने पर हैं। मराठी अस्मिता के नाम पर खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को मार-पीटकर यहां से भगाने की राजनीति हो रही है।
शिवसेना 40 वर्षो से भूमिपुत्रों की लड़ाई लड़ रही है। लेकिन यह कैसी लड़ाई है, जो अब तक अधूरी है जबकि शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर पांच साल तक महाराष्ट्र पर शासन किया है और मुंबई महानगरपालिका पर तो उसका आज तक कब्जा है। फिर मुंबई में उत्तर भारतीयों की भीड़ बढ़ने का मुद्दा क्यों बन रहा है? महाराष्ट्र के गांवों से भी गरीब मराठी रोजगार के लिए मुंबई आ रहे हैं। लेकिन उत्तर भारतीयों को बसाने का काम तो शिवसेना ने ही किया है। अवैध झोपड़ियों को इजाजत किसने दी, मनपा ने। इस सच्चाई को दरकिनार कर शिवसेना और मनसे मराठीवाद का राग अलाप रही हैं।
टैक्सी परमिट के नाम पर मराठी-गैरमराठी की राजनीति हो रही है। उत्तर भारतीयों से 24 हजार टैक्सी परमिट छीनने और मुंबई की अर्थ-व्यवस्था को बिगाड़ने की साजिश की जा रही है। हक छीने जाने के नाम पर भूमिपुत्रों में भाषा और प्रांतवाद का जहर भरा जा रहा है। उत्तर भारतीयों की बढ़ती भीड़ की वजह से मुंबई को अलग करने की मनगढ़ंत बात कही जा रही हैं। अब तो संयुक्त महाराष्ट्र की बात करने वाले मनसे अध्यक्ष राज ठाक रे ने इशारों में कह दिया कि महाराष्ट्र अलग राष्ट्र हो।
भूमिपुत्रों का मसीहा बनने के लिए शिवसेना के उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे (दोनों चचेरे भाई) गरीब और कमजोर उत्तर भारतीयों पर हमले कर रहे हैं। शिवसेना को मनसे से ही खतरा है जो मराठी वोट बांट रही है। इससे छटपटा रही शिवसेना मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और नामचीन उद्योगपति मुकेश अंबानी पर भी निशाना साधती है। शिवसेना और मनसे की हिंसक राजनीति से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद वर्ष 1992 के दंगों के पीछे शिवसेना के हाथ उजागर हो चुके हैं। अब पाक के क्रिकेट खिलाड़ियों को लेकर वह राजनीति कर रही है। सिटी पर बोलने वाले अभिनेता शाहरुख को बेवजह निशाना बनाया है। वैसे बॉलीवुड पर डर की राजनीति शिवसेना पहले से चला रही है। मगर शाहरुख ने थोड़ी हिम्मत दिखाई है और कुछ फिल्म वाले भी आगे आ रहे हैं। शिवसेना हमेशा दो नाव पर सवार रहती है-मराठीवाद के साथ हिन्दुत्ववाद। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे महाराष्ट्र में भूमिपुत्रों के लिए गरजते हैं तो हिन्दूहृदय सम्राट बनने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ बोलते हैं।
भारतीयों के रहनुमा बनने के लिए आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों पर राजनीति करते हैं। फिल्म अभिनेत्री पूजा बेदी पूछती हैं कि यूपी-बिहार के लोग भी भारतीय हैं उन्हें मुंबई से खदेड़ते वक्त क्या वे भारतीय नहीं दिखते। लेकिन ठाकरे उत्तर भारतीयों को मुंबई का बोझ समझ रहे हैं। सच यह है कि मराठी भी ठाकरे के मराठी प्रेम को समझने लगे हैं। इसीलिए उनकी राजनीतिक जमीन कमजोर पड़ी है। युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव सातव कहते हैं कि मराठियों को अपनी संस्कृति और इतिहास पता है और वह शिवसेना और मनसे के बहकावे में जाने वाले नहीं हैं।
उद्धव कहते हैं कि बिहार चुनाव को देखते हुए राहुल ने उत्तर भारतीयों के समर्थन में बयान दिया। मगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण मानते हैं कि राहुल गांधी के भारतीय प्रेम पर शिवसेना इसलिए बौखला गई है कि आने वाले दिनों में मुंबई महानगरपालिका का चुनाव है। उसे अब मनपा हाथ से जाने का खतरा दिख रहा है। मनपा का बजट किसी राज्य के बजट से कम नहीं होता। इसी मनपा ने पिछले साल 27 मराठी स्कूलों को बंद कर दिया। मराठियों की भी हिन्दी-अंग्रेजी में दिलचस्पी बढ़ी है। मराठी युवा अब विदेशों में नौकरी के लिए अंग्रेजी को अपना रहे हैं।
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Vikas Sharma
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