समय एवं परिसिथतियां सहनशील व्यकित का अहित नहीं कर सकती है। सहनशीलता र्इश्वर द्वारा मानव को दिया गया ऐसा गुण है, जिसको धारण कर मनुष्य महापुरुष बन सकता है। उक्त वचन सच स्वरूप माँ जसजीत जी ने दिव्य दृषिट समारोह के अपने प्रवचन एवं आशीर्वाद कार्यक्रम में सरोजनी नगर, लखनऊ सिथत राजकीय सैनिक इण्टर कालेज मैदान के प्रांगण में उपसिथत श्रद्धालुओं को समझाते हुए कहे।
आज 18 अक्टूबर के दिन सन 1992 में सच स्वरूप माँ जसजीत जी को दिव्य दृषिट की प्रापित हुर्इ थी, जिसके द्वारा वो लोगों के विचारों, मनोभाव और संवेदनाओं को पढ़ने एवं समझने वाली बनीं।
माँ ने कहा कि सहनशीलता सर्वोत्तम गुण है, जिसके द्वारा मनुष्य बुराइयों से दूर रहता है और धर्म का अनुयायी बनता है। सहनशील व्यकित दूसरों का क्रोध भी शांत कर देता है। मनुष्य के अंदर ज्यों-त्यों धर्म का ज्ञान होता है, ज्यों-त्यों उसमें सहनशीलता आती है और दूसरों के प्रति सहानुभूति के भाव जगाती है। सहनशील व्यकित दूसरों की छोटी-छोटी बातों का बुरा नहीं मानता। जीवन के उतार-चढ़ाव का हर व्यकित को सामना करना पड़ता है। असहनशील व्यकित रो-रोकर अपरिपक्व मानसिकता का परिचय देते हैं, जबकि सहनशील व्यकित र्इश्वर का सिमरन करते हुए यह ध्यान रखते हैं कि विपरीत परिसिथतियों में भी उन्हें सदव्यवहार करना है और कोर्इ ऐसा कार्य नहीं करना है, जिससे उनके कर्म खराब हों।
सदगुरु माँ ने कहा कि सहनशीलता की पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है और इससे हर मुशिकल आसान बन जाती है। सहनशीलता से साहस, विवेक, धैर्य, शीतलता, मधुरता, विनम्रता और सदभाव जैसे गुण विकसित होते हैं।
प्रवचन से पूर्व, उपसिथत संगत ने अपनी सदगुरु माँ के चरणों में भजन प्रस्तुत करे और अपने अनुभव में बताया कि किस प्रकार माँ के आशीर्वाद से उनकी जिन्दगी सही रास्ते पर आर्इ और वे धर्म के अनुयायी बन सके।
कार्यक्रम के समापन पर सच स्वरूपा माँ ने उपसिथत संगत को उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक कष्टों के निवारण के लिए अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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