लखनऊ सरकारें अपने मनचाहे लोगों को नौकरी देनननननने समूह ग भर्ती नियमावली में चुपचाप मनमाना संशोधन कर लिया पिछले दस सालों से सरकारें अपने मनचाहे लोगों को समूह ग भर्ती नियमावली से नौकरी दे रही हैं। बाबू बनाने के लिए नियमावली में अंधेरगर्दी इसका परिणाम यह हो रहा है कि जो लोग पात्र हैं वह नई नियमावली के चलते लाभ से वंचित हो जा रहे हैं। नियम ऐसे बना दिए गए हैं कि उनके आगे एकेडेमिक रिकार्ड कोई मायने रखता। अभ्यर्थी भले ही हाईस्कूलए इंटर और स्नातक परीक्षा बहुत अच्छे अंकों से पास की हो पर इंटरव्यू में बैठे लोग अगर मनमानी करने पर आ जाएं तो अच्छे रिकार्ड के बावजूद उसे नौकरी नहीं मिल सकती और एक ऐसे अभ्यर्थी को भी नौकरी दे सकते हैं जो थर्ड डिवीजन ही क्यों न पास हो। दरअसल इंटरव्यू में अंक देने का अधिकार बीस बढ़ाकर पचास कर दिया है और एकेडेमिक रिकार्ड के आधार पर अंक देने की सीमा कर कर दी गई है। इससे सीधी भर्ती के नाम पर बाबू स्तर के पदों की चयन प्रक्रिया जो पारदर्शी थीए उसमें अतिक्रमण करते हुए मनमानी करने की छूट दे दी गई है। यह व्यवस्था 2003 से लागू की गई है। वर्ष 2003 से पहले हाईस्कूलए इंटर और स्नातक परीक्षा के रिकार्ड के आधार पर पचास अंक मिलते थे और साक्षात्कार के लिए तीस अंक निर्धारित थे। इससे साक्षात्कार में बैठे लोग अगर मनमानी करना भी चाहें तो योग्य अभ्यर्थियों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकते थेए पर जून 2003 में जो नियमावली बनाई गई उसमें मनमानी करने की पूरी छूट है। इसके मुताबिक शैक्षिक योग्यता के आधार पर किसी भी अभ्यर्थी को अधिकतम 30 अंक दिए जा सकते हैं और साक्षात्कार के लिए 50 अंक निर्धारित कर दिए गए हैं। इससे जाहिर है कि तत्कालीन सरकार ने गलत इरादे से यह किया था। ऐसे में अगर कोई अभ्यर्थी ने अच्छे अंक भी पाए हैं तो साक्षात्कार बोर्ड चाहे तो उसे नौकरी से वंचित कर सकता है। इस संबंध में जनहितकारी संगठन के अध्यक्ष भगवत पाण्डेय का कहना है कि मनचाहे लोगों को तृतीय श्रेणी कर्मचारी की नौकरी देने के लिए समूह ग भर्ती नियमावली में चुपचाप संशोधन कर लिया गया और इसी की आड़ में हजारों लोगों को नौकरी भी दे दी गई। नौकरी देना गलत बात नहीं है लेकिन जिस तरीके से मनमानी की गई है और योग्यता को नकारा गया है वह बेहद चिंता का विषय है। इस पर मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से संशोधन कर पुरानी व्यवस्था बहाल करने की मांग की गई है। अगर ऐसा न किया गया तो हम लोग अदालत की शरण लेने को बाध्य होंगे।
इससे पहले सीधी भर्ती नियमावली 1975ए संशोधित नियमावली 1985 और पुनरू संशोधित नियमावली 1986 बनाई गई थी। इनमें साक्षात्कार के अंक 20 और बाद में 30 किए गए थे पर 50 नहीं किए गए क्योंकि इससे भर्ती की पारदर्शिता में आंच आने का खतरा था। पर 2003 में जो संशोधन किया गया उसने भर्ती प्रक्रिया को न केवल संदेह के घेरे में ला खड़ा किया है वरन मनमानी की छूट जैसी दे डाली है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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