उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जयन्ती समारोह का आयोजन मा0 श्री उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के चित्र पर माल्यार्पण के अनन्तर प्रारम्भ हुर्इ संगोष्ठी में वाणी वन्दना की संगीतमय प्रस्तुति सुश्री मीतू मिश्र द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत श्री अनिल मिश्र, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका साहित्य भारती जुलार्इ-सितम्बर, 2013 का लोकार्पण मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, श्री उदय प्रताप सिंह, संस्थान के निदेशक डा0 सुधाकर अदीब एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
अभ्यागतों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डा0 सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का व्यकितत्व तेजस्वी, प्रतिभावान, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आचार्य शुक्ल जी ने हिन्दी के विकास के लिए काफी प्रयास किया। हिन्दी साहित्य की पृष्ठभूमि तैयार करने में महती भूमिका निभायी। शुक्ल जी द्वारा लिखे साहितियक उद्धहरणों को काफी सहजता, से प्रस्तुत किया। ‘चिन्तामणि’, हिन्दी साहित्य का इतिहास जैसी उनकी कृतियाँ हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाती हैं। हिन्दी के नये-नये विचारों के क्षेत्रों में विस्तार करने का प्रयास शुक्ल जी द्वारा किया गया। साहित्य की समझ हमारे समक्ष शुक्ल जी प्रस्तुत करते हैं। शुक्ल जी ने जयशंकर प्रसाद व निराला जैसे साहित्य मनीषियों की रचनाओं की समीक्षात्म दृषिट से उन पर चर्चा की है।
‘हिन्दी समीक्षा और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ विषय पर व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा - शुक्ल जी उच्च कोटि के कवि व सम्पादक, कहानीकार, निबंधकार, शिक्षक थे। उनका महत्वपूर्ण योगदान हिन्दी शब्दकोश निर्माण में है। हिन्दी साहित्य के इतिहास के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान महत्वपूर्ण है। शुक्ल जी ने साहित्य का आकलन समीक्षात्मक कार्य किया। समीक्षा की बारीकी शुक्ल की रचनाओं में मिलती है। भारत के सांस्कृतिक आचार्यों को भी उन्होंने अपनी रचनाओं में समाहित किया व बड़ी ही र्इमानदारी से उनकी आलोचना व समालोचना भी की है। कहीं-कहीं वे प्रभावित भी हुए हैं। उन्होंने पशिचमी सभ्यता को समझा। हिन्दी की अपनी समीक्षा करने का श्रेय शुक्ल जी को है।
‘हिन्दी समीक्षा और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ विषय पर प्रकाश डालते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो0 चौथीराम यादव ने कहा - शुक्ल जी नवजागरण की देन है। ऐसा नहीं है कि शुक्ल जी के बाद साहित्य की आलोचना का कार्य बंद हो गया। तुलसीदास नामक रचना शुक्ल जी की प्रकृति चित्रण की दृषिट से सबसे कमजोर रचना है। शुक्ल जी की आलोचना मात्र पौराणिकता पर आधारित है जबकि अन्य समीक्षक अपनी आलोचना में वैदिक व पौराणिक दोनों तत्वों का समावेश कर साहितियक आलोचना करते हैं। शुक्ल जी की साहितियक आलोचना का विकास उससे टकराकर किया जा सकता है उसके पोषण से नहीं।
समारोह के सभा अध्यक्ष मा0 श्री उदय प्रताप सिंह ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा - परम्परावादी होने से साहित्य की आलोचना अवरूद्ध ही होगी बढ़ेगी नहीं। जब खड़ी बोली अपने पैरों पर चलना सीख रही थी उस समय आलोचना का समय था और शुक्ल जी ने उसको दृषिटगत रखते हुए अपनी आलोचना को गति दी। आलोचना के सन्दर्भ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी की दृषिट वैज्ञानिक है। हम नये-नये साहित्यकारों को खोज-खोज कर उनकी साहितियक योगदान पर चर्चा व संगोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं जिसमें यह प्रयास सफल हो रहा है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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