जलज मिश्रा
क्षेत्रीय मधनिषेध एवं समाजोत्थान अधिकारी
मादक पदार्थों का विभिन्न रूपों में सेवन प्राचीन काल से ही भारत एवं विश्व के अनेक देशों में होता रहा है। मनुस्मृति और वैदिक ग्रंथों में सामाजिक एवं धार्मिक अवसरों पर सुरा, धतूरा, भांग, गांजा आदि मादक पदार्थों के सेवन का उल्लेख मिलता है। मादक पदार्थों के अंतर्गत भांग, ंगांजा, हसीस, हेरोइन, चरस, स्मैक, अफीम, कोकीन आदि आते हैं। उक्त पदार्थों के सेवन अर्थात मादक द्रव्य व्यसन की समस्या आज पूरे समाज को खोखला कर राष्ट्र के नवनिर्माण में बाधक बन रही है।
मादक द्रव्य व्यसन का तात्पर्य है मादक पदार्थों पर शारीरिक निर्भरता अर्थात मादक पदार्थों के सेवन न करने की सिथति में शरीर में दर्द, बेचैनी, रूग्णता आदि महसूस होना। दूसरे शब्दों में मादक द्रव्य व्यसन वह दशा है जिसमें शरीर को कार्य करते रहने के लिए मादक पदार्थों के सेवन की निरन्तर आवश्यकता महसूस होती रहती है। फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक दुष्प्रभाव दृषिटगोचर होते रहे हैं।
आज मादक पदार्थों का सेवन उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की चकाचौंध में खोये परिवारों द्वारा विभिन्न अवसरों पर नशा करना शिष्टाचार और जीवन शैली का प्रतीक बन गया है। एक तरफ संसार से ऊबे हुए लोग चिन्तामुक्त एवं स्वच्छन्द जीवन जीने की लालसा में मानसिक शांति हेतु मादक पदार्थों का सेवन करते हैं तो दूसरी ओर युवा पीढ़ी प्रतियोगिता की कठिनता, सपनों का टकराव, पाठयक्रमों की नीरसता, अंदर ही अंदर कसकते-सिसकते तनाव से मुक्त एवं कल्पनाओं के स्वपिनल संसार में खोने की अदम्य लालसा के कारण नशीली दुनिया में प्रवेश करती है। साथ ही कुछ लोग प्रारम्भ में इनका सेवन औषधीय रूप में, निद्रा लाने व दर्द निवारक के रूप में, चिन्ता, तनाव, कुन्ठा, उदासी आदि दूर करने के लिए, जिज्ञासा शान्त करने के लिए, असफलता मिलने पर हीन भावना दूर करने के लिए, मित्रता के दबाव में, पारिवारिक सदस्यों के अनुकरण में, थकान मिटाने व मौज-मस्ती आदि के उददेश्य से भ्रमवश करते हैं। फलस्वरूप व्यकित मादक पदार्थों के शिकंजे में धीरे-धीरे फंसता चला जाता है।
मादक पदार्थों के सेवन के फलस्वरूप न केवल विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियां पैदा होती हैं अपितु व्यकित, परिवार व समाज के विघटन के साथ-साथ अपराधों की वृद्धि व पुलिस-प्रशासन और व्यवस्थाओं की समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं। लम्बे समय तक अधिक मात्रा में नशीले पदार्थों के सेवन से शरीर निषिक्रय व कमजोर हो जाता है, रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है एवं विभिन्न प्रकार के प्राणघातक रोग पैदा हो जाते हैं। शारीरिक दुष्प्रभावों के साथ-साथ मानसिक क्षमता का भी ह्रास होने लगता है व व्यसनी, क्रोधी, चिड़चिड़ा होने के साथ-साथ अपनी अपनी भावनात्मक बौद्धिक शकित के खो देता है। व्यसनी की कार्यक्षमता बुरी तरह से कम होने लगती है। आय का अधिकांश भाग नशे की भेंट चढ़ जाता है। फलत: अनेकों प्रकार की समस्याएं यथा अपराध, दुर्घटना, आत्महत्या आदि का ग्राफ बढ़ जाता है।
परिवार व्यकित की प्रथम पाठशाला है। अत: मादक पदार्थों के सेवन को रोकने हेतु व्यसनी के परिवार द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जा सकती है क्योंकि कर्इ बार व्यसनी की नशे की लत के लिए उसका परिवार उत्तरदायी होता है। अत: परिवार का दायित्व है कि वह अपने बच्चों की उपेक्षा न करें, उनकी उचित इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करें व उन्हें ऐसे संगी-साथियों से दूर रखें जो नशा करते हैं। पशिचमी सभ्यता से ओत-प्रोत परिवारों में नशा करना आधुनिकता का पहचान माना जाता है। अत: परिवार के सदस्यों को चाहिए कि वह ऐसे झूठे दम्भ से दूर रहें। परिवार का वातावरण शान्त, प्रेमपूर्ण, पारस्परिक स्नेह एवं आदर से परिपूर्ण होगा तो बच्चा परिवार के प्रति लगाव महसूस करेगा, आज्ञाकारी होगा व शांति की खोज में नशा की ओर उन्मुख नहीं होगा।
आइये, अब हम सबको नशामुक्त समाज की स्थापना हेतु अपनी-अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिशिचत करनी होगी। हम सबका दायित्व है कि सम्पूर्ण मानवता को मादक पदार्थ रूपी दानवों से बचाने हेतु अपनी-अपनी भूमिका को अंजाम दें। स्वयं नशीले पदार्थों का परित्याग कर जन-जन तक इसके दुष्परिणामों को पहुंचायें एवं पूर्ण नशामुक्त समाज की स्थापना हेतु जनजागृति विकसित करें तभी एक स्वस्थ एवं समृद्ध राष्ट्र का सपना साकार होगा।