भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) का एक प्रतिनिधि मण्डल जिसमें सीपीएम केन्द्रीय कमेटी सदस्य का0 सुभाषिनी अली का0 सैय्युल हक व उ0प्र0 राज्य सचिव मण्डल सदस्य का0 डी0पी0 सिंह तथा सीपीएम के स्थानीय नेता शामिल थे, ने मुजफ्फरनगर दंगा पीडि़त इलाकों व राहत शिविरों का दौरा किया। प्रतिनिधिमण्डल सचिव व गौरव के घर गया जिसकी 27 अगस्त को हत्या हो गयी थी तथा आर्इ.बी.एन.-7 के पत्रकार के घर भी गये जिनकी 7 सितम्बर को गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। प्रतिनिधि मण्डल ने राहत शिविरों में जाकर सैकड़ों दंगा पीडि़तों से मुलाकात की जिनका दंगों में घर का सामान, सब कुछ बर्बाद हो गया था।
तथ्यों की जानकारी -
1. दोनों ही समुदायों की स्कूल और कालेज जाने वाली लड़कियों को छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है और यह दोनों समुदायों के असामाजिक तत्वों द्वारा किया जाता है किन्तु इस प्रकार का दुष्प्रचार की बहुसंख्यक समुदाय की लड़कियां अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार होती है, जो पूरी तरह गलत है। दरअसल यह केवल छेड़छाड़ का मामला नहीं है बलिक इसका इस्तेमाल साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के लिए किया जाता है।
2. यह आरोप लगाया गया कि सचिन और गौरव की बहन को शाहनवाज द्वारा छेड़ा गया जिसके कारण यह तीन मौतें हुर्इ। इस तथ्य के साथ यह भी सच्चार्इ है कि छेड़छाड़ की यह घटनायें बहुत आम हैं। जो पहले से ही होती रही हैं। वास्तव में पूरे प्रदेश में इस प्रकार की घटनायें बहुत बढ़ गयी हैं।
3. एक तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है कि 9 अगस्त को इदरीश को र्इदगाह के दरवाजे पर प्रदीप, रामनिवास (वकील) और किशोर द्वारा गोली मारी गयी। प्रदीप इदरीश की बेटी को छेड़ता था जिसके विरोèा में उसने प्रदीप को चांटा भी मारा था और बदले में उसकी हत्या की गयी। प्रशासन ने तुरन्त तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया किन्तु उल्लेखनीय है कि मुसिलमों की ओर से कोर्इ बदले की कार्यवाही नहीं हुर्इ। राहत शिविरों में दंगा पीडि़तों ने बार बार कहा कि यदि प्रशासन 27 अगस्त की घटना के बाद तुरन्त सक्रिय होता तो इतना भयानक दंगा न होता।
4. हमारे दौरे के दौरान यह विश्वसनीय जानकारी मिली की दोनों ही समुदाय के लोग मौत का शिकार हुए किन्तु अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का अपेक्षाकृत बहुत अधिक जान माल का नुकसान हुआ है। जिला अस्पताल के दौरे ने यह दिखाया कि निर्ममता के साथ लोगों को मारा काटा गया था। छोटे बच्चों के शवों को देखकर उनके साथ की गयी निर्ममता का अंदाज लगया जा सकता है। एक औरत के शरीर के कटे हुए टुकड़े अस्पताल में लाये गये थे।
5. यह बिल्कुल साफ हो गया कि जन और धन की इस भयावह हानि के लिए सरकार और प्रशासन का निकम्मापन ही जिम्मेदार है। यह बिल्कुल न समझ में आने वाली बात है कि 27 अगस्त को एक दिन में तीन मौतें होने के बावजूद कोर्इ निर्णायक कदम नहीं उठाया गया। इसके बजाय डी0एम0 और एस0एस0पी0 (जो र्इद के मौके पर परिसिथति को बहुत ही जिम्मेदारी से संभालने में सफल रहे थे) को स्थानांतरित कर दो नये अधिकारी से बदल दिया गया। यह बिल्कुल ही स्पष्ट नहीं था कि धारा 144 को किस तरह अमल में लाया जाना था और खुलेआम उकसावेपूर्ण हरकतों से किस तरह निपटा जाना था। इस तथ्य के बावजूद कि 27 अगस्त से 7 सितम्बर के बीच रोजाना झड़पों, पथराव, उकसावे पूर्ण भाषणबाजी (दोनों समुदायों के नेताओं द्वारा) और साम्प्रदायिक लामबंदी के बावजूद न तो कड़ार्इ से हस्तक्षेप किया गया और न ही सख्ती से धारा 144 लागू की गयी। यहां तक कि जब यह खुलासा हो गया कि अल्पसंख्यक विरोधी उन्माद पैदा करने वाली एक फर्जी वीडियो किलप का प्रचार किया जा रहा था और इस काम में भाजपा के विधायक सोम के शामिल होने की खबर पुख्ता हो चुकी थी, कोर्इ कड़ा कदम नहीं उठाया गया। 7 सितम्बर की महापंचायत को प्रतिबंधित करने के बाद प्रतिबंध को अमली जामा पहनाने के लिए कोर्इ कदम नहीं उठाया गया।
6. इस तथ्य के बावजूद कि पिछले कुछ समय से क्षेत्र में आर0एस0एस0 और हिन्दुत्ववादी ताकतें सक्रिय रही हैं और योजनाबद्ध तरीके से विभाजनकारी मुíे उठाती रही हैं, उन्हें 27 अगस्त के बाद की सिथति का लाभ उठाने और उसे भयावह परिणति तक पहुंचाने का पूरा मौका दिया गया। जिस जमघट को खाप पंचायत के रूप में चित्रित किया गया था, वह वास्तव में बहुसंख्यक समुदाय का न केवल आसपास के जिलों से बलिक उत्तराखण्ड और हरियाणा तक से किया गया भारी जमावड़ा था। महापंचायत में यधपि खाप के नेता उपसिथत थे, उसका उपयोग सोम, साèवी प्राची जैसे भाजपा के नेताओं द्वारा बहुत ही गंदे और साम्प्रदायिक भाषणों के लिए किया गया। अगर किसी ने उदारवादी या तार्किक बात रखने की कोशिश की तो उसे चुप करा दिया गया। ”बेटी बचाओ-बहू बचाओ के नाम से की गयी महापंचायत के नारे को बदलकर ”बेटी बचाओ-बहू बनाओ कर दिया गया। प्रशासन और पुलिस इस सबका मूकदर्शक बना रहा। जबकि उसके सामने खुलेआम हथियार लहराये गये और थाने के ठीक सामने सरेआम इसरार की हत्या कर दी गयी।
7. महापंचायत से लौटती हुर्इ भीड़ के ऊपर जौली में हथियारबंद मुसिलमों की भीड़ ने हमला किया। इस हमले में लगभग दस लोग मारे गये। पंचायत में और उसके बाद जो भी हुआ, उसकी खबर ने मुजफ्फरनगर कस्बे में सिथति को नियंत्रण से बाहर कर दिया।
8. महापंचायत से लौटने के बाद गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर जो वहां पीढि़यों से शानितपूर्वक रह रहे थे, हमले शुरू हुए। इसके बाद राहत शिविरों की ओर पलायन शुरू हुआ।
मांगे -
1. साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोपियों को जो ऐसा करते हुए फिल्मांकित किये गये, तत्काल गिरफ्तार किया जाय।
2. सरकार राहत के समुचित उपाय करे।
3. सभी मृतकों और घायलों को बिना किसी भेदभाव के तत्काल मुआवजे का भुगतान किया जाये।
4. प्रशासन द्वारा शानित को स्थापित करने और बनाये रखने के सारे उपाय किये जायें तथा जहां संभव हो ऐसे लोगों को जो पलायन कर गये हैं, वापस लाकर उनके घरों मेें बसाया जाय तथा उनकी सुरक्षा सुनिशिचत की जाय।
5. लड़कियाेंं से छेड़छाड़ करने वालों से बेहद सख्ती से निपटा जाय।
प्रतिनिधिमण्डल के अनुभव -
प्रतिनिधि मण्डल श्री राजेन्द्र सिंह और श्री बिसेन सिंह जो मलिपुरा मौजा गांव के निवासी हैं, इन्हीं के पुत्र सचिव 25 वर्ष तथा गौरव 16 वर्ष की हत्या कवाल में हुर्इ थी। हम लोग उनके घर गये और परिवार वालों तथा घर की दुखी महिला से भी मिले और विस्तार पूर्वक सभी से बात की। उनके अनुसार स्कूल और कालेज जाते समय लड़कियाें के साथ छेड़छाड़ एक वास्तविक समस्या है। अंजाने में ही उन्होंने स्वीकार किया कि दोनों समुदाय के लड़के इस घटना में शामिल थे लेकिन उन्होंने साथ ही साथ इस बात पर जोर दिया कि शहनवाज जाना माना असामाजिक तत्व था और वह महीनों से उनके घरों की नवयुवतियों के साथ छेड़छाड़ करता रहा था। घर की लड़कियों को बाहर भेज दिया गया था जिससे कि प्रतिनिधि मण्डल उनसे बात न कर सके। अपने लड़कों की जघन्य हत्याओं से वे स्वाभाविक रूप से सहमें हुए थे लेकिन दोनों के पिताओं का कहना था कि वे यह कतर्इ नहीं चाहते कि हत्यायें उनके नाम पर की जांय। वास्तव में प्रतिनिधि मण्डल ने दोनों समुदाय के लोगों जिनमें महिलायें भी शामिल थीं, को सड़कों पर आते-जाते चारा वगैरह लाते देखा। हमें यह बताया गया कि 27 अगस्त के बाद कत्ल की कोर्इ वारदात उस गांव में नहीं हुर्इ। वहां और लोग भी एकत्र हो गये और उनकी आम धारणा यह थी कि अगर प्रशासन ने तत्परता से काम लिया होता तो दोनों लड़कोें की हत्या के आरोपी अभिरक्षा में रहे होते तथा दंगे न होते।
यहां से प्रतिनिधि मण्डल जौली होते हुए तावली कैम्प गया। तावली एक मुसिलम बाहुल्य कस्बा है जहां आसपास के गांवों खरद, किनौरी, हदौली, सिसौली (महेन्द्र सिंह टिकैत का गांव) आदि गांवों के लगभग 500 मुसिलम ग्रामीणों ने शरण ले रखी थी। प्रतिनिधि मण्डल शिविरों से औरतों से मिला और उनसे काफी लम्बी बातचीत की। यधपि शिविर के सारे लोगों की सम्पतित, मकानों और जानवरों का नुकसान हुआ था लेकिन उनके अनुभव एक जैसे नहीं थे। खरद में शकील का कत्ल कर दिया गया और पूरे परिवार के साथ घर में आग लगा दी गयी किन्तु सौभाग्य से उन्हें बचा लिया गया। किनौनी में 7 सितम्बर की रात ग्राम प्रधान देवेन्द्र के घर में औरतों और बच्चों ने शरण ले रखी थी और वे अगले दिन शिविर के लिए रवाना हुए। वे इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि उनके घरोें, सम्पतितयों और जानवरों का क्या हश्र हुआ। औरतों का कहना था कि पड़ोस के गांव हदौली में कम से कम 6 लोग मारे गये और कुछ अपने घरों में जला दिये गये। वे लोग खेतोें में भाग गये थे और अगले दिन कैम्प में पहुंचे।
राहत शिविरों के संचालकों ने बताया कि प्रशासन द्वारा वायदे किये जाने के बावजूद तब तक उन्हें कोर्इ राशन नहीं प्राप्त हुआ था। वे समुदाय की मदद से ही राहत शिविर संचालित कर रहे थे।
इसके बाद प्रतिनिधि मण्डल ने जिला अस्पताल का भ्रमण किया लेकिन वहां तब तक दंगे में घायल कोर्इ व्यकित नहीं रह गया था। चिकित्सा अधीक्षक ने हमें बताया कि गंभीर मामलों को मेरठ रेफर कर दिया गया जबकि बाकी लोग ठीक हो जाने पर डिस्चार्ज कर दिये गये। प्रतिनिधि मण्डल को बताया गया कि 27 अगस्त से वहां 53 पोस्टमार्टम किये गये थे (जिनमें सभी दंगे के शिकार हो भी सकते थे और नहीं भी)। इनमें एक औरत और दस साल के दो बच्चे थे, मृतकों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे। एक अखबार की रिपोर्ट में उस सुबह एक सरकारी डाक्टर को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि कुछ शवों को इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया था कि उन्हें देखकर मैं 24 घंटे तक कुछ खा नहीं सका।
एक औरत के शरीर को टुकड़ों में काटा गाय था और बच्चों को इतनी बुरी तरह कुचला और जलाया गया था कि उनके लिंग की पहचान करना मुशिकल था। आर्इ0बी0एन0-7 के राजेश वर्मा, जो मजबूत सामाजिक सरोकारों वाले अत्यंत लोेकप्रिय पत्रकार थे। राजेश ने ही महापंचायत का कवरेज किया था और फरीद व उसकी बीबी की मदद की थी। प्रतिनिधि मण्डल उनकी पत्नी व बच्चों से भी मिला। उन्होंने बताया कि फरीद की हत्या से वह हिल गया था। वह बमुशिकल घर पहुंचा ही था जब उसे मुजफ्फरनगर के केन्द्र में दंगो की खबर मिली, वह बाहर भागा और उसने झड़पों का फिल्मांकन करते हुए लोगों को शान्त करने की कोशिश की। उस वक्त दोनों ओर से गोली चल रही थी। उसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी और बच्चे अनाथ हो गये।
प्रतिनिधि मण्डल शाहपुर राहत शिविर भी गया। यह मुख्य मार्ग से हटकर एक बड़े मदरसे में स्थापित है और इसके बगल में एक खुला मैदान है। इस शिविर में लगभग 4000 लोग न केवल मदरसे में ठहरे हुए हैं बलिक उन सबने आसपास के घरोें, परिवारों में भी शरण ले रखी है। इस शिविर में ग्यारह विधवायें इíत कर रही हैं।
पिछले तीन दिनों से प्रशासन इस शिविर को दूध और राशन की आपूर्ति कर रहा है हालांकि यह पूरी तरह पर्याप्त नहीं है। सम्भवत: अगले दिन के मुख्यमंत्री के दौरे को दृषिटगत रखते हुए जिलाधिकारी द्वारा यहां स्वयं पण्डाल इत्यादि लगाये जा रहे थे।
उनका कहना था कि प्रशासन सारे शिविरों में राशन भिजवाने की कोशिश कर रहा है लेकिन अभी तक सब जगह सुनिशिचत नहीं किया जा सका है। जिलाधिकारी का यह भी कहना था कि लोग अभी भी गांव छोड़कर भाग रहे हैं और शिविरों में लोगों की संख्या में रोजाना इजाफा हो रहा है।
आसपास के गांवों से, जिनमें काकड़ा, कुटबा, कुटबी, निर्मण आदि कुछ गांव सड़क पार ही सिथत हैं, से भी लोग निकल कर यहां आ रहे हैं। उनका कहना था कि काकड़ा में 7 सितम्बर की रात उन पर हथियार बंद भीड़ ने हमला किया। किसी तरह वे केन्द्रीय सुरक्षा बल से संपर्क कर सके और राहत शिविर तक पहुंच पाये। इस गांव से 2000 से ज्यादा लोग जान बचाकर भागे हैं और उन्हाेंने अलग-अलग कैम्पों में शरण ले रखी है। कुटबा गांव के इरशाद, कय्यूम, शमशाद, बहीदी, फैयाज, तराबू आदि आठ लोगों के मारे जाने की खबर है।
गुलिस्ता नाम की औरत अस्पताल में भर्ती है, शिविर तक पहुंचने में पुलिस ने उनकी मदद की थी। कुटबी में एक आदमी के मारे जाने की खबर है। शिविर में प्रतिनिधि मण्डल ने मृतक कय्यूम की पत्नी मेहर और उसकी मां तथा उसके छोटे छोटे बच्चों से भी मिला। प्रतिनिधि मण्डल जब शिविर छोड़ कर वापस आ रहा था तो और लोगों को शिविर में आते प्रतिनिधि मण्डल ने देखा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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