सिविल सोसायटी और कर्इ अल्पसंख्यक समुदाय के संगठनों के सदस्यों ने ”सांप्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीडि़तों का पुनर्वास) विधेयक, 2005 को शीघ्र पारित करने की मांग को सुदृढ़ करने हेतु सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली के प्रतिषिठत इंडिया इंटरनेश्नल सैन्टर में एक मीटिंग करके विचारों का आदान प्रदान किया। कमाल फारूकी (पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग) और मौलाना महमूद मदनी (महासचिव, जमियत उलेमा-ए-हिन्द) द्वारा बुलार्इ गर्इ इस बैठक में सिविल सोसायटी और दिल्ली की विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने महसूस किया कि दंगे की हालत में लागू किए जाने लाएक 15 से अधिक कानूनों की उपसिथति के बावजूद शासनगुजरात दंगे 2002 और हाल के मुजफफरनगर दंगों की रोकथाम करने में नाकाम रहा क्योंकि संबंधित राज्य पदाधिकारियों में उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आवश्यक इच्छाशकित का अभाव था। इस बैठक का उददेश्य पशिचमी उत्तर प्रदेश में दंगे के शिकार लोगों के साथ सहानुभूति दिखाना और यह सुनिशिचत करने के लिए ठोस कदम उठाना भी था कि भविष्य में किसी राजनीतिज्ञ के निजी स्वार्थ या इच्छापूर्ती हेतु दंगे न हो सकें। बैठक में जान दयाल, फरहा नकवी, वृंदा ग्रोवर, मौलाना नियाज फारूकी, डाक्टर फखरूददीन मौहम्मद, मार्इकेल, डाक्टर तसलीम रहमानी, मौलाना अब्दुल वहाब खिलजी, एस अजीज हैदर, शकील सैयद के अतिरिक्त कमाल फारूकी और मौलाना महमूद मदनी व अन्य लोगों ने भाग लिया।
भारत ने ब्वदअमदजपवद वद जीम च्तमअमदजपवद ंदक च्नदपेीउमदज व जिीम ब्तपउम व ळिमदवबपकमए 1948 की न केवल पुषिट की है बलिक उसपर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए हमारी सरकार का दायित्व बनता है कि इस कंवेनशन के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक कानून बनाए। केंद्र की यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में भी ”सांप्रदायिक हिंसा पर व्यापक कानून बनाने का आश्वासन दिया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के तहत अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरा करना सरकार का दायित्व है। इस प्रतिबद्धता के तहत उसका नैतिक और सामाजिक कर्तव्य बनता है कि जिस प्रकार प्रधान मंत्री ने हाल में सम्पन्न हुए संसदीय सत्र में कर्इ बिल पारित कराने हेतु विपक्ष से खास बातचीत की और उन्हें मनाया उसी प्रकार इस बिल को भी शीघ्रता से पास कराने के लिए कार्यवार्इ करें।
मीटिंग में उपसिथत लोगों ने इस बात पर खेद जताया कि सरकार उनकी मांगों को सुनने के लिए तैयार नहीं हालांकि सिविल सोसायटी उन एक दो प्वाइंट को छोड़ देने को तैयार है जो सरकार को मंजूर नहीं। उल्लेखनीय है कि यू पी ए (एक) के गठन के समय दिए गए आश्वासनों के अनुसार ठपसस दवण् ब्ग्ट व 2ि005 श्ज्ीम ब्वउउनदंस टपवसमदबम ;च्तमअमदजपवदए ब्वदजतवस ंदक त्मींइपसपजंजपवद व टिपबजपउेद्ध ठपससए 2005.12.07श् को संसद में प्रस्तुत किया गया था और बाद में गह मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 2006 में पेश की थी जिसके कर्इ प्रावधानों पर सिविल सोसायटी ने कड़ा विरोध किया था। 2005 से अब तक विभिन्न सिविल सोसायटी ग्रुप सरकार से निरंतर बात करने की कोशिश करते रहे हैं और इस बिल की बाबत अपने विचार उस तक पहुंचाते रहे हैं।
सिविल सोसायटी से जुड़े लोग गत 7 वर्षों में यू पी ए अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, न्याय एवं विधि मंत्री, गृह मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों और संसद सदस्यों से मुलाकात करके उन्हें इस बिल के महत्व से अवगत कराते रहे परन्तु कोर्इ लाभ नहीं हुआ। यदि इन्होंने समय रहते कदम उठाया होता और यह बिल पारित कर दिया होता तो मुजफफरनगर और मेरठ में कर्इ बहुमूल्य जानें शायद बच सकती थीं। न केवल सिविल सोसायटी बलिक अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं ने भी सरकार से साफ शब्दों में बता दिया था कि इस बिल का पास होना कितना आवश्यक है।
इस संबंध में जमात-ए-इस्लामी हिंद, आल इंडिया मजलिस-ए-मुशावेरत, मिल्ली पालिटीकल पार्टी आफ इंडिया, मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद और इसी मांग को आगे बढ़ने हेतु गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्यों ने आज प्रधानमंत्री से मुलाकात की और इस विधेयक के पारित होने को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय की मांगों को अवगत कराया। आर एन आर्इ से खास बातचीत करते हुए आल इंडिया मजलिस-ए-मुशावेरत के अध्यक्ष डाक्टर जफरूल इस्लाम खां ने बताया कि प्रधानमंत्री से मुलाकात करके उन्होंने न केवल पशिचमी उत्तर प्रदेश के दौरे की अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंपी बलिक 21 प्वार्इंट का एजेंडा भी उन्हें दिया जिसमें पशिचमी उत्तर प्रदेश में दंगे के शिकार लोगों को तुरन्त मुआवजा, उनके मकानों की मरम्मत और तुरन्त सांप्रदायिक हिंसा पर व्यापक कानून पारित करने की आवश्यकता की बात भी कही गर्इ है।
आर एन आर्इ से बात करते हुए सोशल वर्कर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डाक्टर अमानत हुसैन ने प्रश्न किया कि आखिर क्यों पिछले संसद अधिवेशन में इस बिल को पास करने हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया जबिक सरकार ने हर वह बिल पास करा लिया जो वह कराना चाहती थी। उन्होंने क्हा कि पशिचमी उत्तर प्रदेश में हुर्इ हिंसा के बाद भी यदि सरकार सचेत नहीं हुर्इ और इस बिल को पारित करने हेतु आवश्यक कार्यवार्इ नहीं की तो उसकी नीयत शक के घेरे में आ जाएगी।