हिमाचल प्रदेश विश्वविधालय के कुलपति और अर्थशास्त्री प्रो. ए. डी. एन बाजपेयी ने कहा है कि देश में संस्कृत के खिलाफ बहुत बड़े षडयन्त्र किये गये हैं जिसके कारण यह स्कूलों और इन्टर कालेजों से दूर हो गर्इ। आज उन षडयन्त्रों को जानने और उन्हें नाकाम करने की जरूरत है ताकि समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार और पापाचार पर अंकुश लगाया जा सके। वे राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा आयोजित तथा नगर के इनिदरा गांधी प्रतिष्ठान में चल रहे संस्कृत सम्मेलन में बोल रहे थे।
प्रो. वाजपेयी ने कहा- संस्कृत किसी वर्ग या वर्ण की भाषा नहीं है। पर्यावरण, गणित, रसायन, चित्रकला, समाज विज्ञान के विधायी सूत्र जिस भाषा में हों उसे प्रगतिशील और विकासोन्मुखी कहा जाना चाहिए, संस्कृत वेदवाणी है।
राष्ट्रीय संस्कृत विधापीठ के कुलपति प्रो. हरे कृष्ण सत्पथी ने पुराणों में पर्यावरण विज्ञान पर विस्तार से चर्चा करते हुए मानसिक या वैचारिक प्रदूषण को पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया जिसके कारण व्यकितगत स्तर पर राग-द्वेष और राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिका झेलनी पड़ती है। प्रो. पी. रामानुजम ने संस्कृत और कम्प्यूटर के सम्बन्èा को व्याख्यापित करते हुए बताया कि किस प्रकार व्याकरण की तार्किकता के कारण मानवीय भाषाओं में संस्कृत के ही कम्प्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविधालय के पूर्व कुलपति और प्रख्यात कवि अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कौटिलीय अर्थ शास्त्र की प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए कहा आचार्य चणक का पुत्र शिष्य होने के कारण विष्णुगुप्त को चाणक्य कहा गया जबकि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत धर्मशास्त्र और अनेक विधायें
भी हैं। शत्रुओं को उखाड़ फेंकने के लिए गुप्तचर व्यवस्था व कर-प्रबन्धन के जो नियम चाणक्य ने वर्णित किये हैं उनको आज के परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।
प्रो. मिश्र ने साफ किया कि चाणक्य ने ‘दण्ड उसे माना है जिसके नाम से अपराधियों में खौफ हो। आज उसकी कितनी जरूरत है, सभी जानते हैं।
संस्थान के प्राचार्य प्रो. अर्कनाथ चौधरी ने वेदों में प्रबन्ध विज्ञान के सूत्रों का परिशीलन करते हुए पशुप्रबन्ध, जल प्रबन्èा पर चर्चा की वहीं प्रो. नीरज शर्मा ने संस्कृत में वर्णित कृषि विज्ञान पर विस्तार से चर्चा की। सुप्रसिद्ध कवि प्रो. रमाकान्त शुक्ल ने दूरदर्शन पर दिखाये जानी वाली ‘संस्कृत-वार्ता की आलोचना करते हुए बताया कि वहाँ लोग केवल हिन्दीअंग्रेजी के कार्यक्रमों के अनुवाद को ही ‘वार्ता समझते हैं। उन्हें संस्कृत के नाम पर होने वाले आयोजनों की न तो सूचना होती है न कोर्इ दिलचस्पी। यह ठीक नहीं है।
सम्मेलन मं प्रो. गौरी माहुलकर, प्रो. सुषमा सिंघवी, प्रो. नाहिद आबदी, प्रो. नीरज शर्मा और ब्रह्रादेव राम तिवारी आर्इ.ए.एस. ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
सम्मेलन में देश के विभिन्न भागों से वैदिक छात्र, छात्राओं सहित डेढ़ हजार लोग भाग ले रहे हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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