- केंद्रीय हिंदी संस्थान में शिक्षक दिवस
ष्ष्सच्चा गुरु कभी शिष्य से छल नहीं करता और न उसे कभी कोई क्षति पहुंचाता है। वह एक कुंभकार की भांति हैए जो छात्र रूपी घड़े को ठोंक.पीटकर उसका निर्माण और परिष्कार करता है। लेकिन ऐसा गुरु एक ही होता है इसलिए हमें अपनी आस्था का कोई एक केंद्र बनाना चाहिए और सदैव उसी पर अडिग रहना चाहिए।ष्ष् यह बात आज केंद्रीय हिंदी संस्थानए आगरा के नज़ीर सभागार में शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम
को संबोधित करते हुए संस्थान के कुलसचिव डॉण् चंद्रकांत त्रिपाठी ने कही। उन्होंने सभागार में उपस्थित छात्र.छात्राओं को सुझाव दिया कि गुरु उसे ही बनाएं जिससे आपका मन मिलता हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता
संस्थान के वरिष्ठ प्रोफेसर रामवीर सिंह ने की। मुख्य अतिथि के रूप में मिजोरम हिंदी ट्रेनिंग कॉलेज के एसोशिएट प्रोफेसर डॉण् फेला मंच पर मौजूद थे। मंच पर उनके साथ अध्यापक शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रोण् विद्याशंकर शुक्लए नवीरकण एवं भाषा प्रसार विभाग की अध्यक्ष प्रोण् सुशीला थॉमस और सूचना एवं भाषा प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष प्रोण् देवेंद्र शुक्ल विराजमान थे। दीप प्रज्वलन और वाग्देवी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस अवसर पर संस्थान के विद्यार्थियों ने पुष्प गुच्छ और उपहार देकर अध्यापकों का अभिनंदन किया। कुलसचिव के संबोधन के उपरांत प्रोण् सुशीला थॉमस ने विद्यार्थियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु को देवता का दर्जा दिया गया है। उन्होंने गुरु को इस कारण श्रेष्ठ बताया क्योंकि गुरु हृदय में ज्ञान का दीप प्रज्वलित करता है। प्रोण् थॉमस ने कहा कि शिक्षकों को अपने बताए गए आदर्शों का स्वयं भी अनुसरण करना चाहिए। उन्हें अपने शब्दों को आचरण में उतारना चाहिए। केवल शब्दों की कोरी लफ्फाजी से काम नहीं चलेगा। प्रोण् थॉमस ने छात्रों को याद दिलाया कि भावी शिक्षक के रूप में उनके कंधों पर देश और समाज की बेहतरी का भारी बोझ आने वाला है।
इस अवसर पर प्रोण् देवेन्द्र शुक्ल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज अध्यापक अधिकांश शब्दों को अपने आचरण में भूल चुके हैं। उन्होंने संस्थान की शिक्षा पद्धति को प्राचीन गुरुकुल परंपरा से जोड़े जाने की पुरजोर हिमायत की। प्रोण् शुक्ल ने गुरु की परिभाषा देते हुए कहा कि जो अहंकार नामक अंधकार को दूर कर देए वही गुरु है। इसी वजह से भारतीय परंपरा में गुरु ने कभी शिष्य नहीं बनायाए उसने अपने समान गुरु का ही निर्माण किया। प्रोण् विद्याशंकर शुक्ल ने प्रोण् देवेन्द्र की राय से इत्तफाक रखते हुए कहा कि शिक्षक की गरिमा अब पहले जैसी नहीं रही। शिक्षक आज परंपरागत अर्थ में गुरु नहीं रहा। प्रोण् शुक्ल ने सभी छात्रों के साथ शिक्षकों से भी यह आग्रह किया कि आज के दिन हम सबको अपने भीतर सोये ष्गुरु.तत्वष् को जागृत करने का संकल्प लेना चाहिए जिससे कि समाजोपयोगी कार्यों में उसका उपयोग हो सके। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉण् फेला ने सभी छात्रों और शिक्षकों को शुभकामनाएँ दी और एक अच्छे शिक्षक के रूप में स्वभाव की
सात्विकता पर जोर दिया। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षीय भाषण देते हुए प्रोण् रामवीर सिंह ने कहा कि अध्यापक समाज का सबसे संपन्न व्यक्ति होता हैए लेकिन उसकी संपदा भौतिक नहीं होती। उन्होंने कहा कि अध्यापक के लिए उसके छात्र ही उसकी सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं। प्रोण् सिंह ने इस दिन को शिक्षकों के लिए आत्मावलोकन का दिन बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रत्येक अध्यापक के स्वमूल्यांकन का भी दिन है। यह दिन उपदेश देने का नहींए बल्कि अपनी कमियों को पहचानने और उसे आगे न दुहराने का संकल्प लेने का दिन है। इस कार्य से विरत होकर अध्यापक भ्रष्ट और आदर्शविहीन समाज का ही निर्माण कर पाएगाए जो कि वांछनीय नहीं है।
डॉण् भरत सिंह पमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इस अवसर पर सभागार में भारी संख्या में छात्र.छात्राओं के अलावा संस्थान के अध्यापक और अन्य सदस्य उपस्थित थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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