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माध्यमिक विद्यालयों में अद्यतन नियुक्त तदर्थ शिक्षकों के लिये करो या मरो की स्थिति उत्पन्न

Posted on 28 August 2013 by admin

प्रदेश भर के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में आज लगभग पन्द्रह हजार से अधिक की संख्या में विगत 20 वर्षों से तदर्थ शिक्षक अद्यतन नियुक्त होकर कार्यरत हैं। सभी शिक्षक मौलिक रिक्तियों के सापेक्ष ,अर्हताधारी एवं राजकोश से वेतन आहरित कर रहें हैं। इन तदर्थ शिक्षकों के विनियमितिकरण की मांग को लेकर आज सैकडों की संख्या में तदर्थ शिक्षकों ने उ0प्र0मा0 तदर्थ शिक्षक एसोसिएशन के नेतृत्व में धरना दिया।
एसोसिएशनके प्रदेश संयोजक डा0 श्याम शंकर उपाध्याय ने बताया कि ये नियुक्तियां प्रबन्धकीय चयन समिति द्वारा, मण्डलीय चयन समितियों द्वारा नियत समय पर शिक्षकों की व्यवस्था न कर पाने के फलस्वरूप प्रबन्ध तन्त्रों द्वारा की गयी हैं।
प्रबन्धकीय नियुक्तियों के विरूद्ध माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की नियमावली की धारा -18(विभिन्न कठिनाई निवारण अध्यादेश )के वयपगत होने विषयक परिथितियों में प्रश्नगत नियुक्तियों के प्रति धारा -18 अपने प्रवर्तन काल में जिन वैकल्पिक प्रबन्धों की व्यवस्था कर दी थी , उसे समाप्त किये जाने से शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो गयी। शैक्षिक हितों में विद्यालयीय प्रबन्धन के सामने बहुत बडी समस्या उत्पन्न होने की स्थितियां आ जाती हैंैंै। ऐसे में जाहिर सी बात है कि कोई भी विद्यालय प्रशासन / प्रबन्धन “शिक्षक उपलब्धता नहीं” की तख्ती नहीं टांग सकता।
ऐसी नियुक्तियों के प्रति यह भी दृष्टव्य होगा कि न्यायमूर्ति प्रदीपकान्त ने राकेशचन्द्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के वाद में 16 सितम्बर 2004 के अपने निर्णय में राज्य सरकार को सलाह दी थी कि या तो माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड नियमावली में संशोधन कर या कठिनाई निवारण अध्यादेश लाकर यर चयनित अभ्यर्थी उपलब्ध होने तक तदर्थ नियुक्तियों से सम्बन्धित कोई व्यवस्था की जाये ।   न्यायालय ने आशाइ और विश्वाश व्यक्त किया था कि बिना किसी विलम्ब के अति शीघ्र कोई व्यवस्था कर ली जायेगी । (संदर्भ राकेशचन्द्रमिश्र बनाम उ0प्र0 राज्य एवं अन्य 2004 3यू0पी0एल0 बी0इ0सी02671)।
राज्य सरकार ने न्यायालय की सलाह पर गौर नहीं किया और सेवा निवृत्ति ,मृत्यु, पदत्याग ,पदोन्नति आदि से बडी मात्रा में रिक्त पदों के सापेक्ष स्थाई शिक्षक भी उपलब्ध नहीं हो सके। यहां यह भी स्मरण कराना उचित होेेगा कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अपनी स्थापना काल से ही राजनीतिक उठा पटक , अराजकता  लेट लतीफी आदि के कारण उन उद्देश्यों पर खरा नहीं उतर सका जो बडी मात्रा में खाली पदों के साथशिक्षा व्यवस्था को पटरी पर ला सके। इसका ताजा उदाहरण भी सामने है कि वर्तमान सरकार बनते ही दिनांक 16 मार्च 2012 को चयन बोर्ड की समस्त कार्यवाहियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी एवं चयन बोर्ड भी जांच के दायरे में है। ऐसे में 20 वर्षों  से आज तक नियुक्ति पाकर सेवा प्रदान कर तदर्थ शिक्षक ही माध्यमिक ंिशक्षा में अशासकीय विद्यालयों में शिक्षा की नैया पार लगा रहें हैं।
डा0 उपाध्याय ने सम्बोधित करते हुए कहा किः-
1-चूंकि माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921 के अध्याय -2, विनियमय-9 धारा 16 ई (11) के तहत एवं पूर्ण न्यायिक समीक्षोपरान्त वेतन प्राप्त कर रहे अद्यतन नियुक्त तदर्थ शिक्षक योग्य , अर्हताधारी , एवं मौलिक रिक्तियों के सापेक्ष कार्य सम्पादित कर रहें हैं।
2-विनियमितिकरण पहली बार नहीं होगा अपितु इससे पहले भी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम में धारा 33क,33ख, 33ग, 33घ तथा 33च के द्वारा अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ नियुक्तियों को विनियमित किया जा चुका है।
3-माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम की धारा 35 के अनुसार “राज्य सरकार अधिृसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रायोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम बना सकती हैैै।”ऐसा अधिकार है।
4-विनियमित करने से सरकार के राजकोष पर अतिरिक्त वित्तीय व्ययभार नहीं पडेगा ।
5-माध्यमिक शिक्षा के हजारों मुकदमें स्वतः समाप्त हो जायेंगे ।
6-सरकार के न्यायालयी खर्चे में कमी आयेगी    ।
7-राज्य सरकार के वरिष्ठ शिक्षाधिकारियों को न्यायालय की व्यस्तता से निजात मिलेगी ।
8-अन्य सेवायोजन की उम्र सीमा पार कर चुके तदर्थ शिक्षकों को समाज की मुख्य धारा से जोडा जा सकेगा।
9-शिक्षक मनोयोग एवं बिना किसी दुश्चिन्ता के अपनें शिक्षण कार्य का निर्वाहन कर सकेगें।
तदर्थ शिक्षक संघर्ष की राह पर डा0 श्याम शंकर उपाध्यायतदर्थ शिक्षक एसोसिएशन के प्रदेश संयोजक डा0 श्याम शंकर उपाध्याय का मानना है कि माननीय न्यायालय द्वारा वैधनिकता की जांच करने के उपरान्त वेतन प्राप्त कर रहे ये तदर्थ शिक्षक , शिक्षक विहीनता की उत्पन्न स्थितियों में अपने शिक्षण दायित्व का निर्वहन करते हुये आज माध्यमिक शिक्षा की रीढ साबित हो रहें है। ऐसी परिस्थिति में इन तदर्थ शिक्षकों को विनियमित न करना अन्याय है।
डा0 उपाध्याय का मानना है कि शिक्षक संघ के विभिन्न गुटों ने तदर्थ शिक्षकों के लिये कभी गम्भीर संघर्ष नहीे किया। यदि संगठनों ने केवल एक तिथि , एक संघर्ष का एक तरीका ही अपना लिया होता तो अधिकांश शिक्षक समस्याओं का समाधान हो गया होता। अफसोस जाहिर करते हुये कहते हैं कि शिक्षक संघ के विभिन्न गुट अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग ही अलापते रहें हैं।
ऐसी विकट एवं विषम परिस्थितियाॅं भी उत्पन्न हुयी कि विगत तीन वर्षोें में वेतन प्राप्त कर रहे सैकडों तदर्थ शिक्षक बाहर का रास्ता देख चुके हैं। जिन शिक्षकों के बच्चे अच्छी पढाई कर रहे थे , वे बच्चों की पढाई तक छुडवा चुके हैं। अपने नाती-पोतों के लिये टाफी चॅाकलेट का भी प्रबन्ध करने में अपने को असहज पाते हैं। इसी प्रकार आज भी हजारों शिक्षक नित्य प्रति न्यायलय का चक्कर लगाते रहतेहैं। जहां पर शिक्षा एवं शिक्षक के प्रति सरकार संवेदनशून्य है। वहीं गुटबाजी की राजनीति में ंिशक्षक संघ में तदर्थ शिक्षको के साथ हो रहे तमाशों को देख रहा है। इस विपरीत परिस्थियों में अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु प्रदेश भर के संवेदनशील तदर्थ शिक्षको ने उ0प्र0मा0 तदर्थ शिक्षक एसोसिएशन का गठन कर अपने विनियमितिकरण के लिये बिगुल फूॅक दिया।संघर्षोें व प्रयासों को याद करते हुये एसोसिएशन के प्रदेश संयोजक डाॅ0 श्याम शंकर उपाध्याय बताते हैं कि फरवरी 2007 से एसोसिएशन ने अपनी शैशवावस्था में होते हुये तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा मंत्री/मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से अपने विनियमितिकरण की मांग पर सार्थक प्रयास किया था, लेकिन कतिपय शिक्षक संघों की गलत मंशा के अवरोध के चलते मामला टल गया एवं प्रदेश में नया चुनाव आ गया। उसके पश्चात अपने आन्दोलनो के प्रभाव से बसपा शासन काल में भी तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा मंत्री से वर्ष 2011 में यह कहलाने में सफल रहा कि तदर्थ शिक्षक नहींे हटेंगे। किन्तु उच्चाधिकारियों के गलत प्रस्तुतीकरण से मामला फिर अटक गया। पुनः चुनाव की स्थितियां उत्पन्न हुयीं तो समाजवादी पार्टी के मुखिया से मुलाकात कर आश्वासन पाया कि आप लोग चुनाव में सपा की मदद कीजिए, सरकार बनते ही विनियमित कर दिया जायेगा। यह संदेश पूरे प्रदेश में जंगल की आग की तरह फैला चुनाव प्रचार के समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कहा था कि सरकार बनते ही प्राथमिकता पर विनियमितिकरण की कार्यवाही कर दी जायेगी।
चुनाव के पश्चात 9 अप्रैल 2012 को समाजवादी पार्टी कार्यालय माननीय शिवपाल यादव, जनता दर्शन कार्यक्रम 18 अप्रैल 2012 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, 04 मई 2012 को एक निजी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सहित लगभग दर्जन भर मंत्रियों अहमद हसन, दुर्गा प्रसाद यादव , शंखलाल मांझी, पारस नाथ यादव , रघुराज प्रताप सिंह , कुवॅर आनन्द सिंह सहित कई विधायकों से भी मुलाकात की गयी। लेकिन नतीजा शून्य रहा।
एसोसिएशन फरवरी 2011 से आज तक आन्दोलन की राह पर कई धरने-प्रर्दशन, घेरा डालो डेरा डालो कार्यक्रम करते हुये 29 अगस्त 2012 को विधान सभा गेट नं0 9 व 3 के मध्य हजारों की संख्या तदर्थ शिक्षकों ने रोड जाम कर दिया। जिसमें तदर्थ शिक्षकों को लाठियां भी खानी पडी हैं।
डाॅ0 उपाध्याय ने बताया कि अगर विनियमितिकरण न हुआ तो 21 अक्टूबर 2013 से अनिश्चितकालीन अनशन प्रारम्भ कर दी जायेगी। चाहे जितने कष्ट उठाने पडे विनियमितिकरण तो लेकर रहेंगे। तदर्थ शिक्षकों को एक जुट करने का एसोसिएशन ने नारा दिया है।
यत्र तत्र सर्वत्र हो ।
आओ हम एकत्र हों ।।
धरने को सम्बोधित करते हुए पंचानन राय फैंस एसोसिएशन के संयोजक डाॅ0 महेन्द्र नाथ राय ने कहा कितदर्थ शिक्षकों के खून का हर कतरा समर्पित विनियमितिकरण तक रहेगा संघर्ष जारी - पंचानन राय फैन्स एसोसिएशन के प्रदेश संयोजक डाॅ महेन्द्र नाथ राय ने तदर्थ शिक्षकों के स्थायीकरण के लिये चयन बोर्ड नियमावली में संशोधन की आवश्यकता महसूस करते हुये कैबिनेट की मंजूरी या विधेयक लाकर तदर्थ शिक्षकों को नियमित करने के लिये संघर्ष का मोर्चा खोल दिया है।
डाॅ राय कहते हैं कि 6 अगस्त 1993 से आज तक नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को सरकार ने विनियमित नहीं किया है। यदि सरकार का यही रवैया रहा तो शिक्षकों के हितों के लिये भारी संधर्ष करने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होने कहा कि इतिहास गवाह है कि शिक्षकों ने उपलब्धियां संघर्ष के बल पर ही अर्जित की है। शिक्षक नेता मान्धाता सिंह , महेश्वर पाण्डेय , आर0 एन0 ठकुराई, पंचानन राय के द्वारा किये गये संघर्षों को याद करते हुये कहा कि आज के शिक्षकों में पुनः संघर्ष का जज्बा पैदा करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि कुछ दरबारी शिक्षक नेता यह भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहें है कि सरकार की खुशामद करके ही उपलब्धियां प्राप्त कर ली जायेंगी। सभी शिक्षको को आगाह करते हुये कहा कि ”बिन हवा न पत्ता हिलता है, बिन लडे न हिस्सा मिलता है“ को आज दोहराने का वक्त है।
डाॅ राय का मानना है कि शिक्षक संघर्ष के रास्ते से न विचलित हो , क्योंकि संघर्ष के रास्ते पर चलकर ही उपलब्धियां ली जायेंगी । उन्होने कहा कि स्व0 पंचानन राय ने संघर्ष के रास्ते पर चलते हुये शिक्षक हितों के लिये ही अपने प्राण की आहुती दे दी , शेष शिक्षक नेता सदन की शोभा बढा रहे हैं। स्व0 पंचानन राय को शिक्षक हितों के संघर्ष का इतिहास भुलाया नहीें जा सकता। उनका अनुयायी होने के कारण संघर्ष की बात करते हुये कहा कि यदि शिक्षक हितों के लिये हमें अपनी जान भी देनी पडे तो कम है। क्योंकि पंचानन राय के रास्ते पर चलने का समय आ गया है। तदर्थ शिक्षकों के लिये अब विश्राम का समय नहीे , अपितु संग्राम का समयहै।इनके लिये वे अपने खून का हर कतरा समर्पित करते हुये संग्राम का बिगुल ंफूॅक दिया है।
डाॅ0 राय ने कहा कि जब शिक्षामित्रों को पूर्ण शिक्षक बनाया जा रहा है,विषय विशेषज्ञों को आमेलित कर लिया है तो तदर्थ शिक्षकों को विनियमित क्यों नहीं किया जा रहा है। इसके लिये सरकार शिक्षकोे को संघर्ष के लिये बाध्य कर रही है। और ताबूत में आखिरी कील स्थापित कराने हेतु बाध्य कर रही

एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष देवेन्द्र प्रताप सिंह गौतम ने कहा कि वर्तमान में सरकार द्वारा तदर्थ  शिक्षको के समक्ष विनियमितिकरण का संकट खडा है। शासन ने केवल धारा 18 के तहत नियुक्त शिक्षकों की सूचना ही संग्रहित कर रहा है , जबकि कठिनाई निवारण अध्यादेश 1981 एवं इण्टरमीडिएट अधिनियम के अध्याय-2विनियम-9 (क) के अन्र्तगत नियुक्त तदर्थ शिक्षकों के बारे में सरकार विचार न करके समाजवादी सोंच के विपरीत कार्य कर रही है। 30 दिसम्बर 2000 के पश्चात इण्टरमीडिएट अधिनियम के तहत कार्यरत तदर्थ शिक्षकों को उतना ही विधिसम्मत करार देते है, जितना कि धारा-18 के अधीन तदर्थ शिक्षकों को।                                                       उन्होने बताया कि जिस समय शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों की भर्ती के लिये माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग का गठन किया गया ,उस समय वेतन पाने वाले सृजित पदों की संख्या लगभग एक लाख पैतीस हजार थी। सन 1986 मे कुल शिक्षकों की संख्या 96789 थी।वर्तमान में कार्यरत शिक्षकों की संख्या लगभग 50-60 हजार ही रह गयी है। लगभग 25 प्रतिशत विद्यालय शिक्षक रहित हैं।ऐसे मंे लगभग 15 हजार तदर्थ शिक्षकों के सहारे ही शिक्षा व्यवस्था चल रही है। ये तदर्थ शिक्षक अपने जीवन का अमूल्य समय गवां चुके हैं।
श्रीगौतम ने बताया कि सन 1981 में कठिनाई निवारण आदेश (प्रथम) 31-7-1981, कठिनाई निवारण आदेश (द्वितीय) 11-9-1981 में , उ0प्र0मा0शिक्षा सेवा आयोग -1982 की धारा-18 से समय-समय पर जिला विद्यालय निरीक्षकों एवं प्रबन्ध समितियों को नियुक्तियों का अधिकार दिया था। 30 दिसम्बर 2002 को सरकार ने कठिनाई निवारण आदेशों को 25 जनवरी 1999 से वापस (लिया ।ऐसे में चयन बोर्ड अधिनियम की धारा-32 के प्राविधानों के अनुसार प्रबन्ध समितियों ने इण्टरमीडिएट अधिनियम -1921 के अध्याय-2 विनियम 9(क) के अनुसार विद्यालयों में तदर्थ नियुक्तियां प्रदान की है।
उन्होंने कहा कि जब सरकार चयन बोर्ड की नियमावली में धारा-33(क)13 मई 1989 , 33(ख) 14 मई1991 ,33 (ग) 6अगस्त 1993, 33(घ) 01/01/1986, 21(ड) द्वारा विशेष विशेषज्ञ आमेलन , 33(च) 6 अगस्त 1993 तक के अल्पकालीन शिक्षकों को आमेलित किया है।
तो धारा-18 ही पर क्यों विचार किया जा रहा है, यह सरकार के लिये प्रश्न होना चाहिये।
इण्टरमीडिएट अधिनियम -1921 अध्याय -2 विनियम -9 धारा 16ई (11) के तहत तथा माननीय न्यायालय के आदेश से वेतन प्राप्त शिक्षकों को विनियमित न करना समझ से परे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को समझाने की जरूरत है।
धरने को वी. के भरद्वाज, सुशील त्रिपाठी के. पी. सिंह बृजेश शुक्ला, सुशील शुक्ला एवं राम सिंह यादव, ओमकार गुप्ता ने सम्बोधित किया धरने का संचालन महामंत्री योगेश सिंह ने किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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