उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बी.जे.पी. अपने वी.एच.पी. व अन्य संगठनों की आड़ में ये दोनांे पार्टियाँ अर्थात सपा और बीजेपी अन्दर-अन्दर आपस में मिलकर देश में इस बार होने वाले लोकसभा आमचुनाव को ध्यान में रखकर, अपने-अपने राजनैतिक स्वार्थ में यहाँ उत्तर प्रदेश में ‘‘84 कोसी परिक्रमा यात्रा’’ करने की आड़ में ‘‘साम्प्रदायिक सौहार्द’’ को बिगाड़ने की कोशिश मंे लगी हुई हैं, लेकिन खुशी की बात यह है कि उत्तर प्रदेश की जनता ने तुरन्त ही इनके इस ‘‘राजनैतिक स्वार्थ’’ के इस ‘‘गेम-प्लान’’ को समझा, जिसकी वजह से फिर, सपा और बीजेपी को कल परिक्रमा के पहले दिन ही अपने इस राजनैतिक स्वार्थ के इस ‘‘गेम-प्लान’’ से पीछे हटना पड़ा है अर्थात् उन्हें मुँह की खानी पड़ी है।
अर्थात इस परिक्रमा को लेकर वहाँ ना बीजेपी के सहयोगी संगठनों के समर्थन में हिन्दू समाज के लोग खुलकर सामने आये है और ना ही मुस्लिम समाज के लोग भी इस मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी के समर्थन में खुलकर सामने आये हैं और इसके लिये मैं उत्तर प्रदेश की आमजनता का और उसमे भी ख़ासतौर से वहाँ के हिन्दू व मुसलमानों का दिल से आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने इनके इस राजनैतिक स्वार्थ के, इस ‘‘गेम-प्लान’’ की कल बहुत बुरी तरह से हवा निकाल दी है, वर््ना कल उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में भी ‘‘साम्प्रदायिक सौहार्द’’ बिगड़ सकता था।
ऐसी साम्प्रदायिक सौहार्द की स्थिति को आगे भी बरकरार रखने के लिए पूर्णतः देश व जनहित में, बिना कोई देरी किये हुये उत्तर प्रदेश में केन्द्र की सरकार को, तुरन्त ही राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये उचित क़दम ज़रूर उठाना चाहिये अन्यथा इन दोनों पार्टियों की इस घिनौनी हरकत से फिर पूरे देश में कभी भी, इस कि़स्म के अन्य और मुद्दों को लेकर, यहाँ ‘‘साम्प्रदायिक सौहार्द’’ बिगड़ सकता है और ऐसे हालातों में यदि केन्द्र की सरकार ने, उत्तर प्रदेश में जल्दी ही वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये कोई ठोस क़दम नहीं उठाये तो फिर इस मामले में, पूरे देश में स्थिति बिगड़ने के लिये सपा व बीजेपी के साथ-साथ केन्द्र में कांग्रेस पार्टी के नेतृृत्व में चल रही यू.पी.ए. की सरकार भी, इसके लिये पूरेतौर से बराबर की जि़म्मेवार होगी।
वैसे यह सर्वविदित है कि धर्म को राजनीति और राजनीति को धर्म से जोड़कर सत्ता का लाभ प्राप्त करते रहने के कारण ही कांग्रेस पार्टी ने देश का बड़ा नुकसान किया है, और फिर बाद में भारतीय जनता पार्टी ने धर्म की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने और सत्ता हथियाने के लिए धर्म व धार्मिक लोगों का शोषण करके देश का अनर्थ व देश की राजनीति को अपूर्णीय क्षति पहुँचायी है, जिसका दुष्परिणाम इस देश की संवैधानिक संस्थाओं व आम जनता एवं खासकर गरीब व उपेक्षित वर्ग के लोगों को विभिन्न रूपों में आज तक भुगतना पड़ रहा है।
और इस मामले में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी का भी रवैया तो हमेशा ही कुछ ज्यादा ही आपत्तिजनक व दुःखदायी रहा है, क्योंकि इस पार्टी ने कांग्रेस व बीजेपी से दो कदम आगे बढ़कर साम्प्रदायिका से लड़ने के नाम पर समाज को दो भागों में बांटने वाले भड़काऊ बयानबाजी व वैसे ही भड़काने वाले काम करके दो प्रमुख समुदायों में नफरत को बढ़ावा देकर अपनी घोर स्वार्थी राजनीति व चुनावी लाभ को आगे बढ़ाने का काम किया है। इसका ही लाभ सपा के साथ-साथ भाजपा को भी पूर्व में काफी ज्यादा मिला है, जिसके विरूद्ध सम्पूर्ण रूप से जनहित व देशहित में साम्प्रदायिकता का जहर का एण्टी डाँट (ंदजपकवजम) के रूप में बी.एस.पी. को विभिन्न स्तर पर लगातार काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा है। यही कारण है कि साम्प्रदायिकता और नफरत की आग को काफी ज्यादा बढ़ाकर अपना मजबूत गढ़ बना लेने वाले उत्तर प्रदेश राज्य में आज भाजपा काफी ज्यादा कमजोर होकर राजनीति से उफान से नीचे आकर बिल्कुल ही हाशिये पर है और इसका सारा श्रेय लोग बी.एस.पी. मूमवमेन्ट की समता व मानवतावादी नीतियों को देते हैं, जिसके शासनकाल में ‘‘कानून द्वारा कानून का राज‘‘ स्थापित करके साम्प्रदायिक शक्तियों को भी शान्ति व कानून-व्यवस्था के आगे घुटने टेकने को मजबूर किया गया, जिस कारण बी.एस.पी. के शासनकालों में उत्तर प्रदेश दशकों बाद और सम्भवतः आजादी के बाद के वर्षों में पहली बार पूर्णरूप से ‘‘साम्प्रदायिक दंगा-मुक्त‘‘ प्रदेश रहा और इसी वजह से पूरे देश में भी शान्ति व्यवस्था व अमन-चैन का माहौल रहा है।
परन्तु वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के आते ही फिर से वही तनावपूर्ण गर्म माहौल बन गया है, जिस कारण मात्र डेढ़ वर्ष के भीतर ही छोटे-बड़े कुल मिलाकर एक सौ से ज्यादा साम्प्रदायिक दंगे उत्तर प्रदेश में अब तक हो चुके हैं, जिनमें फैजाबाद, मथुरा और बरेली का दंगा काफी ज्यादा घातक रहा, जहाँ जान-माल की भारी हानि हुयी और तनावपूर्ण माहौल काफी लम्बे समय तक चलकर अब भी बरकरार है। वैसे भी श्री मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान हुये करनैलगंज (गोण्डा जिला) के भीषण दंगे की भयावहता व उसमें हुयी जान-माल की भारी हानि को कौन भुला सकता है।
और अब वर्तमान सपा सरकार में जो उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश जो लगातार जारी है, वह पूर्ण रूप से संकीर्ण व स्वार्थ की घिनौनी राजनीति है, जिसका उद्देश्य लोगों को साम्प्रदायिकता के आधार पर गुमराह करके अपनी सरकार की नाकामी व निकम्मेपन एवं व्यापक भ्रष्टाचार की तरफ से लोगों का ध्यान बांटकर, विशुद्ध रूप से आने वाले लोकसभा आमचुनाव में अपनी स्थिति को गर्त में जाने से बचाना है। इस ध्रवीकरण का लाभ भाजपा भी उठाना चाहती है। इस प्रकार, भाजपा और सपा दोनों एक दूसरे को ध्रुवीकरण का चुनावी लाभ उठाने पर अमादा लगते हैं। इसी क्रम में सपा और भाजपा एक बार फिर उत्तर प्रदेश में जैसे संवेदनशील राज्य में आपसी भीतरी गठजोड़ करके लोकसभा आमचुनाव के लिए साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बनाने में एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। और इसी के तहत सपा प्रमुख श्री मुलायम सिंह यादव व उ.प्र. के मुख्यमंत्री एवं विश्व हिन्दू परिषद व इनके अन्य सहयोगी संगठनों के खास नेताओं, जिनमें, कुछ लोग अयोध्या में विवाधित स्थल के विध्वंस के प्रमुख आरोपी भी हैं, की लखनऊ में दिनांक 17 अगस्त, 2013 को सरकारी आवास पर लम्बी मुलाकात भी हुयी और आगे की षड़यन्त्रकारी रणनीति भी तय हुयी है। इस मुलाकात की खबर को काफी प्रमुखता के साथ छपवाने के लिए सरकारी जुगाड़ भी लगाये गये थे।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 से 1991 के बीच अयोध्या-फैजाबाद में ऐसी सुरक्षा व्यवस्था की जायेगी कि ‘‘परिन्दा भी पर नहीं मार सकेगा‘‘, जैसी भड़काऊ बयानबाजी करके श्री मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने साम्प्रदायिक माहौल को खराब करके स्थिति को तनावपूर्ण बनाया था फिर गोलियां चली और लोग मारे गये, जिससे खासकर बीजेपी को काफी ज्यादा राजनीतिक फायदा हुआ था और सन् 1991 में वह उत्तर प्रदेश में सत्ता में भी आ गयी थी, जिस कारण साम्प्रदायिकता के माहौल की भारी भूमिका तय हुयी और अन्ततः दिनांक 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या के विवादित स्थल का विध्वन्स कर दिया गया, जिसके लिए केन्द्र में कांग्रेस की सरकार भी उतनी ही जिम्मेवार है जितनी कि बीजेपी। और अब सर्वविदित है कि एक बार फिर राजनीतिक व चुनावी लाभ के लिए सपा-भाजपा की आपसी मिलीभगत व नूरा-कुश्ती जारी है अर्थात् प्रदेश में साम्प्रदायिक माहौल को खराब करके उसे काफी ज्यादा तनावपूर्ण बनाया जा रहा है, जो अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण व निन्दनीय व आमजनता के हित में बड़ी चिन्ता की बात है।
साथ ही, इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश सपा सरकार की दोगली नीति एवं दोहरा व संदिग्ध चरित्र स्पष्ट है, क्योंकि पहले विश्व हिन्दू परिषद व इनके अन्य सहयोगी संगठनों के लोगांे के साथ श्री मुलायम सिंह यादव व उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा सरकारी आवास पर लगभग दो घन्टे की लम्बी बैठक करना ‘‘दाल में काला ही काला‘‘ होना साबित करता है। अगर सपा सरकार की नीयत साफ होती तो उस बैठक में ही विहिप को सख्त निर्देंश दिये जा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। और अब कल परिक्रमा के पहले दिन विहिप के अध्यक्ष श्री प्रवीण तोगडि़या आदि जिस प्रकार से सपा सरकार के तथाकथित सख्त सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर अयोध्या पहुँच गये और इतना ही नहीं जितने भी गिरफ्तारियां आदि की गयीं उन सबको ‘‘मीडिया शो‘‘ के रूप में इस्तेमाल करने की जो पूरी-पूरी व्यवस्था सरकार व जिला प्रशासन द्वारा की गयी इससे भी यह साबित हो गया है कि सपा और बीजेपी, विहिप आदि में पूरी सांठ-गांठ व मिलीभगत सुनियोजित तौर पर थी, जिसकी भूमिका इनके नेताओं की आपसी मुलाकात में ही तय हो गयी थी। सुश्री मायावती ने कहाकि तथाकथित 84 कोसी परिक्रमा साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़कर हिन्दू-मुस्लिम दंगा कराकर बड़े-पैमाने पर तनाव आदि पैदा करके उसका चुनावी व राजनीतिक लाभ उठाने की नीयत से सपा और भाजपा-विहिप की राजनीतिक सांठ-गांठ व मिलीभगत का परिणाम है, यह इस बात से भी साबित होता है कि यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से आसामयिक व गैर-परम्परागत है एवं ऐसा कोई कार्यक्रम बी.एस.पी. के पाँच वर्ष के शासनकाल में कभी भी आयोजित करने की कल्पना तक भी नहीं की जा सकी थी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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