उ0प्र0 सरकार जब तक सरप्लस घोषित शिक्षकों का आदेश निरस्त नहीं करती, लखनऊ नगर निगम द्वारा संचालित विद्यालयों के शिक्षकों को वेतन वितरण अधिनियम में लेकर शिक्षक एवं कर्मचारियों का वेतन भुगतान नहीं किया जाता, कम्प्यूटर शिक्षकों को पूर्णकालिक अध्यापक का दर्जा नहीं दिया जाता, हाईस्कूल/इण्टर मूल्यांकन 2013 के परीक्षकों का मूल्यांकन पारिश्रमिक भुगतान एवं पूर्व में वार्ता द्वारा निश्चित हुई मांगो, तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण,सी0 टी0 की विसंगति दूर करना, वित्त विहीन को मानदेय तथा नवीन पेंशन योजना समाप्त कर प्रचलित पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं की जाती तब तक उ0प्र0 माध्यमिक शिक्षक संघ आन्दोलन वापस नहीं लेगा, उक्त घोषणा आज उ0प्र0 माध्यमिक शिक्षक संघ के शिविर कार्यालय 706 ओ0सी0आर0 बिल्डिंग ए ब्लाक में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान संगठन के अध्यक्ष, विधान परिषद सदस्य श्री चेतनारायण सिंह और प्रदेशीय मंत्री एवं प्रवक्ता डाॅ0 महेन्द्रनाथ राय द्वारा की गयी। प्रेस वार्ता में संयुक्त शिक्षक संघर्ष मोर्चा के संयोजक तेज नारायण पाण्डेय (तेजेश) भी मौजूद थे। ज्ञातव्य है कि फरवरी 2013 में राज्य सरकार द्वारा एक आदेश जारी कर प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में जन शक्ति का निर्धारण कर दिया गया, जिसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण प्रदेश के समस्त सहायता प्राप्त विद्यालयों में, प्रधानाचार्यो, शिक्षकों, लिपिकों, चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों के पद अधिसंख्य घोषित कर लगभग 17 हजार से ऊपर शिक्षक कर्मचारी ‘सरप्लस’ की श्रेणी में डाल दिये गये तथा प्रबन्धकों एवं प्रधानाचार्यो को इस श्रेणी के शिक्षक/कर्मचारियों का वेतन भुगतान न करने का आदेश प्रदान कर दिया गया। जिसके विरूद्ध सर्वप्रथम 03 अप्रैल 2013 को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ एवं उसके सहयोगी संगठन, शिक्षणेŸार कर्मचारी संध ने प्रेस वार्ता कर इसे नियम विरूद्ध एवं मनमाने तरीके से निर्धारित बताते हुये सरकार को चुनौती दी तथा इस आदेश को निरस्त कराने के लिए रामपुर में आयोजित अपने ग्रीष्मकालीन शिविर में 1 जुलाई से ही संघर्ष का शंखनाद कर दिया, जिसके अन्तर्गत दिनंाक 01 जुलाई से 6 जुलाई तक शिक्षकों द्वारा काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन करना, 07 जुलाई से 14 जुलाई तक जन जागरण अभियान के अन्तर्गत विद्यालय-विद्यालय जाकर शिक्षकों को इस आदेश की जानकारी देना, 15 जुलाई को मशाल जुलूस निकाल कर सरकार को चेतावनी, तथा 20 जुलाई से 30 जुलाई के मध्य प्रदेश के समस्त जनपद मुख्यालयों पर धरना देकर मुख्यमंत्री को मांगों का ज्ञापन भेजकर सरकार को आगाह किया गया।
उक्त संदर्भ में आज पत्रकारों से रूबरू होते हुये शिक्षक नेताओं ने कहा कि शिक्षा विभाग प्रदेश का सर्वाधिक उपेक्षित एवं भ्रष्टाचारी विभाग बन गया है। अभी प्रदेश सरकार द्वारा ‘सरप्लस अध्यापकों’ की समस्या पर विभिन्न चरणों की बातचीत द्वारा केवल मौखिक आश्वासन ही प्राप्त हुये है, दूसरी ओर कतिपय स्वयंभू शिक्षक नेता केवल वार्ता के द्वारा ही मौखिक रूप से बयान बाजी करके शिक्षकों को मुद्दे से भटका रहें है तथा अपने स्वार्थो की सिद्धि में लिप्त है। शिक्षक किसी बहकावे में न आये क्योंकि समाधान का रास्ता संघर्ष के बिना नहीं निकलता है यदि कोई मात्र वार्ता से ही समस्या का समाधान करा लेता तो शिक्षकों की कोई भी समस्या अब तक अवशेष न रहती किन्तु सरकार की गणेश परिक्रमा करने वाले, स्वयंभू शिक्षक नेताओं के कारण ही शिक्षक समाज आज यहां तक पहुॅच गया है कि शिक्षकों के पूर्वजों ने 1956 से संघर्ष के बल पर जो उपलब्धियां प्राप्त की थी वह धीरे-धीरे छिनती जा रही है। शिक्षक नेताओं ने बताया की संगठन की सरप्लस शिक्षकों के अतिरिक्त 14 सूत्री मांगों पर अभी तक सरकार द्वारा कोई भी कार्यवाही न किये जाने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि सरकार शिक्षकांे के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार कर रही है और समस्याओं को सुलझाने में रूचि नहीं ले रही है। ऐसी स्थिति में संघर्ष ही एक मात्र रास्त बचता है।
शिक्षक नेताओं ने बताया कि इसी बीच नगर निगम लखनऊ द्वारा संचालित इण्टर कालेज के शिक्षकों का वेतन भुगतान नगर निगम द्वारा बन्द कर दिये जाने की सम्भावना है क्योंकि शिक्षा विभाग अनुदान देने में टाल-मटोल कर रहा है। इससे सैकड़ों शिक्षक/शिक्षिकायें भुखमरी के कगार पर पहुॅच जायेगें। इन विद्यालयों द्वारा बार-बार अनुरोध के बाद भी न तो नगर निगम और न ही शिक्षा विभाग इसकी जिम्मेदारी लेना चाहते है। इस सम्बन्ध में भी संगठन द्वारा पहले भी चिन्ता व्यक्त की जा चुकी है किन्तु भविष्य में वेतन भुगतान अवरूद्ध होने की आशंका है। शिक्षक सीधी लड़ाई के लिए तैयार हो रहें है। यदि इनकी समस्या अविलम्ब न सुलझाई गयी तो शिक्षा जगत पूरी तरह अस्तव्यवस्त हो जायेगा तथाबाध्य होकर संगठन को आन्दोलन की राह पक्नी पडेगी। जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
शिक्षक नेताओं ने आई0सी0टी0 योजना के अन्तर्गत नियुक्त कम्प्यूटर शिक्षकों के सम्बन्ध में बताते हुये कहा कि यह युग कम्प्यूटर युग है। अतः भारत सरकार द्वारा समस्त विद्यालयों में ‘कम्प्यूटर शिक्षा’ अनिवार्य कर, कम्प्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति की है जिन्हें नियमित दस हजार रूपये का मानदेय दिया जाना है पर उन्हें मात्र 3200 रूपये प्राप्त होते रहे है, शेष धन उन्हें सेवायोजित करने वाली संस्थायें खा जाती रही है। किन्तु लगभग एक वर्ष से यह अल्प धनराशि भी इन शिक्षकों को प्राप्त नहीं हो रही है तथा कहीं-कहीं इन शिक्षकों को हटाया भी जाने लगा है। संगठन इस धांधली को बर्दाश्त नहीं करेगा तथा इस कैडर के शिक्षकोें तथा व्यावसायिक शिक्षकों को भी पूर्णकालिक शिक्षक का दर्जा दिये जाने हेतु संघर्ष करेगा। क्योंकि पंजाब, हरियाणा जैसे प्रान्तों में कम्प्यूटर शिक्षकों को शिक्षक का दर्जा प्रदान करके सरकार द्वारा वेतन भुगतान किया जा रहा है।
शिक्षक नेताओं ने सरकार की लापरवाही का उदाहरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि हाईस्कूल/इण्टर मूल्यांकन की पारश्रमिक दरें सगठन के संघर्ष के कारण 50 प्रतिशत से 100 प्रतिशत विभिन्न मदों में बढ़ी तथा धन भी अवमुक्त कर दिया गया। वर्तमान प्राविधानों के अनुसार यह राशि सीधे परीक्षक के खाते में जाना है। मूल्यांकन समाप्त हुये तीन महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक शिक्षाधिकारियों की लापरवाही के कारण ही इस पारश्रमिक राशि का भुगतान नहीं किया गया है। जिससे शिक्षकों में घोर आक्रोश है।
शिक्षक नेताओं ने बताया कि इन सम्पूर्ण परिस्थितियों तथा संघर्ष के अगले चरण की रूप रेखा हेतु 04 अगस्त 2013 को राज्य परिषद की बैठक बुलाई गयी है, जिसमें मंथन करके संघर्ष के अगले चरण की घोषणा की जायेगी। यह ‘पूर्ण हड़ताल’ की भी हो सकती है। वार्ता में लखनऊ जिला अध्यक्ष श्री निर्मल श्रीवास्तव, उपाध्यक्ष श्री आर0एस0 विश्वकर्मा भी उपस्थित रहें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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