जनपद के कोषागार पर जिलाधिकारी का भी नियंत्रण नही रह गया है अब मुख्यमंत्री ही सुधार सकते है अपने कर्मचारियों की पेमेंन्ट व्यवस्था ।
गौरतलब हो कि जब से सरकार ने ई-पेमेन्ट व्यवस्था लागू की है तब से जिले के कर्मचारी अधिकारी पैसे पैसे के लिए मोहताज हो गये है और उसके लिए नये नये रास्ते निकाल रहे है जाहिर है कि कर्मचारियों को तीन तीन माह से वेतन नही मिला हो और परिवार लम्बा हो बच्चे पढ़ने लिखने खाने पीने वाले हो या भाडे का मकान हो तो कोई कैसे इस मंहगाई मे जीवित रहेगा और तो और कोषागार के बाबुओ का कोई ठिकाना नही है कि इस माह पैसा बैंक खाते मे डाल ही दे तो ऐसे मे कर्मचारी क्या करेगा उसे कौन सा दुकानदार आखिर कब तक उधार देगा ?
बच्चो का एडमीशिन बिना पैसे के कौन से स्कूल मे होगा, कर्मचारी की पत्नी का बिना पैसा ईलाज कौन डाक्टर करेगा अब तो सरकारी अस्पताल मे भी बिना पैसा ईलाज नही होता तो कर्मचारी क्या करें । काम के बदले पैसा ले और हो भी रहा है कुछ ऐसा ही राज्य सरकार के मुखिया और डी.एम. सुलतानपुर को पैसे व वेतन की समस्या आडे आती ही नही वो क्या जाने एक सरकारी चपरासी के परिवार की पीडा जबकि जिले मे सीट सम्भालते ही कोषागार का चार्ज लेने वाली डी.एम. उस दिन के बाद शायद ही कभी कोषागार गई हो ? उन्हे शायद यह भी नही मालूम की पेंशनरों को आज भी माह की १० ता० के बाद ही पेशन मिलती है कर्मचारियों को मिलने वाला डी.ए. बिना पैसे के शायद ही किसी पेंशनर को मिलता हो ।
जब कर्मचारियों को वेतन आन लाईन सेंड करने मे तीन माह से छरू माह लगता है तो सोचा जा सकता है कि क्या हालात है कोषागार के कोषागार अधिकारी को उनको क्लर्क कुछ समझते ही नही है जब मन करता है नजराना मिल जाता है तो सीट पर बैठते है वरना आप खोजते रहियें दिन पर दिन महीने पर महीने बीतते रहेगें वेतन नही जायेगा ।
ऐसे में ज्यादातर कर्मचारी अपनी सीटो पर काम के बदले अनाज की तर्ज पर काम के बदले नजराना ढूढते मिल जायेगे आखिर क्या करें किससे कहे मुख्यमंत्री ने कसम खाई है कि सुलतानपुर के हालात व प्रशासनिक व्यवस्था नही सुधारेगें न जिम्मेदारो को कुछ कहेगें चाहे कर्मचारी बिना वेतन भीख मांगे या जनता से घूस मांगे जिले को किसी तरह चलाने पर अमादा है सरकार । ऐसे मे जनता कर्मचारी सभी त्रस्त है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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