जनपद के मुख्य विकास अधिकारी व परियोजना निदेशक की गैर जरुरी अंडगे बाजी से भुखमरी के कगार पर पहुंच गये मनरेगा संविदा कर्मी।
गौरतलब हो कि जिले मे न तो शासन का कोई महत्व है न सरकार का जो अधिकारी जहां बैठा है वहां का संविधानबिद स्वयं बन बैठा है उसके अधीन कर्मी शोषित और पीडित है । मनरेगा के सैकडो संविदा कर्मी इनकी हठ धर्रि्मता और स्वेच्छा चारिता की त्रासदी का नमूना बन चुके है न सरकार सुन रही है न मंडलायुक्त । विकास कार्यो की समीक्षा बैठका कागजी और औपचारिकता बन चुकी है ।
सोचा जा सकता है कि मनरेगा कर्रि्मयों को जब वेतन ही नही मिलेगा तो वो कैसे विकास कार्यो की निगरानी करेगें या सरकार के आदेश को मरेगे । एक दो माह हो तो मांग जांचकर चल जायेगा मगर एक वर्ष पूरा वेतन न दीजिए और किसी कर्मचारी या सेवक से काम लीजिये तो इसे क्या कहा जायेगा । इसे मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव स्वयं अपनी भाषा मे प्रसारित करें तो जनता और कर्मी समझे कि यह कार्य कौन सी के अन्र्तगत आती है । जिले के मुख्य विकास अधिकारी और स्वयंभू पी.डी. अपना तो वेतन उठा ही रहे है और इन बेचारे संविदा कर्मियों को इनके संवैधानिक अधिकार काम के बदले वेतन से क्यो और किस स्वार्थ मे वंचित किये है ? जिनमें एक सैकडा तकनीकी सहायक, तेरह ए.पी.ओ. १३ कम्प्यूटर आपरेटर, तेरह एकाउंटटेंट आज शासना देश होते हुए भी भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके है ।
ऐसा नही है कि शासना देश न हो ग्राम्य विकास सचिव मनोज सिंह द्वारा जारी शासना देश ७६५३/३८-७-२०१०-१०एन आर टी जी ए / ०५ टी सी-११-११-२०१० को प्रभावी रहते हुए भी जिले के अधिकारी मनरेगा कर्मियों से तेजी और गुणवत्त्ता तो चाहते है मगर वेतन देने में कौन से मंत्री ने इन्हे भूख मारने का आदेश दिया है ? क्या मुख्य मंत्री या मुख्य सचिव ने इनके वेतन वितरण पर रोक लगाई है ? यह बताने वाला कोई नही है आखिर ये मनरेगा कर्मी प्रधान व सेकरेट्री के भ्रष्टाचार का सी.डी.ओ. और पी.डी. नही है ? या मनरेगा योजना जिले मे फेल हो जाये तो इसका दोषी कौन है ?
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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