जिले में बेसिक शिक्षा विभाग में अपने बच्चो को शिक्षा दिलाना नही चाहती आम जनता वो चाहे गरीब हो या अमीर मगर उच्चशिक्षित पाल्य को बेसिक शिक्षक जरुर बनाना चाहते है सभी आखिर यह विडमना क्यों ?
आपको बताते चले कि बेसिक शिक्षा विभाग के नगर मे दर्जनो स्कूल है चन्द एक विद्यालय नये है और बकाया बेहद पुराने जर्जर है इन विद्यालयों मे बच्चे न के बराबर है मगर सुविधाएं वही जो सभी प्राथमिक विद्यालयों की है मसलन इन विद्यालयों में भी शिक्षा विभाग द्वारा मुफ्त में किताबे, ड्रेस व मिड डे मील भी बनाया व दिया जाता है मगर बच्चे साल दर साल घटते ही जा रहे है ।
कारण साफ है कि शहरी तबका चाहे गरीब हो या अमीर सभी पर आधुनिकता का असर साफ देखा जा सकता है चूंकि शहर मे रहने वाली आबादी के पास रहने को घर, खाने को भोजन और बात करने को मोबाईल तो है ही फिर बिना फीस और प्रहृी भोजन वाले विद्यालय में उसका चिंटू क्यो पढने जायें जबकि हर मुहल्ले में गली गली मे तथाकथित नर्सरी विद्यालय खुले है और फीस भी १०० रु० से ६०० रु० तक ही है और उस विद्यालय का एक स्टैण्र्डड है उसके ईकाई दहाई नही पढाई जाती उसमें वन टू थ्री पढाया जाता है और उसमें टीचर चाहे जितने गये गुजरे हो मगर पढाते है, सिखाते है, होमवर्क दिया जाता है यह सब काम स्टैण्र्डड वाला है मानसिक रुप से संतुष्टि प्रदान करने वाला है ।
वही दूसरी ओर प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक तो जरुर डाक्टरेट किये है मगर है सिर्फ नाम के उन्हे अपने भारी भरकम वेतन से मतलब है और वो भी नर्सरी में ही शिक्षित हुए है जिन्हे गरीब और नन्हे बच्चे अच्छे नही लगते तो मन से पढायेगे कैसे जब गुरु शिष्य का हिस्सा ही नही है सर मैम वाला रिस्ता है वो भी केवल नौकरी तक ही ।
यही कारण है कि जब ये अग्रेजी शिक्षक बेरोजगार थे हजार पांच सौ मे नर्सरी मे पढाते थे तब डोर टू डोर कन्वेसिंग कर बच्चे लाते थे मगर अब सब सरकारी है उन्हे क्या मतलब बच्चे आये या न आये पढे या न पढे उन्हे अपने छठवे वेतनमान से मतलब है अपना स्टैण्र्डड मैन्टेन रहे कौन जायेगा मलिन बस्ती से बच्चे लाने यही कारण है कि नगर के नर्सरी स्कूलो में भीड बढ रही है नगर की आबादी बढ रही है मगर प्राईमरी में बच्चे घट रहे है टीचर बढ़ रहे है मगर कमाने के लिए पढाने के लिए नही ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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